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East Singhbhum News : शिक्षक ही समाज को शिक्षित बनाना है : टीबू राम मांझी

सेवानिवृत्त शिक्षक टीबू राम मांझी ने बनायी दशरथ मांझी के रूप में पहचान, उनकी जीवटता की कहानी

गालूडीह. घाटशिला अनुमंडल के कई शिक्षक समाज के लिए मिसाल हैं. इनमें एक एमजीएम थाना क्षेत्र की दलदली पंचायत स्थित लुकईकनाली निवासी सेवानिवृत्त शिक्षक टीबू राम मांझी (87) हैं. सफेद धोती-कुर्ता और साइकिल उनकी पहचान है. टीबू राम मांझी 1999 में गालूडीह के महुलिया मारवाड़ी हिंदी मवि से सेवानिवृत्त हुए थे. सेवानिवृत्त होनें के बाद समाज के प्रति उनकी जीवटता कम नहीं हुई. इस उम्र में भी हाथ में कुदाल पकड़ कर बदहाल सड़क की मरम्मत के लिए श्रमदान कर युवाओं को प्रेरित करते है. अपनी पेंशन की राशि से वर्षों तक नारगा एनएच-33 से दलदली तक जाने वाली जर्जर सड़क की मरम्मत कराते रहे. जब पेंशन मिलती, तब उस राशि के कुछ हिस्से से मजदूर लगाकर जर्जर सड़क की मरम्मत कराते और खुद भी श्रमदान करते. यह सिलसिला कई वर्षों तक चला. बाद में उक्त सड़क बनी. अब गांव और आस पास के अनाथ और गरीब बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा दे रहे हैं. इस उम्र में न थकते हैं न ही रूकते हैं. उनके इन कार्यों को देखते हुए ग्रामीण उन्हें झारखंड का दशरथ मांझी कहते हैं. अब तो उनकी पहचान दशरथ मांझी के रूप में हो गयी है. टीबूराम मांझी 87 साल की उम्र में भी लाठी नहीं पकड़ते हैं. आज भी वे साइकिल या पैदल ही चलते हैं. उनकी जिंदगी शुरू से सादगी पंसद रही है. वे अपने घर पर आज भी गांव और आस पास के अनाथ व गरीब बच्चों को निःशुल्क शिक्षा के साथ देश प्रेम का पाठ भी पढ़ा रहे हैं. उनकी इस जीवटता को देखते हुए पिछले दिनों दूरदर्शन ने उन पर एक टेली फिल्म भी फिल्मायी.

कोट

शिक्षक का मतलब है समाज को शिक्षित बनाना. पढ़ा-लिखा होना और बेहतर इंसान होना दोनों में अंतर है. आज पढ़े-लिखे लोग ही समाज को बांट रहे हैं. किसी में परोपकार की भावना नहीं है. मेरा मानना है कि अगर आप पढ़े-लिखे हैं, तो समाज को जोड़ें. सामाजिक सरोकार को निभायें. तभी शिक्षित हो सकते हैं अन्यथा नहीं. हर काम के लिए सरकार के भरोसे बैठे रहना सही नहीं है. अपना भी योगदान दें तो समाज बदलेगा.

टीबू राम मांझी

, सेवानिवृत्त शिक्षक, लुकईकनाली

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