वरीय संवाददाता, देवघर . बाल अधिकारों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए कार्यरत चेतना विकास की ओर से देवघर में अक्षय तृतीया और शादी के मौसम को देखते हुए बाल विवाह की रोकथाम के लिए जागरुकता अभियान चलाया गया. अभियान के तहत विवाह संपन्न कराने वाले पंडितों को बाल विवाह के खतरों और कानूनी प्रावधानों के प्रति जागरूक किया गया, जिसकी सभी धर्मगुरुओं ने सराहना की और इस अभियान को समर्थन देते हुए बाल विवाह न कराने की शपथ ली. गौरतलब है कि चेतना विकास, देशभर में बाल अधिकारों के लिए कार्यरत संगठन है, जो 2030 तक भारत को बाल विवाह मुक्त बनाने के उद्देश्य से चाइल्ड मैरिज फ्री इंडिया अभियान चला रही है. जिले में चेतना विकास ने प्रशासन के सहयोग से 2023-24 में ही होने वाले बाल विवाहों को सफलतापूर्वक रोकने का आंकड़ा पेश किया.
संस्था की निदेशिका ने कहा, बाल विवाह एक दंडनीय अपराध
संस्था की निदेशिका रानी कुमारी ने बताया कि बाल विवाह निषेध अधिनियम (पीसीएमए), 2006 के तहत यह एक दंडनीय अपराध है, जिसमें शामिल किसी भी व्यक्ति-चाहे वह बाराती हो, हलवाई, डेकोरेटर या विवाह संपन्न कराने वाला पंडित या मौलवी-को दो साल तक की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि बाल विवाह असल में बच्चों के साथ होने वाली हिंसा और शोषण है और 18 वर्ष से कम आयु की बच्ची से विवाह के बाद यौन संबंध बनाना पॉक्सो एक्ट के तहत बलात्कार माना जाता है. इस अभियान में पंडितों और मौलवियों के बढ़ते सहयोग के साथ-साथ सोमवार को रामराज आश्रम देवघर में आयोजित कार्यक्रम में 32 गांव के युवक व युवतियों ने बाल विवाह नहीं करने और न करने देने की शपथ ली.
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