प्रतिनिधि, दुमका नगर दुमका के गोशाला में चल रहे भागवत कथा के तीसरे दिन वृंदावन से आये पंडित नीरज कृष्ण शास्त्री ने संतों की महिमा के बारे में बताया. कहा कि जब राजा परीक्षित की बुद्धि कलियुग के प्रभाव से विकृत हो गयी थी तो उन्होंने ब्राह्मण के प्रति एक ऐसा कृत्य कर डाला जो उनके पूर्वजों में भी किसी ने नहीं किये थे, जिसके कारण उनकी मृत्यु सात दिन में ही सुनिश्चित होने की बात कह दी गयी थी. ये समाचार सुनकर संसार के सारे संत,महात्मा गंगा नदी के तट पर आकर राजा परीक्षित को बचाने का संकल्प लिया. उन लोगों ने ऋषि सुकदेव को प्रकट होने की प्रार्थना की और वे प्रकट होकर भगवान की ऐसी अमृतमयी कथा सुनाई जिससे राजा परीक्षित का मार्ग निष्कंटक हो गया. उन्होंने यह भी बताया कि अगर कोई मनुष्य ध्यान मग्न होकर भगवान के कथा को सुन ले तो उन्हें समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है. श्रृष्टि क्रम के वर्णन में ब्रह्मा को शक्ति प्रदान करने के क्रम में भगवान ने चतुश्लोकी भागवत का उपदेश दिया. सती चरित्र और ध्रुव चरित्र में समर्पण और भक्ति का उदाहरण प्रस्तुत किया. इस अवसर पर ध्रुव राजा की एक मनमोहक झांकी भी प्रस्तुत की गयी.
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