भंडरिया (गढ़वा) : नक्सल प्रभावित सन सतावन के शहीद स्वतंत्रता सेनानी नीलांबर-पीतांबर का पैतृक गांव सनेया गांव में 2014 के लोकसभा चुनाव में भी पूर्व की तरह दहशत का माहौल था. इस गांव के बूथ संख्या 335 के आदिवासी मतदाताओं ने लगातार 20 साल तक वोट नहीं दिया था. नक्सलियों की शरणस्थली के रूप में जाने जानेवाले सनेया गांव के लोग नक्सलियों के चुनाव बहिष्कार के भय से मतदान नहीं करते थे.
सुबह सात बजे जब वहां पहुंचे, तो सिर्फ चुनावकर्मी थे. मतदाताओं के नहीं पहुंचने के कारण वे बैठ कर इंतजार कर रहे थे. दो घंटे बाद नौ बजे एक आदमी पहुंच कर उसने अपना वोट दिया. इसके बाद 9.02 बजे दूसरे व्यक्ति ने पहुंच कर मतदान किया. इसके बाद 11 बजे तक फिर कोई नहीं आया. लेकिन अपराह्न् एक बजे के बाद स्थिति बदल चुकी थी.
1.30 बजे से मतदाताओं ने ङिाझक तोड़ी और मतदान केंद्र पर आना शुरू किया. 3.10 बजे तक 516 मतदाताओं में से 135 लोग वोट डाल चुके थे. यहां चेमो सनेया के अलावे एड़मारो, मूंगा टोंगरी व पोलपोल के मतदाताओं का बूथ है. मतदान करने आये आदिवासी समाज के खदेरन मुंडा ने बताया कि वह 20 साल बाद वोट दे रहा है. पहले यहां कोई वोट देने नहीं आता था. लेकिन चुनावकर्मी यहां के नाम पर उधर जंगल में ही वोट देकर चले जाते थे. आज वोट देकर वह बहुत खुश है. नीलांबर-पीतांबर के वंशज से आनेवाले देवनाथ सिंह ने कहा कि वे 15-15 किलोमीटर दूर से पैदल वोट देने आये हैं.