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इंटक में कई बार आये उतार-चढ़ाव और विवाद भी हुए

इंटक में कई बार आये उतार-चढ़ाव और विवाद भी हुए

राकेश वर्मा, बेरमो : देश के सबसे बड़े मजदूर संगठन इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (इंटक) का गठन तीन मई, 1947 को हुआ था. मौजूदा समय में करीब तीन करोड़ 33 लाख सदस्यता का दावा करने वाले इस संगठन में कई बार उतार-चढ़ाव का दौरा आया. कई बार विवाद भी हुए. कांति मेहता से लेकर बीपी सिन्हा तक के समय में भी मतभेद हुए, लेकिन मजदूर हित में संगठन को बिखरने नहीं दिया गया. रांची में वर्ष 2002 में इंटक के राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान चंद्रशेखर दुबे (ददई दुबे) का स्व राजेंद्र प्रसाद सिंह व डॉ जी संजीवा रेड्डी के साथ विवाद शुरू हुआ था. 2003-2004 में विवाद गहराता देख सोनिया गांधी के हस्तक्षेप किया. प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में सात सदस्यीय कमेटी ने विवाद को सलाटने का प्रयास किया था. कहने को तो विवाद सलट गया, लेकिन अंदर ही अंदर चिंगारी सुलग ही रही थी. विधायक के बाद सांसद बनते ही ददई दुबे राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ के महामंत्री बने. सांसद रहते हुए फिर से उनके समर्थकों ने अलग होने की हवा दी. इस बार पूर्व मंत्री ओपी लाल को आगे कर अध्यक्ष बनने का प्रस्ताव लाया गया, जिस पर विवाद हो गया. यह विवाद काफी गहरा गया. धनबाद के माइकल जॉन भवन में जमकर मारपीट दोनों गुटों में हुई. राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ दो भाग में बंट गया. अलग-अलग यूनियन संचालित होने लगी. ओपी लाल ने फिर से 2010 में राजेंद्र सिंह से हाथ मिला लिया, लेकिन ददई दुबे नहीं मिले. ददई दुबे खेमे के ही ललन चौबे अलग होकर अलग से यूनियन संचालित करने लगे. ये अपना नेतृत्व रेड्डी को मानते रहे. निधन से एक-डेढ़ साल पहले राजेंद्र सिंह ने खुद पहल कर ददई दुबे को इंटक अध्यक्ष संजीवा रेड्डी से मिला कर विवाद सलटाने का भी प्रयास किया था. लेकिन बाद में ददई दुबे ने यह कह कर फिर विवाद खडा कर दिया कि संजीवा रेड्डी इंटक को एचएमएस के साथ विलय करना चाहते हैं, इसे वे बर्दाश्त नहीं करेंगे. धीरे-धीरे इंटक का विवाद इतना गहरा गया कि संगठन के चार गुट हो गये तथा सभी न्यायालय के दरवाजे तक पहुंच गये. फिलहाल वर्ष 2016 से इंटक कोल इंडिया की सभी कमेटियों से बाहर है और कोर्ट में मामला विचाराधीन है. बहरहाल इंटक के बारे में यहीं कहा जा सकता है कि, इसे तो अपने ने लूटा, गैरों में कहां दम था… 1984 में केंद्रीय इंटक के अध्यक्ष बने थे बिंदेश्वरी दुबे बेरमो कोयलांचल के दिग्गज मजदूर नेता व पूर्व मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दुबे 1984 में राष्ट्रीय इंटक के अध्यक्ष बने थे. धनबाद के कोयला नगर में आयोजित इस अधिवेशन में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी व बिहार के सीएम डॉ जगरनाथ मिश्रा आये थे. इंदिरा गांधी ने सभा को भी संबोधित किया था. बिंदेश्वरी दुबे कई वर्षों तक बिहार इंटक तथा राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ के अध्यक्ष रहे. इसके अलावा वह बेरमो से वर्ष 1962, 1967, 1969, 1972 में विधायक भी रहे थे. 