बहरागोड़ा : बहरागोड़ा विधान सभा क्षेत्र के एक मात्र बहरागोड़ा कॉलेज पर आखिर किसकी बुरी नजर लग गयी और इस कॉलेज का माहौल एक बार फिर बिगड़ने लगा. ओछी राजनीति की बू आने लगी. प्रभारी प्राचार्य के मसले पर छात्रों का दो गुट अलग–अलग राग अलापने लगा. धरना और जुलूस का दौर शुरू हो गया.
अपना भविष्य बनाने के लिए कॉलेज आने वाले छात्र–छात्राओं ने आंदोलन का शंखनाद कर दिया. आखिर कॉलेज पर लगी बुरी नजर कसकी है. किसी राजनीतिबाज की है या फिर कोल्हान विश्वविद्यालय के किसी अधिकारी की है? बेहतर काम करने वाले प्रभारी प्राचार्य डॉ एसपी सिंह की कुर्सी बची रहेगी या फिर वरीयता के आधार पर प्रो बिरबल हेंब्रम की ताजपोशी होगी.
यह तो वक्त बतायेगा, परंतु इतना तो साफ हो रहा है कि इस खेल में कॉलेज का शैक्षणिक माहौल एक बार फिर बिगड़ेगा और छात्र–छात्राओं में आपसी वैमनस्य फैलेगा. टकराव भी हो सकता है. हजारों छात्र–छात्राओं का भविष्य सवांरने वाले इस कॉलेज पर वर्ष 2009 में भी किसी की कभी न हटने वाली बुरी नजर लगी थी.
इसका परिणाम जग जाहिर है. इस बुरी नजर का असर इस कॉलेज पर वर्ष 2012 के माह जुलाई तक रहा. क्या कुछ नहीं हुआ. इस दौरान घटी कई जघन्य घटनाओं ने इस कॉलेज को बद से बदनाम कर दिया.
शैक्षणिक माहौल रसातल में चला गया. कॉलेज का विकास की बजाय विनाश होने लगा. कॉलेज के माथे पर बीएड घोटाले का कलंक का टीका लगा. 18 दिनों तक प्राचार्य के बिना कॉलेज संचालित होने का नया इतिहास रचा गया.
कई मामले थाना तक पहुंचे. हालात इतने बिगड़ गये कि किसी भी वरीय प्रोफेसर प्रभारी प्राचार्य का प्रभार लेने की हिम्मत नहीं दिखायी. ऐसी विकट परिस्थितियों में विश्वविद्यालय प्रबंधन ने कनीय प्रोफेसर डॉ एसपी सिंह को प्रभारी प्राचार्य का ताज पहना दिया. इसके बाद कॉलेज में काफी कुछ बदलाव आया.
सब कुछ ठीक ही चल रहा था, तभी विश्वविद्यालय को वरीयता के आधार पर प्रभारी प्राचार्य बनाने की सुझी और इसकी पहल भी शुरू हो गयी. विश्व विद्यालय प्रबंधन ने ऐसा क्यों किया. किसी राजनीतिबाज के दबाव या फिर विवि के किसी अधिकारी के दबाव में? परिणाम यह निकला कि कॉलेज फिर से अशांत होने लगा.
छात्रों के दो गुट ने आंदोलन शुरू कर दिया. अगर इस बुरी नजर को नहीं हटाया गया, तो कॉलेज में छात्रों के दो गुटों में टकराव होने से भी इनकार नहीं किया जा सकता है.