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समाचार पत्र विक्रेता बंधुओं के प्रति आभार, क्योंकि… कड़कड़ाती ठंड हो या फिर मूसलधार बारिश नींद गंवा कर हम सब तक पहुंचाते हैं अखबार
ठंड के मौसम में सुबह नींद खुलने के बाद भी रजाई या कंबल से निकलने का मन नहीं करता. फिर जब रजाई व कंबल से बाहर आते हैं, तो घर की बालकनी या बरामदा में, दरवाजा के भीतर से आये या फिर दरवाजा की हैंडिल में फंसा कर रखे आपके अखबार ‘प्रभात खबर’ पर आपकी […]
ठंड के मौसम में सुबह नींद खुलने के बाद भी रजाई या कंबल से निकलने का मन नहीं करता. फिर जब रजाई व कंबल से बाहर आते हैं, तो घर की बालकनी या बरामदा में, दरवाजा के भीतर से आये या फिर दरवाजा की हैंडिल में फंसा कर रखे आपके अखबार ‘प्रभात खबर’ पर आपकी नजर पड़ती है. ठंड के मौसम में गरम चाय की चुस्कियों के साथ ‘प्रभात खबर’ पढ़ने का मजा ही कुछ और है. आपके जिले, आपके शहर, आपके राज्य, बिहार, कारोबार, खेल, फिल्म जगत समेत देश-दुनिया की खबरों से भरा ‘प्रभात खबर’ सुबह-सवेरे आपके हाथ में होता है.
लेकिन खबरों से भरा आपका ‘प्रभात खबर’ सुबह-सवेरे आप तक पहुंचाता कौन है? जी हां, आपका ‘समाचार पत्र विक्रेता बंधु.’ सर्दी के जिस मौसम में सुबह-सवेरे हमें रजाई या कंबल से निकलने का मन नहीं करता, वैसे मौसम में ‘समाचार पत्र विक्रेता बंधु’ अपने घर से निकल जाते हैं, हम सब तक ‘प्रभात खबर’ पहुंचाने के लिए. सर्दी के मौसम में हवा के साथ हल्की फुहार हो, घना कोहरा हो या फिर शीतलहर, हमारे सोकर उठने से पहले या फिर सोकर उठने के साथ ही हम तक अखबार पहुंचा देते हैं ‘समाचार पत्र विक्रेता बंधु.’ और सर्दी ही क्यों? झमाझम व मूसलधार बारिश हो या फिर गर्मी का मौसम, अलग-अलग तरह की प्राकृतिक चुनौतियों-परेशानियों को झेलते हुए हम सभी तक अखबार पहुंचाते हैं-‘समाचार पत्र विक्रेता बंधु.’ खबरों से भरे अखबार को पाठकों तक पहुंचानेवाले समाचार पत्र विक्रेता बंधुओं की जिंदगानी बयां करता ‘प्रभात खबर’ का यह खास आयोजन.
श्रीकांत महतो. गोविंदपुर
पिता के बाद उठायी परिवार की जिम्मेदारी बहन की शादी की, भाइयों को पढ़ाया
आ ज के दौर में जब संयुक्त परिवार बिखर रहे हैं, ऐसे में अखबार वितरक श्रीकांत महतो की जिंदगी प्रेरणास्रोत है. श्रीकांत जब कक्षा नौ के छात्र थे, तभी अचानक उनके पिताजी का असामयिक निधन हो गया. श्रीकांत पर पूरे परिवार की जिम्मेदारी आ गयी. मां, छोटी बहन, दो छोटे भाइयों की जिम्मेदारी का श्रीकांत ने पूरे हौसले के साथ निर्वहन किया. परिवार चलाने के लिए रोजगार की तलाश के दौरान श्रीकांत को अखबार वितरण का काम दिखा.
उन्होंने तत्काल काम शुरू कर दिया. अखबार वितरण का काम करते हुए श्रीकांत न सिर्फ अपने पैरों पर खड़े हुए, बल्कि परिवार की जिम्मेदारी भी उठायी. अखबार बेचकर श्रीकांत ने छोटी बहन गांगी देवी की शादी धूमधाम से की. दोनों छोटे भाइयों नारायण महतो एवं प्राण प्रसाद महतो को काबिल बनाया. नारायण महतो जहां एमएससी के बाद बीएड कर रहा है, वहीं प्राण प्रसाद महतो पॉलिटेक्निक से मैकेनिकल इंजीनियरिंग कर रहा है. घर-परिवार के प्रति बढ़ी जवाबदेही को देखकर दोनों भाई भी अब अखबार वितरण के काम में श्रीकांत की मदद कर रहे हैं. श्रीकांत बताते हैं कि ‘10 अखबार से शुरू वितरण कार्य आज 620 अखबार तक पहुंच गया है.
सच्चे मन और ईमानदारी से किया गया कार्य कभी व्यर्थ नहीं जाता है. कोई काम छोटा बड़ा नहीं होता. अखबार वितरण कार्य ने मेरे परिवार को सहारा दिया है.’ 15 वर्षों से अखबार वितरण का कार्य कर रहे श्रीकांत ने बताया कि अखबार बेचने के दौरान कुछ राशि पाठकों के पास फंस जाता है, मगर धीरे-धीरे आ भी जाती है. पहले के पाठक एक ही अखबार लेते थे. आज कई ऐसे भी पाठक हैं, जो कई-कई अखबार लेते हैं. पहले के पाठक चाय-पान की दुकान में जाकर अखबार पढ़ लेते थे, लेकिन आज बड़े पैमाने पर पाठक खरीदकर अखबार पढ़ते हैं.
