जगन्नाथपुर. करीब 700 पहाड़ियों की शृंखला से निर्मित साल वन के लिए प्रसिद्ध सारंडा जंगल हमें प्राणवायु (ऑक्सीजन) देती है. वहीं, आसपास के दर्जनों गांवों के लोगों की जीविका है. सारंडा जंगल के वनोत्पाद इनके रोजगार का जरिया है. यहां के लोग जंगल से महुआ, इमली, कुसुम, लाह, करंज, नीम, कटहल, सहजन फली, केंदू, आम, बेलुवा, कंद-मूल आदि तोड़कर हाट-बाजारों मे बेचकर दो जून की रोटी की व्यवस्था करते हैं. सिल्क के लिए सारंडा के जंगलों में कोकून का पालन भी खूब होता है. स्थानीय बाजारों में इसकी मांग है. वहीं साल के पत्ते, नीम, करंज आदि कई प्रकार के दात्तुन, लाल चींटी, छत्तू, लाह समेत विभिन्न किस्मों की जड़ी-बूटी लाकर आदिवासी कारोबार करते हैं. ग्रामीण बताते हैं कि घरों को रंगने वाली रंगीन मिट्टी भी जंगलों में मिलती है. इसे बेचकर ग्रामीण बेहतर मुनाफा कमा लेते हैं. यहां जंगली शकरकंद की खेती होती है, जिसकी शहरों में काफी मांग है.
कोल्ड स्टोरेज की कमी से किसानों का विकास रुका:
किसान कहते हैं कि कोल्ड स्टोरेज की कमी के कारण वनोत्पाद का कारोबार प्रभावित होता है. इससे उनको आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है. वे कहते हैं कि जंगल में फल, कंद-मूल, सब्जियां आदि बहुतायत हैं. उनको स्टॉक में रखने की सुविधा नहीं है. कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था होती, तो हम बड़ी मात्रा में लंबे समय के लिए वनोत्पाद फल-सब्जियां को प्रिजर्व कर सकते हैं. जरूरत के हिसाब से बाजार में बेचकर मुनाफा कमा सकते हैं. कोल्ड स्टोरेज की कमी हमारी तरक्की में सबसे बड़ा रुकावट है. वनोत्पाद के लिए स्थानीय मार्केट नहीं है. इस कारण हमें दूर के हाट-बाजारों में जाना पड़ता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है