घाटशिला. घाटशिला में काली पूजा, दीपावली और सोहराय को लेकर तैयारियां जोरों पर है. घरों की रंगाई-पुताई और सजावट का काम चल रहा है. बड़ाजुड़ी और आस-पास के गांवों में कुम्हार समुदाय के लोग मिट्टी के बर्तन और दीये बनाने में जुटे गये हैं. कुम्हार समाज के लिए यह पर्व रोजगार का बड़ा अवसर है. इस दौरान बनाये गये मिट्टी के बर्तन न सिर्फ स्थानीय बाजारों में बिकते हैं, बल्कि जमशेदपुर तक भी भेजे जाते हैं.
कोट-
– बड़ाजुड़ी, आमतालगोड़ा, रघुनाथपुर और बालीगुमा क्षेत्र में करीब 500 परिवार कुम्हार समुदाय से जुड़े हैं. तीन दशक पहले तक 80% परिवार मिट्टी के बर्तन बनाते थे, अब मुश्किल से 40% लोग ही यह परंपरागत काम कर रहे हैं. इसका कारण है बढ़ती महंगाई और बाजार में सस्ते विकल्पों का आना.– ललित कृष्ण भगत
, पूर्व उपमुखिया– आज बहुत परिवर्तन हो गया है. चाइनीज बल्ब, प्लास्टिक और स्टील के बर्तनों ने बाजार पर कब्जा जमा लिया है. फिर भी त्योहारी सीजन में मिट्टी के बर्तन की मांग रहती है. छठ, सोहराय और दीवाली में दीया, धूपदानी, हंडी, घोड़ा-हाथी की बिक्री होती है.
– माणिक भकत
, बड़ाजुड़ी निवासी– अधिक बारिश होने से मिट्टी के बर्तन पकाने व सुखाने में परेशानी हो रही है. मेरे पूर्वज भी मिट्टी के बर्तन बनाते थे. आज हमलोग भी यही काम करते हैं. लकड़ी और मिट्टी दोनों बड़ी मुश्किल से मिलती है. कुम्हार समुदाय के उत्थान के लिए एक सामुदायिक भवन बनाना चाहिए.– शंकर भकत
, बड़ाजुड़ी निवासी– मिट्टी के बर्तन ग्रामीण अर्थव्यवस्था और संस्कृति का हिस्सा है. सरकार इस ओर ध्यान नहीं देती. पहले कांसा, पीतल और तांबे के बर्तन आते थे, अब प्लास्टिक का जमाना है. प्लास्टिक और चाइनीज उत्पादों पर रोक लगनी चाहिए. साथ ही हर बस्ती में एक सामुदायिक भवन बनना जरूरी है.
– सुभाष भकत
, ग्राम प्रधान– बीते 25-30 साल पहले लकड़ी सस्ती और मिट्टी प्रचुर मात्रा में मिल जाती थी. अब लकड़ी और मिट्टी दोनों की कमी है. महंगाई के कारण मिट्टी के बर्तनों के दाम बढ़ गये हैं. मेहनत के हिसाब से मुनाफा नहीं मिलता. इस वजह से गांव के युवक इस काम को छोड़कर दूसरे रोजगार की तलाश में शहरों की रुख कर रहे हैं.– किशोर पाल
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