गिरजेश पासवान, धनबाद : टुन्ना महतो (नाम बदला हुआ) ने एक पखवारा पहले धनबाद जेल की सरजमीं पर दस्तक दिया था. पुलिस द्वारा गिरफ्तार यह अभियुक्त किसी गंभीर मामले में यहां लाया गया था. उसे आया देख जेल में मौजूद कुछ खास कैदियों से लेकर वर्दी पहने लोगों तक के चेहरे पर कुटील मुस्कान फैल गयी. आंखें इशारे कर रही थीं, तो जुबान कुछ कहने को बेताब था.
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आमद से खर्चा तक के खेल में दबंग कैदी मालामाल
गिरजेश पासवान, धनबाद : टुन्ना महतो (नाम बदला हुआ) ने एक पखवारा पहले धनबाद जेल की सरजमीं पर दस्तक दिया था. पुलिस द्वारा गिरफ्तार यह अभियुक्त किसी गंभीर मामले में यहां लाया गया था. उसे आया देख जेल में मौजूद कुछ खास कैदियों से लेकर वर्दी पहने लोगों तक के चेहरे पर कुटील मुस्कान फैल […]
तभी कैदियों के बीच से एक आवाज उठी-‘नया आमद आया है.’ टुन्ना महतो भौंचक था. उसे क्या पता था कि ‘आमद’ उससे होने वाली कमाई के लिए प्रयुक्त एक शब्द है.
दरअसल, धनबाद जेल का भीतरी हिस्सा शुरू से ही चर्चा का केंद्र रहा है. इसमें कैदियों से होने वाली कमाई या उन पर होने वाली प्रताड़ना शामिल है. जेल के सूत्र बताते हैं कि जेल में कैदियों के आगमन पर उनके लिए आमद का संबोधन किया जाता है. वहीं बाहर निकलने पर ‘खर्चा जा रहा है भाई’ कहा जाता है.
अरे आमद आया है, डेउढ़ी में हाजिर तो करो जैसे जेल में प्रयोग होने वाले वाक्य शायद ही आम लोगों की समझ में आये, मगर जेल में इनका खूब इस्तेमाल किया जाता है. इन शब्दों का इस्तेमाल कर कैदियों की खरीद-बिक्री की जाती है. जानकार बताते हैं कि धनबाद जेल में कैदियों की खरीदारी का खेल जम कर चलता है. यह कोई नयी बात नहीं है.
अरे आमद आया है, डेउढ़ी में हाजिर तो करो
आमद जेल में घुसते ही डेउढ़ी यानी जेल कार्यालाय में हाजिरी देता है. हाजिरी देने के बाद पहले दिन उसे आमद सेक्टर (वार्ड) में गुजारना पड़ता है. अगले दिन उसकी बोली लगती है. सेक्टर (वार्ड) के इंचार्ज उसे खरीद लेते हैं. खरीदारी से पहले उसके खानदान की जानकारी ली जाती है. वह किस परिवार से ताल्लुक रखता है, कितना पैसा दे सकता है, ये सारी जानकारी वार्ड इंचार्ज उससे पूछते हैं. वार्ड इंचार्ज भी कोई कैदी ही होता है.
उसका सिक्का जेल में चलता है. बोली लगाकर खरीदने के बाद कैदी को अपनी सुरक्षा के लिए वार्ड इंचार्ज को पैसा देना पड़ता है. अगर वह पैसा देने में असमर्थ होता है तो उसे प्रताड़ित किया जाता है.
धनबाद जेल में ऐसी कोई बात नहीं है. यहां किसी कैदी की खरीद-बिक्री नहीं होती है. जेल को बदनाम करने के लिए ऐसी बातें बनायी जाती हैं.
अजय प्रजापति, जेल अधीक्षक, मंडल कारा, धनबाद
15 हजार से तीन लाख तक की बोली
वार्ड इंचार्ज 15 हजार से तीन लाख तक की बोली नये आमद की लगाता है. नया आमद खूनी, चोर, डकैत आदि कुछ भी हो सकता है. बोली लगाने के बाद आमद उस वार्ड इंचार्ज का हो जाता है. उसके बाद खरीदे दाम से अधिक उससे पैसे लिये जाते हैं.
जब तक आमद बिक नहीं जाता है, उसे बढ़िया ‘फाइल’ नहीं मिलती है. उसे जेल में प्रताड़ित भी किया जाता है. हालांकि ‘फाइल’ का मतलब जेल में खाना होता है.
आम लोगों को जेल की ‘फाइल’ का मतलब समझ में भी नहीं आता होगा, मगर ‘फाइल’ शब्द का इस्तेमाल कैदियों के अलावा जेल के कर्मचारी व अधिकारी भी करते हैं. हालांकि कोई बड़ा नेता या अपराधी को खरीदने या बेचने की हिम्मत किसी भी वार्ड इंचार्ज की नहीं होती है. उनकी फाइल भी समय से जेल में जाती है.
लंबरदार रखते हैं कैदियों पर नजर
लंबरदार यानी जमादार की जेल में अहम भूमिका होती है. वार्ड इंचार्ज से लेकर अन्य कैदियों पर नजर रखने की जिम्मेदारी इन्हीं पर होती है. बिना इनकी मर्जी के किसी की फाइल जेल में नहीं जा सकती है. जेल में गुमटी का भी खास महत्व होता है.
हालांकि गुमटी शब्द का इस्तेमाल होते ही लोगों को गुटखा, सिगरेट नजर आने लगता है. आम लोग सोचेंगे कि जेल में गुमटी की क्या जरूरत. मगर यहां गुमटी का मतलब वॉच टावर है. जहां तैनात संत्री कैदियों पर हमेशा नजर बनाये रखते हैं. रात में इस गुमटी से सबकी निगरानी की जाती है.
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