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East Singhbhum News : गांवों में चढ़ने लगा मकर का रंग, गालूडीह हाट में खूब हुई खरीदारी

इस बार धान की फसल बेहतर होने से किसानों में उत्साह चरम पर

गालूडीह.

झारखंड का सबसे बड़ा त्योहार मकर (टुसू) के रंग गांवों में दिखने लगे हैं. इस बार धान की फसल अच्छी हुई है. इसका असर हाट-बाजारों में दिख रहा है. सोमवार को गालूडीह हाट में भीड़ उमड़ी. हालांकि, दो सोमवार और मिलेंगे. 5 और 12 जनवरी की हाट में और ज्यादा भीड़ उमड़ेगी. सोमवार को लोगों ने धान बेचकर कपड़े, जूते, गुड़-तेल, तिल, मुर्गा- मुर्गी, बर्त्तन, सूप, मिट्टी के हंडी आदि की खरीदारी की. मेले जैसा नजारा रहा. हाट में बंगाल के बांदवान, कुचिया, द्वारसीनी, एमजीएम के पिपला, बेलाजुड़ी, दलदली, बेको के लोग आते हैं. कोलकाता के दुकानदार पहुंचते हैं.

सूप व हंडी के दाम में उछाल

हाट में पिछले साल की अपेक्षा सूप व हंडी के दाम में उछाल देखने को मिला. सूप 40 से 80 रुपये व हंडी 50 से 100 रुपये में बिकी. टुसू पर्व में दोनों सामान का लोग उपयोग करते हैं. आसछे मोकोर आर दू दिन सोबुर कोर… जैसे गीत गुनगुनाने रहे लोगटुसू पर्व में लोक गीत और बांग्ला झुमूर- टुसू गीत का खूब प्रचलन है. मकर पर्व नजदीक आने के साथ लोग आसछे मोकेर आर दू दिन सोबुर कोर… जैसे लोक गीत गुनगुनाने लगे हैं. तोके के दिलो गो लाल साड़ी… बिष्टुपुरेर बूढ़ा पांजाबी… जैसे गीत सुनायी पड़ रहे हैं. हुल्लड़ बाजी के लोक गीत आमाये के साला माताल बोले, दुनिया पागोल मोदेर बोतेले… जैसे गीत बज रहे हैं. हालांकि अब पहले जैसा टुसू गीत का प्रचलन नहीं है.पहले गांव-गांव में महिलाएं 15 दिन पहले से टोली बनाकर टुसू गीत गाती थीं. घर की ढेंकी में पीठा बनाने के लिए गुड़ी कूटती थीं. प्रचलन अब धीरे-धीरे खत्म सा हो गया है. गुड़ी (चावल का आटा) अब ढेंकी के जगह चक्की में पिसाई होने लगी है. वहीं टुसू गीत अब ऑडियो-वीडियो में बज रहे हैं. टुसू प्रतिमाएं भी मूर्तिकार अब काफी कम बनाने लगे हैं. लोग मानते हैं संस्कृति को आज की पीढ़ी नहीं अपना रही है. बुजुर्ग आज भी टुसू पर्व के नियम और परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं. ग्रामीण इलाकों में आज भी परंपरा और संस्कृति जीवंत है.

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