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रिखियापीठ से विश्व को सेवा व दान का संदेश

रिखियापीठ: स्वामी सत्यानंदजी की तपोभूमि रिखियापीठ में ध्वजारोहण व अग्नि मंथन के साथ शतचंडी महायज्ञ सह सीता कल्याणम् रविवार से शुरू हो गया. स्वामी निरंजनानंद व स्वामी सत्संगीजी की उपस्थिति में पंडितों ने मंत्रोच्चारण के साथ गुरु पूजा की. रिखिया की कन्याओं ने नृत्य से गुरु की आराधना की. देश-विदेश से आये भक्त देवी मां […]

रिखियापीठ: स्वामी सत्यानंदजी की तपोभूमि रिखियापीठ में ध्वजारोहण व अग्नि मंथन के साथ शतचंडी महायज्ञ सह सीता कल्याणम् रविवार से शुरू हो गया. स्वामी निरंजनानंद व स्वामी सत्संगीजी की उपस्थिति में पंडितों ने मंत्रोच्चारण के साथ गुरु पूजा की. रिखिया की कन्याओं ने नृत्य से गुरु की आराधना की. देश-विदेश से आये भक्त देवी मां व गुरु की भक्ति में लीन हो गये. अनुष्ठान में विश्व के कोने-काने से आये भक्तों ने सेवा, दान व प्रेम के संगम में डुबकी लगायी.
आध्यात्मिक ऊर्जा से सराबोर रिखियापीठ में जरूरतमंदों के बीच रोजगार के साधन वितरण किये गये. अनुष्ठान में पहले ओड़िशा से आयी कीर्तन मंडली के कीर्तन पर विदेशी भक्त भी झूम उठे. पहले दिन श्री राम की प्रतिमा स्थापित की गयी व 23 नवंबर को राम-सीता विवाह होगा.
संन्यासी का धर्म बहुजन हिताय : स्वामी निरंजनानंद
पद्म भूषण से सम्मानित स्वामी निरंजनानंदजी ने कहा कि रिखिया परमहंस स्वामी सत्यानंदजी की तपोभूमि है. तपस्या का अर्थ एक टांग पर खड़ा होना व अग्नि को झेलना नहीं, बल्कि संकल्पों को सिद्ध करना है. तपस्या एक माध्यम है. तपस्या से संकल्प की शक्ति मिलती है. स्वामी सत्यानंदजी की तपस्या के उद्देश्य से संसार में आध्यात्मिक जागृति आयी है. संन्यासी का धर्म बहुजन हिताय व बहुजन सुखाय है. सेव, दान व प्रेम अाध्यात्मिक शक्ति प्रदान करने के लिए एक आधार है. रिखियापीठ से विश्व तक यह संदेश पहुंचाने के लिए स्वामीजी ने पीठाधीश्वरी स्वामी सत्संगीजी को माध्यम के रूप में चयन किया है.

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