देवघरः राजधानी रांची समेत झारखंड के कई जिलों में आपराधिक घटनाओं पर जो आकड़े जारी हो रहे हैं उनमें युवाओं की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. इन आकड़ों में साइबर अपराध, लूटपाट की घटनाएं शामिल हैं. हाल के वर्षों में देवघर में आपराधिक घटनाओं में काफी इजाफा हुआ है. अधिकतर मामलों में युवा वर्ग ही इन घटनाओं में संलिप्त पाये गये हैं. युवाओं का एक वर्ग पढ़ाई लिखाई कर रोजगार पाने के बजाय आपराधिक गतिविधियों में ज्यादा सक्रिय दिख रहा है. इस लूटपाट के बाद उनसे पूछताछ में हमेशा एक ही बात सामने आयी है. आसानी से कम समय में ज्यादा पैसे कमाने का लालच उन्हें अपराध की तरफ धकेल रहा है.
फिल्मी स्टाइल में खुद को भाइजी, दादा, हेल बॉय व तरह-तरह के उपनाम देकर शहर में आपराधिक गिराेह के ग्रुप संचालित हो रहे हैं. करीब आधा दर्जन ग्रुप नगर थाना क्षेत्र में सक्रिय हो गये हैं. इन ग्रुप में शिवगंगा लेन समेत आसपास के तीन-चार मुहल्लों के युवाओं की सक्रियता है. सभी ग्रुप में एक-एक चेहरे को सामने कर लोगों को डराने-धमकाने व वर्चस्व कायम करने का दौर चल पड़ा है. ग्रुप के अधिकांश सदस्य 15 से लेकर 25 वर्ष तक के हैं. अलग हेयर स्टाइल व स्टाइलिश बाइक ऐसे ग्रुप वालों की पहचान है.
जानकारी रहने पर भी कोई मुंह नहीं खोलते : ऐसे असामाजिक तत्वों की करतूत की जानकारी रहने के बाद भी कोई विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता है. लोग अपनी इज्जत बचाने में ही भलाई समझते हैं. गाहे-बगाहे ऐसी कोई शिकायत थाने में पहुंचती है तो आरोपितों की पहचान करने के लिए पुलिस खाक छानती है.
होती रहती है वर्चस्व की लड़ाई
ऑटो स्टैंड सहित बाजार की दुकानों से ऐसे ग्रुप के सदस्य अवैध वसूली करते हैं. शहर के विभिन्न स्थानों पर ऐसे एक-दो ग्रुप के सदस्य अवैध मटका-लॉटरी का संचालन भी कराते हैं. अवैध कारोबार पर कब्जा करने के लिए आपस में इनलोगों के बीच वर्चस्व की लड़ाई अक्सर चलती रहती है. कई साल से अवैध कारोबार पर कब्जा के लिए गैंगवार की घटनाएं हो रही है. दहशत कायम करने के लिए ऐसे असामाजिक तत्व राह चलते हवाई फायरिंग तक कर देते हैं. आशंका जतायी जा रही है कि किसी ना किसी दिन वर्चस्व की लड़ाई कोई बड़ा रूप ना ले ले और शहर में कोई बड़ी आपराधिक घटनाएं ना हो जाए, इन सबके बावजूद पुलिस गंभीर नहीं दिख रही है.
अभिभावक भी नहीं रोकते बच्चों को
गलत रास्ते पर भटकने वाले टीनेजर्स को अभिभावक भी नहीं रोक पाते हैं. ऐसे बच्चे अपने अभिभावकों की बात नहीं मानते. कई अभिभावकों की विवशता भी है. अधिकांश अभिभावक दिनभर रोजी-रोजगार में व्यस्त रहते हैं. उन्हें पता भी नहीं चल पाता है कि उनके बच्चे कहां आ-जा रहे हैं. कई अभिभावक तो इसमें अपनी शान भी समझते हैं कि उनके बच्चे के नाम से शहर थर्रा रहा है और आसानी से मोटी कमाई करके दे रहे हैं.
ऑटो स्टैंड पर वसूली में जा चुकी है युवक की जान
ऑटो स्टैंड से वसूली करने में तो दो साल पूर्व शहर के एक युवक की जान भी जा चुकी है. उस मामले में नगर थाने में हत्या की प्राथमिकी भी करायी गयी थी. उक्त कांड का महीना भी नहीं बीता था कि एक आरोपित के एक सीधे-साधे परिजन की गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी. वहीं एक साल पूर्व तो मटका-लॉटरी के संचालन के हिस्सेदारी के झंझट में भी एक युवक की हत्या की गयी थी. उस मामले में तो तीन सगे भाइयों पर ही प्राथमिकी दर्ज हुई थी.