Dhanbad News: आइआइटी आइएसएम धनबाद में गुरुवार को ‘आत्मनिर्भर रक्षा क्षेत्र : शिक्षा जगत की भूमिका’ पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया. संगोष्ठी में आत्मनिर्भर रक्षा क्षमताओं के विकास में शैक्षणिक संस्थानों की भूमिका पर विस्तार से चर्चा की गयी. कार्यक्रम का आयोजन डीन, नवाचार, इनक्यूबेशन व उद्यमिता (आइआइइ) कार्यालय द्वारा किया गया. स्वागत भाषण में आइआइटी आइएसएम के निदेशक प्रो सुकुमार मिश्रा ने कहा कि राष्ट्र निर्माण में शिक्षा व अनुसंधान की अहम भूमिका है. इसे रक्षा विकास से जोड़ा जाना चाहिए. संगोष्ठी के मुख्य अतिथि रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (इलेक्ट्रॉनिक्स व संचार प्रणाली) के महानिदेशक डॉ बीके दास ने उद्घाटन भाषण में कहा कि आत्मनिर्भरता व स्वदेशी प्रणालियों का विकास आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है. उन्होंने 22 मई, 1989 को भारत द्वारा पहली अग्नि बैलिस्टिक मिसाइल के सफल प्रक्षेपण की ऐतिहासिक उपलब्धि को याद किया व बताया कि भारत ने मिसाइल व विमान निर्माण जैसे क्षेत्रों में एएमसीए व एलसीए के माध्यम से उल्लेखनीय प्रगति की है. डॉ दास ने कहा कि रक्षा बजट में तीन सौ प्रतिशत की वृद्धि के चलते तकनीकी विकास को नयी दिशा मिली है. उन्होंने आधुनिक युद्ध की बदलती परिभाषा पर प्रकाश डालते हुए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का उदाहरण दिया व बताया कि कैसे ड्रोन स्वार्म व लेज़र-आधारित एंटी-ड्रोन तकनीक भविष्य की लड़ाइयों का हिस्सा बन रही हैं. उन्होंने भारत को रक्षा तकनीक के निर्यातक के रूप में स्थापित करने की जरूरत पर बल दिया. डॉ दास ने संस्थान की शोध व नवाचार क्षमताओं की सराहना करते हुए इसे भविष्य के रक्षा परिदृश्य में एक मजबूत स्तंभ बताया. इस अवसर पर डीआरडीओ के फ्यूचरिस्टिक टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट निदेशालय के वैज्ञानिकों ने शैक्षणिक संस्थानों के साथ सहयोग और परियोजना वित्तपोषण की संभावनाओं पर व्याख्यान दिया.
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