घाटशिला.
घाटशिला विधान सभा से अबतक सर्वाधिक पांच बार कांग्रेस के विधायक रहे हैं. इस सीट से पहली बार 1967 में कांग्रेस के दशरथ मुर्मू विधायक बने थे. इसके बाद 1969, 1972, 1977 और 1980 के चुनाव में कांग्रेस को हार मिली. इसमें एक बार झारखंड पार्टी के यदुनाथ बास्के व तीन बार सीपीआइ के टीकाराम मांझी चुनाव जीते थे. 20 साल बाद घाटशिला में कांग्रेस की वापसी हुई. 1985 में कांग्रेस के करण चंद्र मार्डी जीते थे. 1990 में आजसू के सूर्य सिंह बेसरा ने बाजी मारी. वहीं 1991 के उप विस चुनाव में सीपीआइ के टीकाराम मांझी चुनाव जीते थे. इस दौरान कांग्रेस के युवा नेता प्रदीप कुमार बलमुचु की घाटशिला में एंट्री हो चुकी थी. पहले चुनाव में हार मिली. वहीं, 1995 के विस चुनाव में बलमुचु को जीत मिली. फिर वर्ष 2000 व 2005 के विस चुनाव में जीत दर्ज कर हैट्रिक लगायी. सीपीआइ के टीकाराम मांझी के बाद कांग्रेस के प्रदीप बलमुचु ने इस सीट से हैट्रिक लगायी थी. 2009 के विस चुनाव में झामुमो ने सीट को कांग्रेस से छीन ली. झामुमो नेता रामदास सोरेन जीत दर्ज कर विधायक बने. इसके बाद विस चुनाव में कांग्रेस वापसी नहीं कर पायी.2014 में बलमुचु ने बेटी को मैदान में उतारा
प्रदीप बलमुचु ने राज्य सभा सांसद रहते हुए वर्ष 2014 के विस चुनाव में अपनी बेटी सिंड्रेला बलमुचु को कांग्रेस के टिकट से मैदान में उतारा था. वह 36672 मत लाकर तीसरे नंबर रही थी. भाजपा के लक्ष्मण टुडू 52506 मत लाकर चुनाव जीते. पहली बार घाटशिला में भाजपा भगवा लहरा पायी थी. झामुमो के रामदास सोरेन 46103 मत लाकर दूसरे स्थान पर थे.2019 में कांग्रेस छोड़कर आजसू के टिकट पर लड़े बलमुचु
वर्ष 2019 के घाटशिला विस चुनाव में झामुमो के साथ कांग्रेस का गठजोड़ होने के कारण सीट झामुमो के खाते में चली गयी. प्रदीप बलमुचु बागी बने गये. कांग्रेस से इस्तीफा देकर आजसू के टिकट पर चुनाव लड़े थे. उन्हें 31838 मत मिले थे. वे तीसरे नंबर पर थे. रामदास सोरेन 63,340 मत लाकर दूसरी बार चुनाव जीते थे. भाजपा के लखन चंद्र मार्डी 56725 मत लाकर दूसरे स्थान पर थे. इस उप चुनाव में फिर से डॉ प्रदीप बलमुचु दावा ठोंकते नजर आ रहे हैं.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

