घाटशिला. घाटशिला प्रखंड के उत्तरी मऊभंडार पंचायत के कापागोड़ा हाइवे किनारे लगभग 20 कालिंदी परिवार बांस की सामग्री बनाकर अपना जीवनयापन करते हैं. ये परिवार पूरे वर्ष विभिन्न प्रकार की बांस की वस्तुएं तैयार और बेचते हैं, जबकि काली पूजा, सोहराय और छठ पर्व के दौरान इनकी बिक्री में उल्लेखनीय बढ़ोतरी होती है. ग्रामीण कंचन कालिंदी ने बताया कि क्षेत्र में लगभग 80 से 85 कालिंदी जनसंख्या है, जिनमें से करीब 20 परिवार मुख्य रूप से बांस की कारीगरी पर आश्रित हैं. त्योहारों के समय छठ पर्व को लेकर ‘दाउरा’ जैसी सामग्री की सबसे अधिक मांग रहती है. उन्होंने बताया कि मऊभंडार बाजार नजदीक होने के कारण घाटशिला अनुमंडल के विभिन्न प्रखंडों से लोग यहां आते हैं और बांस की वस्तुओं के ऑर्डर भी बुक कराते हैं. ये परिवार धान रखने की टोकरी, मुर्गी रखने के ढक्कन, चटाई और अन्य घरेलू उपयोग की वस्तुएं तैयार करते हैं.
बांस की बढ़ती कीमतों ने कारीगरों की परेशानी बढ़ायी
हालांकि, बांस की बढ़ती कीमतों ने इन कारीगर परिवारों की परेशानी बढ़ा दी है. पहले एक बांस की कीमत लगभग 100 रुपये थी, जो अब बढ़कर 150 से 200 रुपये तक पहुंच गयी है, जिससे उनकी आमदनी पर असर पड़ा है. ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें राशन तो मिलता है, लेकिन ‘मंईयां योजना’ का लाभ सभी परिवारों को नहीं मिला है. कुछ को राशि प्राप्त हुई है, जबकि कई अब भी वंचित हैं.
गरीबों के हित में जो काम करेगा, उसे ही देंगे वोट : श्वेता कालिंदी
मानिक कालिंदी की पत्नी श्वेता कालिंदी ने बताया कि वे जर्जर घर में रहने को विवश हैं. तीन परिवारों को ‘अबुआ आवास योजना’ का लाभ मिला है, लेकिन एक दर्जन से अधिक परिवार अभी भी आवास से वंचित हैं. उन्होंने कहा कि कई घर इतने पुराने और कमजोर हैं कि कभी भी दुर्घटना की संभावना बनी रहती है. कई बार पंचायत और प्रखंड के अधिकारी स्थिति का जायजा लेने आए, परंतु अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. श्वेता ने कहा कि हम गरीब लोग या तो रोजगार करें या फिर योजनाओं के लिए प्रखंड कार्यालय के चक्कर लगाएं. उन्होंने बताया कि अबुआ आवास’ और ‘मंईयां सम्मान योजना’ की राशि अब तक नहीं मिली है.
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