प्रभात खबर का कोई जोड़ नहीं
सबसे अधिक प्रभात खबर बेचनेवाले अखबार वितरक श्रीकांत महतो बताते हैं कि प्रभात खबर की मांग काफी है. प्रभात खबर के ग्राहकों को दूसरा कोई अखबार देने पर भड़क जाते हैं. आज गोविंदपुर व आस-पास के इलाके में मैं सबसे ज्यादा प्रभात खबर बेचता हूं. लोकल खबरों में प्रभात खबर का कोई जोड़ नहीं.
श्याम सुंदर पांडेय. बाघमारा
पुलिस की नौकरी छोड़ 39 वर्षों से बांट रहे हैं अखबार
बा घमारा में ‘पेपरवाले पंडित जी’ के नाम से चर्चित श्याम सुंदर पांडेय का जुनून उनकी उम्र पर भारी दिखता है. बाघमारा क्षेत्र के सबसे पुराने और पाठकों के बीच लोकप्रिय समाचार पत्र वितरक पंडित जी 60 वर्ष की उम्र में भी सुबह-सबेरे उठकर पाठकों तक अखबार पहुंचाने निकल जाते हैं. भीमकनाली पंचायत के बड़ापांडेय निवासी पंडित जी के पिता रामरतन पांडेय क्षेत्र के जमींदार थे. आर्थिक तौर से संपन्न होने के बाद भी पंडित जी ने अखबार वितरण का काम शुरू किया. पंडित जी ने वर्ष 1979 में अखबार वितरण का काम शुरू किया. उस समय पूरे क्षेत्र में पंडित जी इकलौते न्यूज पेपर हॉकर थे.
उस समय पंडित जी धनबाद से प्रकाशित अखबारों के अलावा पटना, रांची, नयी दिल्ली, कोलकाता से आनेवाले हिंदी, अंग्रेजी व बांग्ला के 250-300 अखबार प्रतिदिन बेचते थे. पंडित जी बताते हैं-‘उस दौर में अखबार की कीमत 30-34 पैसे हुआ करती थी. धनबाद में अखबारों के एजेंट के पास आकर हर रोज अखबार ले जाते थे. फिर साइकिल से सुबह से दोपहर दो बजे तक बाघमारा, बरोरा, डुमरा, केशरगढ़, टूंडू, महेशपुर, खरखरी, फुलारीटांड़, मंदरा, हरिणा, मुराईडीह, मधुबन व गणोशपुर आदि जगहों में घूम-घूम कर पाठकों के बीच अखबार पहुंचाते थ़े अखबार बेचकर महीने में 250 रुपये कमाते थ़े उसी कमाई में घर चलाता था.’ पंडित बताते हैं कि अखबार बेचने के दौरान ही उन्हें बीसीसीएल एवं बिहार पुलिस में नौकरी मिली़ लेकिन अखबार बेचने का काम इतना पसंद था कि दोनों नौकरी छोड़ दी. इस दौरान पंडित जी ने दर्जनों लोगों को अखबार बेचने के काम से जोड़ा.
अखबार पढ़ने को लेकर काफी रुचि थी
पंडित जी बताते हैं- वह दौर ही कुछ और था. पाठकों में अखबार पढ़ने को लेकर काफी रुचि रहती थी. दो दिन बाद भी पुराना पेपर खोजकर लोग पढ़ते थे. विशेष कर पान गुमटी, होटल व राशन दुकानदार तो नियमित पाठक थ़े अखबारों में स्थानीय खबरें नहीं के बराबर छपती थीं. बावजूद इसके पाठक अखबार को बहुत ही चाव से पढ़ते थ़े 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या और उसके बाद हुए दंगा के दौरान 10 किलोमीटर दूर गोमो से पैदल जाकर पेपर लाता था. काफी परेशानी झेलनी पड़ी. फिर भी पाठकों के बीच पेपर पहुंचाना बंद नहीं किया़ उस दौर में जब अखबारों में मैट्रिक का रिजल्ट छपता था, उस दिन अखबारों की बिक्री काफी बढ़ जाती थी. पाठक खुशी-खुशी अखबार की कीमत से ज्यादा पैसे देते थ़े
पाठकों की संख्या बढ़ी है, प्रभात खबर सभी की पसंद
पंडित जी का मानना है कि पहले की तुलना में अभी के दौर में 90 प्रतिशत पाठकों की संख्या बढ़ी है़ जाहिर है कि अखबार भी बढ़ा़ क्षेत्र में प्रतिदिन करीब 6000 अखबार की बिक्री होती है़ पहले बुद्धिजीवी, सेठ-साहूकार, शिक्षक या अधिकारी वर्ग के लोग ही अखबार खरीदते थ़े आज आम मजदूर भी अखबार का पाठक है़ क्षेत्र में रिपोर्टरों की संख्या बढ़ी है, तो क्षेत्रीय खबर भी प्रमुखता से छपते हैं. मेरा अनुभव है कि आज पाठक वर्ग स्थानीय खबरों के कारण ही अखबार खरीदते हैं.
कारण देश-दुनिया की छोटी-बड़ी खबरें न्यूज चैनल पर देख लेते हैं. लोकल खबरों में प्रभात खबर का कोई जोड़ नहीं है. प्रभात खबर की खबरों की विश्वसनीयता के कारण आम मजदूर से लेकर अफसर ग्रेड के लोग भी प्रभात खबर को विशेष प्राथमिकता देते हैं.
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