विनोद पाठक
गढ़वा : नगर निकाय के चुनाव को लेकर मैदान में उतरे राजनीतिक दल शुरू से ही अपने प्रत्याशियों के भरोसे चुनावी फतह के लिए कमर कसे हुए हैं. कहा जा रहा है कि आगामी लोकसभा और विधानसभा के चुनाव के लिए यह निकाय चुनाव स्थानीय जनता का मूड बता कर संदेश दे सकता है. इसको लेकर सभी दल तो अपने नेता एवं कार्यकर्ताओं के माध्यम से ऐन-केन-प्रकारेन प्रत्याशियों के जीताने के लिए लगे ही हुए हैं. लेकिन इसमें भी यह चुनाव किसी राजनीतिक दल और प्रत्याशियों से कहीं अधिक उन नेताओं के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुकी है, जो अगले विधानसभा चुनाव के प्रत्याशी हैं.
गढ़वा में भाजपा के विधायक सत्येंद्रनाथ तिवारी, राजद से पूर्व विधायक गिरिनाथ सिंह व झामुमो के केंद्रीय महासचिव सह गढ़वा के पूर्व विधानसभा प्रत्याशी मिथिलेश ठाकुर पिछले चुनाव में निकटतम प्रतिद्वंद्वी रहे थे. अगले चुनाव में निश्चित रूप से ये तीनों नेता पुन: विधानसभा सीट के लिए आमने-सामने होंगे. इसलिए इस चुनाव में ये तीनों कदावर नेता अपने प्रत्याशियों के माध्यम से पूरा जोर-अजमाइस करते दिख रहे हैं. गढ़वा नगर परिषद के होनेवाले इस चुनाव में विधानसभा चुनाव के पूर्व का शहरी क्षेत्र में मतदाताओं की मूड का पता चल सकेगा. कई लोग इसे विधानसभा चुनाव का सेमी फाइनल भी मानकर चल रहे हैं. इसलिए यह नगर परिषद के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष पद का चुनाव इन नेताओं की प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुका है.
यही कारण है कि इस चुनाव में इन नेताओं को प्रत्याशियों से भी कहीं ज्यादा गंभीर देखा जा रहा है. लगभग यही स्थिति नगरउंटारी नगर पंचायत चुनाव में भी दिख रही है. वहां वर्तमान विधायक भानु प्रताप शाही के नवजवान संघर्ष मोर्चा का कोई प्रत्याशी नहीं है. लेकिन वहां बसपा, भाजपा एवं झामुमो के प्रत्याशी के रूप में बसपा नेता व भवनाथपुर विधानसभा का पूर्व प्रत्याशी रहे ताहिर अंसारी, भाजपा नेता व पूर्व विधायक अनंत प्रताप देव व झामुमो नेता सह विधानसभा के पूर्व प्रत्याशी कन्हैया चौबे अपने अध्यक्ष व उपाध्यक्ष प्रत्याशी के माध्यम से परोक्ष रूप से आमने-सामने हैं. यह चुनाव शहरी क्षेत्र में उनके आगामी विधानसभा चुनाव परिणाम के लिये संकेत हो सकता है.
इसको लेकर ये नेता चुनाव परिणाम से अपने पक्ष में करने को लेकर दिन रात मेहनत करते दिख रहे हैं. यद्यपि सभी मतदाता इस बात को नहीं मानते. उनका तर्क है कि निकाय चुनाव के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष पद की बात अलग है और विधानसभा-लोकसभा चुनाव अलग है. निकाय चुनाव स्थानीय एजेंडे पर लड़ा जा रहा है, जबकि विधानसभा व लोकसभा का चुनाव प्रदेश व राष्ट्रीय एजेंडे पर होता है. लेकिन इस तर्क के बावजूद यह बात भी सत्य है कि इस नगर निकाय चुनाव में भी इन नेताओं की प्रतिष्ठा तो जरूर दांव पर लगी हुई है.

