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Durga Puja: धनबाद के लिलौरी मंदिर में नवरात्र के मौके पर होती है विशेष साधना, 400 वर्षों पुराना है इतिहास

चार सौ साल पुराने लिलौरी मंदिर की स्थापना कतरास के राजा सुजान सिंह ने की थी. भक्तों का ऐसा मानना है कि यहां मांगी हुई हर मन्नत मां पूरी करती है. दुर्गा पूजा में तो यहां महा आरती होती जिसमें हजारों की संख्या में भक्तों का जुटान होता है.

Durga Puja, कामदेव सिंह( कतरास) : झारखंड के प्रमुख तीर्थ स्थल में शुमार कतरास की लिलौरी मंदिर की ख्याति दूर-दूर फैली है. कतरी नदी किनारे में स्थित इस मंदिर में जो भी भक्त सच्चे मन से कोई मन्नत मांगता है. वह मन्नत अवश्य पूरी होती है. धनबाद-बोकारो फोरलेन के सड़क किनारे बसी लिलौरी मंदिर का इतिहास चार सौ वर्ष से अधिक पुरानी है.

दुर्गा पूजा में होती है अलग ही छटा

नवरात्र शुरू होते ही यहां की छटा ही बदल जाती है. हर दिन मां की अराधना की जाती है. नौ दिनों तक यहां विशेष पूजा, आरती व प्रसाद का वितरण किया जाता है. यह मंदिर कतरास राजपरिवार की कुलदेवी है. कतरास राज परिवार के राजा सुजान सिंह ने इस मंदिर का निर्माण कराया था. नवरात्र के दौरान कतरास राजपरिवार के लोग यहां हर दिन पूजा करने पहुंचते है.

राजपरिवार के लोग मां को ले जाते हैं अपने घर

सप्तमी के दिन राजपरिवार मां लिलौरी का आह्वान कर राजबाड़ी (अपने घर) ले जाते है. विजयादशमी के दिन प्रतिमा विसर्जन के बाद मंदिर के रास्ते में हाड़ी फोड़कर मां को वापस मंदिर लाया जाता है. साधक भी यहां अपनी साधना के लिये पहुंचते है.पहले मंदिर की पूजा-अर्चना कर निकट स्थित शशांक में अपनी साधना में लीन रहते है.

विदेश से भी भक्त आते हैं मां के दर्शन के लिए

यहां के पुजारी हराधन बनर्जी व काजल ठाकुर बताते है कि इस मंदिर में ना सिर्फ धनबाद जिले के लोग बल्कि पड़ोसी जिले के साथ-साथ दूसरे प्रांत से भक्त पहुंचते है. नवरात्र में तो विदेश से भी भक्त यहां पूजा व मन्नत पूरी होने पर माथा टेकने आते है.यहां नौ दिनों तक नौ स्वरूप मां की पूजा होती है. नवरात्र में शाम को होने वाली महाआरती की एक अलग ही महत्ता है. हजारों लोग महाआरती में सम्मलित होते है. यहां अखंड जोत जलती रहती है. इस बार नवमी शुक्रवार को है. इसी दिन बलि दी जायेगी.

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