हेमंत सोरेन इस बार दो विधानसभा सीटों (दुमका और बरहेट) से चुनाव लड़े और दोनों ही जगहों से जीत गये. सोमवार को नयी सरकार के पहले विधानसभा सत्र के दौरान उन्होंने दुमका सीट छोड़ने की आधिकारिक घोषणा की. यानी मुख्यमंत्री श्री सोरेन बरहेट विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करेंगे.जैसे ही यह खबर बरहेट विधानसभा क्षेत्र के लोगों को मिली, उनके चेहरे खिल उठे और उनकी उम्मीदें अंगड़ाई लेने लगी. यह लाजिमी भी है, क्योंकि इस इलाके को आज भी विकास की रोशनी का इंतजार है. सुंदरपहाड़ी ब्लॉक भी इन्हीं में शामिल है. पहाड़िया जनजाति बहुल इस इलाके के लोगों की परेशानियों और उम्मीदों को जानने का प्रयास किया है प्रभात खबर ने.
प्रवीण तिवारी
सुंदरपहाड़ी : गोड्डा जिले का सुंदरपहाड़ी ब्लॉक वर्ष 1963 में अस्तित्व में आया था. जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर इस ब्लॉक में 13 पंचायतें और 298 गांव हैं. इनमें से 141 गांवों में पहाड़िया जनजाति के लोगों की बहुलता है.
पहाड़ की चोटी पर बसा चैबो गांव भी इन्हीं में से एक है. यहां भी स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, बिजली, राशन, वृद्धा व विकलांग पेंशन जैसी समस्याएं हैं, लेकिन सबसे ज्यादा परेशानी पेयजल की है. अब यहां के लोगों में आस जगी है कि उनकी विधानसभा से जीत कर मुख्यमंत्री बने हेमंत सोरेन उनकी समस्याओं का समाधान करेंगे.
चैबो गांव पहाड़ी की चोटी पर बसा हुआ है. यहां के लोगों का जीवन अन्य गांवों की तुलना में ज्यादा कठिन है. ऐसा नहीं है कि पूर्व की सरकारों ने इस क्षेत्र के लिए योजनाएं नहीं बनायीं. सच्चाई यह है कि ये योजनाएं यहां के लोगों तक पहुंची ही नहीं.
इलाके के लोगों को पिछले कुछ महीनों से बिजली के दर्शन हो रहे हैं. कुछ सड़कें बनी हैं, तो कुछ कच्ची हैं. लेकिन, सुदूर गांवों के हालात बदतर हैं. सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद यहां के हालात बताने के लिए कवयित्री निर्मला पुतुल की लिखी ये पंक्तियां सटीक हैं ‘तुम्हारी दुनिया से बहुत दूर है अभी दुमका भी’ सुंदरपहाड़ी इलाके के लिए मलेरिया, कालाजार और टीबी अभिशाप की तरह हैं. गंभीर मरीजों को समय पर जिला अस्पताल पहुंचाना भी गंभीर चुनौती है.
यहां की स्वास्थ्य व्यवस्था एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और 15 स्वास्थ्य उप केंद्रों के भरोसे चल रही है. पहाड़ पर डमरू में एक अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र है, लेकिन डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर हमेशा सवाल उठता रहता है. हालांकि, राशन मिलता है, इसके बावजूद कुपोषण यहां की बड़ी समस्या है. महीने भर पहले डाक सेवा शुरू हुई है.
शिक्षा की स्थिति बदतर, स्कूल केवल गिनाने को हैं
चैबो में ही चार अनाथ बच्चे जलेसर पहाड़िया, देवा पहाड़िया, बामड़ा पहड़िया और सुरजिन पहाड़िन दिखे. पिता कमला पहाड़िया की मौत दो साल पहले हुई है, जबकि मां चांदी पहाड़िन की मौत पांच साल पहले ही हो गयी थी. तीनों भाई यहीं के एक मिशनरी स्कूल के भरोसे हैं, जबकि सुरजिन स्कूल नहीं जाती है. ये बच्चे पहाड़िया आवासीय, एकलव्य या कस्तूरबा स्कूल के बारे में नहीं जानते हैं. बारीकी से जब देखेंगे, तो पायेंगे कि पहाड़ को हमेशा से बिजनेस सेंटर में तब्दील करने की कोशिश होती रही है.
भोले-भाले पहाड़ पर के लोग सेठ-साहुकारों के शोषण का भी शिकार होते हैं. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बरहेट सीट अपने लिए रखी है. इसलिए यहां के लोगों की उम्मीदें बढ़ गयी हैं. ये लोग चाहते हैं कि सरकार योजनाओं को पहाड़ पर उतारे. यानी सरकार को ‘मंगलेश डबराल’ के लिखे को ध्यान में रखकर काम करने की जरूरत है कि- जंगल में औरतें हैं/ लकड़ियों के नीचे बेहोश/ जंगल में बच्चे हैं/ असमय दफनाये जाते हुए/ जंगल में कुल्हाड़ियां चल रही हैं/ जंगल में सोया है रक्त.
एक नजर में सुंदरपहाड़ी ब्लॉक
1963 में अस्तित्व में आया सुंदरपहाड़ी ब्लॉक, जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर है
13 पंचायत और 298 गांव हैं इस ब्लॉक में, जिनमें से 141 गांव पहाड़िया बहुल हैं
65 हजार से अधिक की आबादी है इलाके की, जिसमें करीब 32 हजार महिलाएं हैं
77 गांव तक ही पहुंची है बिजली, इलाके की साक्षरता दर मात्र 36.97 फीसदी
क्षेत्र के विधायक अब हैं मुख्यमंत्री, तो अंगड़ाई लेने लगीं उम्मीदें
पहाड़ की चोटी पर बसे चैबो समेत अन्य गांवों में स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, बिजली, राशन, पेंशन आदि की हैं समस्याएं
सबसे ज्यादा परेशानी पेयजल की, गंभीर मरीजों को समय पर जिला अस्पताल तक पहुंचना भी गंभीर चुनौती
अब भी झरने और कुएं का पानी पीते हैं लोग
चैबो गांव का मैसा पहाड़िया दृष्टि बाधित है. उसे कुछ दिखाई नहीं पड़ता, लेकिन विकास के मायने वह भी समझता है. कहता है : यहां पीने के पानी का जुगाड़ करना सबसे बड़ी चुनौती है. अब भी लोग झरने और कुएं का पानी पीते हैं. सरकार से गुजारिश है कि वह सबसे पहले पानी की व्यवस्था करे. वहीं, थोड़ा पढ़ा-लिखा सुनील कहता है कि यहां पहाड़ पर स्थिति पहले से बेहतर हुई है. थोड़ा-बहुत काम भी हुआ है. चूंकि अब मुख्यमंत्री हमारे ही विधानसभा क्षेत्र से हैं, तो उनसे गुजारिश है कि वे क्षेत्र का विकास करें. तेलो गांव में भात पकाती 70 साल की सुरजिन पहाड़िन मिली. वह चल-फिर नहीं सकती. पूछने पर कहा कि उसे कोई पेंशन नहीं मिलती है. यहीं की दिव्यांग जोमि पहाड़िन को भी पेंशन नहीं मिलती है.