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गढ़वा : बूढ़ा पहाड़ से माओवादियों के चंगुल से भाग निकले भाई-बहन

गढ़वा : गढ़वा जिले के भंडरिया थाना क्षेत्र स्थित बूढ़ापहाड़ में माओवादियाें द्वारा बंधक बना कर रखे गये आदिम जनजाति परिवार के दो नाबालिग बच्चे (चचेरे भाई-बहन) किसी तरह भाग निकलने में सफल रहे हैं. बूढ़ा गांव के झालुडेरा के रहनेवाले दोनों बच्चों को पिछले एक साल से माओवादियों ने बंधक बना कर रखा था. […]

गढ़वा : गढ़वा जिले के भंडरिया थाना क्षेत्र स्थित बूढ़ापहाड़ में माओवादियाें द्वारा बंधक बना कर रखे गये आदिम जनजाति परिवार के दो नाबालिग बच्चे (चचेरे भाई-बहन) किसी तरह भाग निकलने में सफल रहे हैं. बूढ़ा गांव के झालुडेरा के रहनेवाले दोनों बच्चों को पिछले एक साल से माओवादियों ने बंधक बना कर रखा था. लड़की की उम्र 15 वर्ष और लड़के की उम्र 12 वर्ष है. बुधवार को डीआइजी विपुल शुक्ला ने प्रेसवार्ता में यह जानकारी दी.
उन्होंने बताया कि पुलिस प्रशासन ने बच्चों को अपने संरक्षण में ले लिया है. साथ ही इस मामले में पोस्को एक्ट के तहत प्राथमिकी दर्ज की गयी है. लड़के का कक्षा छह में नामांकन करा दिया गया है. लड़की की पढ़ायी की व्यवस्था भी की जा रही है. इस मौके पर उपायुक्त डॉ नेहा अरोड़ा, एसपी शिवानी तिवारी, एएसपी सदन कुमार व अन्य उपस्थित थे.
बच्चे और उसके परिवार को सुरक्षा देना पुलिस की जवाबदेही : डीआइजी ने बताया कि अभी दोनों बच्चे काफी भयभीत हैं. पहले उनके मन से भय निकालने का प्रयास किया जा रहा है.
माओवादी इस तरह और कई बच्चे को जबरन उनके घर से उठाकर ले गये थे. भाग कर आये सभी बच्चे और उसके परिवार को सुरक्षा देना पुलिस की जवाबदेही है. जानकारी के अनुसार, पिछले साल माओवादी उनके गांव में पहुंचे और अभिभावकों के साथ मारपीट कर दोनों बच्चाें को जबरन अपने साथ ले गये थे. माओवादी दोनों से नौकर का काम करा रहे थे.
माओवादियों के कब्जे से भाग कर भाई-बहन झालुडेरा पहुंचे. एक साल बाद घर लौटे बच्चे को देखते ही उनके मां-बाप की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. दूसरी आेर बच्चों के भाग आने से अभिभावकों में माओवादियों द्वारा दंड दिये जाने का भय व्याप्त हो गया है, इस कारण मामले की सूचना स्थानीय पुलिस को दी गयी है. पुलिस ने त्वरित कारवाई करते हुए दोनों बच्चों को अपने संरक्षण ले लिया.
बड़े नक्सलियों के पांव दबाना पड़ता था, सामान ढुलवाते थे : भाग कर आये दोनों बच्चों ने बताया कि नक्सली एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के दौरान सामान ढुलवाते थे. जहां रूकते थे, वहां खाना बनवाते थे, पानी ढुलवाते थे. बड़े नक्सलियों के पांव दबाना पड़ता था. रात में जब वे सोते थे, तो उन्हें पहरा देने को कहा जाता था. ऐसा करने से मना करने पर उन्हें मारा-पीटा जाता था. उन्हें कभी अच्छा भोजन आैर वस्त्र नहीं दिया गया.

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