चतरा.उर्दू साहित्यकार एवं कवि अहमद बिन नजर ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस्लामी इबादतें समय के साथ गहराई से जुड़ी हैं और इस संबंध में आदेश अत्यंत स्पष्ट व सख्त हैं. यहां तक कि यदि इबादतों में समय के संबंध में कोई चूक होती है तो वह इबादत अमान्य मानी जाती है. उदाहरण के लिए हज के पांच दिनों के अलावा चाहे पूरे 360 दिनों तक हज के अरकान (अनुष्ठान) अदा किया जाये, उसे न तो हज कहा जा सकता है और न ही इसके बदले में कुछ प्राप्त होगा. नमाज को उसके निर्धारित समय से एक मिनट पहले अदा किया जाये या समय समाप्त होने के एक मिनट बाद शुरू किया जाये तो यह स्वीकार्य नहीं है. ठीक इसी तरह रोजा भी हमारे लिए समय प्रबंधन सीखने का एक उत्कृष्ट अवसर है, क्योंकि इस पूरे महीने में सेहरी, इफ्तार, तरावीह आदि को उनके निर्धारित समय पर अंजाम दिया जाता है. जिससे समय की पाबंदी हमारे स्वभाव का हिस्सा बनती चली जाती है. साथ ही हम रमजान में इबादतों के साथ अपने व्यवसाय, कार्यालय, पढ़ाई व अन्य जिम्मेदारियों को भी बहुत ढंग से करना सीख जाते हैं. सारांश यह है कि रमजान में जिस तरह हम अपने समय को बिना व्यर्थ किये हर एक पल का सही उपयोग करते हैं और फिजूल कामों से बचते हुए अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में लगे रहते हैं. यदि हम इस सिलसिले को निरंतर जारी रखना सीख लें, तो आनेवाला जीवन हमारे लिए आसानी व सफलता लेकर आयेगा.
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