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Chaibasa News : झारखंड आंदोलनकारियों के परिजन को नौकरी में प्राथमिकता मिले : बहादुर

चाईबासा. सदर अनुमंडल कार्यालय के सामने पुनरुथान अभियान का धरना-प्रदर्शन

चाईबासा. चाईबासा के सदर अनुमंडल पदाधिकारी कार्यालय के सामने मंगलवार को झारखंड पुनरुत्थान अभियान की ओर से जिलाध्यक्ष नारायण सिंह पुरती की अध्यक्षता में धरना-प्रदर्शन किया गया. पूर्व विधायक बहादुर उरांव ने राज्य सरकार से झारखंड आंदोलनकारी चिन्हितीकरण आयोग द्वारा चिह्नित आंदोलनकारियों के परिजनों को सरकारी नौकरी में प्राथमिकता देने और राज्य के सभी जिलों के उपायुक्तों को सीएनटी व एसपीटी एक्ट के उल्लंघन पर सख्त कार्रवाई के निर्देश जारी करने की मांग की गयी.

वांगचुक को गिरफ्तार करना दुर्भाग्यपूर्ण : सन्नी

झारखंड पुनरुत्थान अभियान के केंद्रीय अध्यक्ष सन्नी सिंकु ने कहा कि पर्यावरणविद् और रमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता सोनम वांगचुक की बिना शर्त रिहाई की मांग को लेकर धरना दिया जा रहा है. उन्होंने कहा कि वांगचुक ने लद्दाख की भूमि की रक्षा के लिए गांधीवादी तरीके से आंदोलन किया, लेकिन उन्हें षड्यंत्रपूर्वक राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तार किया गया, जो दुर्भाग्यपूर्ण है. संस्थान के केंद्रीय महासचिव अमृत माझी ने आरोप लगाया कि प्रस्तावित चाईबासा-बायपास परियोजना में ग्रामसभा और रैयतों की सहमति के बिना लोगों को जबरन विस्थापित करने की कोशिश की जा रही है, जो असंवैधानिक है. धरना के बाद संगठन के प्रतिनिधिमंडल ने 4 सूत्री मांग पत्र डीडीसी संदीप मीणा को सौंपा. धरना कार्यक्रम को सुमंत ज्योति सिंकु, बलराम मुर्मू, विकास केराई, मंगल सरदार, सुरा पूरती, विनीत लागुरी, विशाल गुड़िया, महेंद्र जामुदा, कोलंबस हांसदा, अरिल सिंकु, विजय तिग्गा, खूंटकट्टी रैयत रक्षा समिति के अध्यक्ष बलभद्र सावैयां, सचिव केदारनाथ सिंह कालुंडिया, नीतिमा सावैयां, मुनेश्वर पूर्ति, जोहार संस्था के अध्यक्ष रमेश जेराई, परदेसी लाल मुंडा, सहदेव महतो, गारदी सिंकु, महेंद्र सवैंया, चिंता कालुंडिया, सुरेश बोयपाई, मनमोहन सिंह सावैयां, भगत सिंह हेंब्रम आदि शामिल थे.

सारंडा वन्य अभ्यारण्य को लेकर ग्रामीणों से विरोध करा रही सरकार: पूर्व विधायक

पूर्व विधायक मंगल सिंह बोबोंगा ने आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सारंडा वन क्षेत्र में वन्य अभयारण्य स्थापित करने को लेकर झारखंड सरकार की पांच सदस्यीय टीम द्वारा सुनियोजित तरीके से ग्रामीणों से विरोध कराया गया. कहा कि सरकार को सारंडा क्षेत्र के उन वनग्रामों को, जिन्हें अबतक राजस्व गांव का दर्जा नहीं मिला है, ग्रामसभा आयोजित कर वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत स्थायी वनपट्टा देकर स्वामित्व संपन्न बनाना चाहिए था, लेकिन अबुआ सरकार ऐसा करने में असफल रही है.

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