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1,50,000 के करीब है जिले में अब भी असाक्षरों की संख्या

अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस आज. साक्षरता अभियान में मिला था तीन दशक पहले राष्ट्रीय पुरस्कार

28776 असाक्षरों को अभियान के तहत किया गया है चिह्नित 16407 असाक्षरों का ही ऑनलाइन डाटा किया गया है अपलोड दुमका. दुमका जिले में आज भी करीब डेढ़ लाख लोग ऐसे हैं, जिन्हें अक्षरज्ञान नहीं है और उन्हें दस्तखत की जगह अंगूठे का निशान लगाना पड़ता है. वे अपना नाम तक नहीं लिख पाते. यह स्थिति उस जिले की है, जिसे साक्षरता के क्षेत्र में राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है. नयी शिक्षा नीति लागू होने के बाद वर्ष 2022 में जिले में नवभारत साक्षरता कार्यक्रम शुरू हुआ, जो फिलहाल ऑनलाइन मोड में चल रहा है. विद्यालय इसकी इकाई के रूप में काम कर रहे हैं. अभियान में अब तक 28,776 निरक्षरों की पहचान की गयी है, जिनमें से 16,407 का डाटा ऑनलाइन अपलोड हो पाया है. इन्हें साक्षर बनाने के लिए 1,903 स्वयंसेवी शिक्षकों का चयन किया गया है और 1,054 जन चेतना केंद्र संचालित हो रहे हैं. शिक्षण सामग्री के रूप में प्रवेशिका पुस्तिका, कॉपी, पेंसिल, ब्लैकबोर्ड आदि उपलब्ध कराए गए हैं. हर साल मार्च और सितंबर में परीक्षा आयोजित की जाती है. इस बार परीक्षा 21 सितंबर को होगी. महिला साक्षरता कार्यक्रम से 8 हजार महिलाएं हुईं साक्षर इससे पहले वर्ष 2021-22 में नीति आयोग के सहयोग से तत्कालीन उपायुक्त रविशंकर शुक्ला की पहल पर महिला साक्षरता कार्यक्रम चलाया गया, जिसके जरिये एक वर्ष में लगभग 8,000 महिलाओं को साक्षर बनाया गया. दुमका में साक्षरता आंदोलन की नींव 1992-93 में संपूर्ण साक्षरता अभियान से रखी गयी. 1995-96 में उत्तर साक्षरता अभियान शुरू हुआ, जो दो साल बाद बंद हो गया. प्रारंभिक दौर में तत्कालीन उपायुक्त अंजनी कुमार सिंह और सचिव एसएस श्रीवास्तव ने आंदोलन का नेतृत्व किया. महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए ‘जागो बहना’ संगठन ने अहम भूमिका निभायी. इसके नेतृत्व में महिलाओं ने न सिर्फ पढ़ना-लिखना सीखा, बल्कि सामाजिक जागरुकता, साइकिल चलाना और नेतृत्व कौशल भी हासिल किया. इस आंदोलन से कई सामाजिक और राजनीतिक नेता उभरे, जिनमें पूर्व सांसद सुनील सोरेन और पूर्व जिला परिषद उपाध्यक्ष सुधीर मंडल शामिल हैं. अकिल बत्ती भवन था कर्मियों का ठिकाना 90 के दशक में चिल्ड्रन पार्क के पास स्थित अकिल बत्ती भवन साक्षरता कर्मियों का मुख्य ठिकाना हुआ करता था. यह भवन साक्षरता कार्यक्रम की निधि के ब्याज से निर्मित हुआ था. बाद में इसे झारखंड अधिविद्य परिषद को कार्यालय के लिए सौंप दिया गया. इसी तरह सृष्टि पहाड़ कुरुवा को ‘साक्षरता पहाड़ी’ कहा जाता था, जहां हर पत्थर पर शिक्षा का महत्व बताने वाले नारे लिखे थे. कब कौन-सा अभियान चला 1992-95: संपूर्ण साक्षरता अभियान फिर उत्तर साक्षरता अभियान 1995-98: सतत शिक्षा कार्यक्रम 2010-18: साक्षर भारत कार्यक्रम 2020-21: पढ़ना-लिखना अभियान 2021-22: महिला साक्षरता कार्यक्रम 2022 से: नव भारत साक्षरता कार्यक्रम 90 के दशक में संपूर्ण साक्षरता अभियान, उत्तर साक्षरता और सतत शिक्षा से लेकर झारखंड राज्य स्थापना के बाद साक्षर भारत कार्यक्रम तक दुमका जिले में साक्षरता का गौरवशाली इतिहास रहा है. वर्तमान में संचालित नवभारत साक्षरता कार्यक्रम नयी शिक्षा नीति के तहत उपायुक्त के मार्गदर्शन और जिला शिक्षा अधीक्षक सह सचिव जिला साक्षरता समिति दुमका के नेतृत्व में चल रहा है, जिसके तहत विद्यालय और गांव टोला स्तर पर महिला पुरुष असाक्षरों को साक्षर करने के लिए जन चेतना केंद्रों का संचालन किया जा रहा है. इस नये कार्यक्रम के क्रियान्वयन में आज कई स्तर पर कई तरह की चुनौती हैं, बावजूद जिला से लेकर प्रखंड तक में हमारी टीम लगी है. हमें विश्वास है कि नवभारत साक्षरता कार्यक्रम में भी दुमका बेहतर करेगा. जिले में साक्षरता के गौरवशाली इतिहास की गरिमा को कायम रखेगा. अशोक सिंह, जिला कार्यक्रम समन्वयक जिला साक्षरता समिति, दुमका तीन दशक तक चले साक्षरता अभियान से दुमका जैसे जिले में साक्षरता दर में काफी बढ़ोतरी हुई है. लोगों में जागरुकता आयी है. बैंक हो या पोस्ट आफिस, खुद से अपना काम कर ले रहे हैं. पर अभी भी असाक्षर लोग हैं. जो अभियान चल रहा, उसमें ओरिएंटेशन की कमी है. जुड़े अधिकारी गांव की ओर नहीं जा रहे. शिक्षकों के पास पहले से ही बहुत सारे काम हैं. उनपर ही इस अभियान की जिम्मेदारी सौंप दी गयी है. एक तो शिक्षक पर पहले से ही कार्यबोझ है. मध्याह्न भोजन से लेकर कई तरह की रिपोर्ट बनाने का काम दिया हुआ है. ऐसे में बच्चे को पढ़ाना जो उनका मूल काम है, वहीं प्रभावित होता है. अब एक घंटे उन्हें असाक्षर को साक्षर करने का दायित्व दिया गया है. ऐसे में यह काम संतोषजनक ढंग से क्रियान्वित होता नहीं दिख रहा. श्याम किशोर सिंह गांधी सेवानिवृत शिक्षक व पूर्व साक्षरताकर्मी.

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