1985 से 1988 तक बिहार के मुख्यमंत्री के अलावा केंद्र की राजीव गांधी सरकार में केंद्रीय श्रम व कानून मंत्री रहे. बिंदेश्वरी दुबे के बाद संसदीय व श्रमिक राजनीति में स्व राजेंद्र प्रसाद सिंह ने भी लंबा सफर तय किया. वह बेरमो से छह बार विधायक रहे. एक समय था जब बिंदेश्वरी दुबे व राजेंद्र प्रसाद सिंह के बाद ट्रेड यूनियन इंटक में बेरमो व झारखंड की बात तो दिगर केंद्रीय इंटक में भी संजीवा रेड्डी व ददई दुबे के बाद ऐसा कोई बडा कद्दावर चेहरा नहीं दिखता था. हालांकि इंटक में केरल इंटक के अध्यक्ष चंद्रशेखरण के अलावा इंटक के अन्य दो नेता रघु रमैया व आरसी खुटिया की भी इंटक में गहरी पैठ रही है. बिंदेश्वरी दुबे व राजेंद्र सिंह ने बेरमो का नाम दिल्ली तक पहुंचाया था झारखंड की औद्योगिक नगरी बेरमो का नाम इस क्षेत्र के कांग्रेस व ट्रेड यूनियन इंटक के दो दिग्गज नेता स्व बिंदेश्वरी दुबे एवं स्व राजेंद्र सिंह ने दिल्ली की राजनीतिक गलियारों तक पहुंचाया था. बेरमो में 50 के दशक से बिंदेश्वरी दुबे मजदूर राजनीति में सक्रिय थे. 1970 के बाद कोल सेक्टर में राष्ट्रीयकरण की सुगबुगाहट शुरू हो गयी थी. बिंदेश्वरी दुबे जी के सान्निध्य में राजेंद्र सिंह ने इंटक में प्रवेश किया और ब्रांच सेक्रेटरी एरिया सेक्रेटरी आदि से शुरुआत कर 1990 में इंटक के महामंत्री बन गये. कहते हैं इंटक नेता बीपी सिन्हा और बिंदेश्वरी दुबे के बीच जब इंटक में वर्चस्व की जोर आजमाइश चल रही थी, तभी राजेंद्र सिंह इंटक में सक्रिय हुए थे और बिंदेश्वरी दुबे के खास विश्वासपात्र थे. बीपी सिन्हा व बिंदेश्वरी दुबे के बीच विवाद की खाई को पाटने का भी काम करते थे. बिंदेश्वरी दुबे के निधन के बाद राजेंद्र सिंह 1990 के आसपास राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ पर भी काबिज हो गये. 11-13 नवंबर 2019 में कानपुर में आयोजित इंटक के राष्ट्रीय काउंसिल की बैठक में अंतिम बार राजेंद्र सिंह शामिल हुए थे. इंटक का राष्ट्रीय अधिवेशन 2015 में दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में हुआ था. इसमें भाषण के दौरान राजेंद्र सिंह को ब्रेन स्ट्रोक हुआ था. फिलहाल इंटक में अब गिने चुने नेता ही ऐसे रह गये है जो राष्ट्रीय स्तर पर अपनी मजबूत पैठ रखते हैं. इसमें एक तो इंटक रेड्डी गुट के इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ जी संजीवा रेड्डी है तो दूसरा महामंत्री संजय सिंह,एसक्यू जामा तथा बेरमो विधायक व राष्ट्रीय खान मजदूर फेडरेशन के अध्यक्ष कुमार जयमंगल हैं. दूसरी ओर चंद्रशेखर दुबे सामांनतर इंटक चलाते हैं तथा अपनी इंटक को ही असली इंटक कहते हैं. इसके अलावा इंटक के एक अन्य नेता केके तिवारी भी अपना सामानंतर इंटक चलाते हैं.

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Prabhat Khabar News Desk
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