प्रतिनिधि, रामगढ रामगढ़ के मयूरनाथ में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के पांचवे दिन कथा व्यास ने भगवान श्री कृष्ण की बाल लीला का वर्णन किया. कहा कि धनवान व्यक्ति वही है, जो अपने तन, मन, धन से भगवान की सेवा और भक्ति करे. परमात्मा की प्राप्ति सच्चे प्रेम से ही संभव है. पूतना चरित्र का वर्णन करते कहा कि पूतना राक्षसी कंस के कहने पर बालकृष्ण की हत्या के लिए आयी थी. उसने उन्हें उठा लिया. स्तनपान कराने लगी. स्तन पर घातक विष का लेप था. पर श्रीकृष्ण ने स्तनपान करते हुए ही पूतना का वध कर उसका कल्याण किया. माता यशोदा भगवान श्री कृष्ण को पूतना के वक्षस्थल से उठाकर लाने के बाद पंचगव्य से स्नान कराती है. उन्होंने कहा कि भगवान श्री कृष्ण को गाय अत्यंत प्रिय है. इसलिए हम सभी को गो-माता की सेवा, गायत्री का जाप और गीता का पाठ अवश्य करना चाहिए. गाय की सेवा से 33 कोटि देवी-देवताओं की सेवा हो जाती है. कहा कि असुरों के अत्याचार से पीडित पृथ्वी ने गाय का रूप धारण करके श्रीकृष्ण को पुकारा तथा पृथ्वी के भार का हरण करने की प्रार्थना की. तब श्रीकृष्ण पृथ्वी पर आये, इसलिए वह मिट्टी में नहाते, खेलते और खाते हैं. ताकि पृथ्वी का उद्धार कर सके. जब गोप बालकों ने जाकर यशोदा माता से शिकायत करते हुए कहा कि मां तेरे लाला ने माटी खाई है तो यशोदा माता हाथ में छड़ी लेकर दौड़ी आयी. बाल कृष्ण से कहा अच्छा तू अपना मुख खोल. माता के ऐसा कहने पर श्रीकृष्ण ने अपना मुख खोल दिया, उनके मुख खोलते ही यशोदा ने देखा कि मुख में चर-अचर सम्पूर्ण जगत विद्यमान है. श्री कृष्ण ने देखा कि मैया ने तो मेरा असली तत्व ही पहचान लिया है. सोचा यदि मैया को यह ज्ञान बना रहता है, तो फिर तो वह मेरी नारायण के रूप में पूजा करेगी. न तो अपनी गोद में बैठायेगी, न दूध पिलायेगी और न मारेगी. इस उद्देश्य के लिए मैं बालक बना वह तो पूरा होगा ही नहीं. इसलिये यशोदा माता तुरंत उस घटना को भूल गयीं. साध्वी ध्यान मूर्ति जी ने कहा कि आज कल की युवा पीढ़ी अपने धर्म, अपने भगवान को नहीं मानती. वास्तव में उन्हें अपने धर्म का ज्ञान ही नहीं है. कहा कि अपने धर्म का ज्ञान हम सबको होना चाहिए. मौके पर कई कथा प्रेमी मौजूद थे.
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