फुसरो, आदिवासी बाहुल ताराबेड़ा गांव फुसरो नगर परिषद क्षेत्र में आता है, लेकिन यहां के लोग मूलभूत सुविधाओं से महरूम हैं. मंगलवार को गांव में प्रभात खबर आपके द्वार कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इसमें ग्रामीणों ने अपनी समस्याएं बतायीं. कहा कि फुसरो नगर परिषद के गठन हुए 17 साल हो चुके हैं. हमारा गांव फुसरो नप में जुड़ा तो विकास होने की उम्मीद थी. लेकिन कुछ विशेष काम हुआ नहीं. गांव में सीसीएल से बिजली है. सड़क, नाली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी जरूरी सुविधाएं आज तक नहीं मिली हैं. गांव तक पहुंचने के लिए रास्ते जर्जर हैं. गांव में सड़क का शिलान्यास हुआ, लेकिन बनी नहीं है. हाट-बाजार जाने के लिए लोगों को सात किमी दूरी तय करनी पड़ती है. समस्याओं के लिए जनप्रतिनिधि व अधिकारी जिम्मेवार हैं.
शहरी जलापूर्ति योजना का पाइप तक नहीं पहुंचा यहां
फुसरो शहरी जलापूर्ति योजना का लाभ देने के लिए पाइप लाइन तक इस गांव में नहीं पहुंची है. गांव के लोग डीप बोरिंग के पानी का उपयोग पीने के लिए करते हैं. अन्य काम के लिए जोरिया व एक कुआं के पानी पर निर्भर हैं. गांव में एक खेल मैदान तक नहीं है. सरना स्थल भी विकसित नहीं है. गांव के अधिकतर लोग सीसीएल के लोकल सेल में काम व दैनिक मजदूरी करते हैं. गांव के मुख्य रास्ते पर सीसीएल ने बैरियर लगा दिया है. इसके कारण गांव में बड़े वाहन आ नहीं पाते हैं.बच्चों को पांचवीं कक्षा की पढ़ाई के बाद जाना पड़ता है फुसरो
ताराबेड़ा गांव में 65 आदिवासी परिवार रहते हैं और आबादी 500 है. गांव में 15 साल पुराना एक सामुदायिक भवन है, जो जर्जर हो चुका है. एक प्राथमिक स्कूल है. आगे का पढ़ाई के लिए बच्चों को सात किमी दूर फुसरो जाना पड़ता है. यहां के लोगों को विस्थापन सुविधा और कोई भी प्रशिक्षण भी नहीं मिलता है. गांव के जोरिया में चेक डैम का भी निर्माण नहीं हो सका है. गांव में अधिकतर खपड़ैल घर हैं. 10-15 पीएम आवास बने हैं.लोगों ने कहा
अनिल टुडू : गांव की सबसे बड़ी समस्या सड़क की है. गर्मी में पानी के लिए बहुत परेशानी होती है. समस्याओं के बीच किसी तरह से गुजर बसर करना पड़ रहा है.
समीर टुडू : चुनाव के समय नेता आकर समस्याएं दूर करने का वादा करते हैं, लेकिन उसे पूरा नहीं करते हैं. गांव की समस्याएं जस की तस हैं. गांव के विकास पर जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों का ध्यान नहीं है.सानू टुडू : गांव की सड़क जर्जर हो चुकी है. रोजगार के अभाव में युवा पलायन कर रहे हैं. स्वास्थ्य सुविधा नहीं है. गांव में एक मॉडल आंगनबाड़ी केंद्र भी नहीं है.
प्रकाश हेंब्रम : पीने को छोड़ कर अन्य काम के लिए पानी की समस्या है. जोरिया व एक कुआं का ही आसरा है. जोरिया में चेक डैम बनाने का आश्वासन मिला, लेकिन नहीं बना है. गांव में कोई अधिकारी भी सुध लेने नहीं आते हैं.महादेव मांझी : फुसरो नगर परिषद से जुड़ने के बाद विकास की उम्मीद थी. लेकिन पूरा नहीं हुआ. गांव में एक सामुदायिक भवन व विवाह भवन तक नहीं है. पानी के लिए परेशानी होती है.
सूर्यामुन्नी देवी : जोरिया व कुआं के पानी से ही घर का कामकाज करना पड़ता है. गर्मी में जोरिया व कुआं सूख जाता है तो आफत हो जाता है. जोरिया तक जाने का रास्ता भी ठीक नहीं है. जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों से सिर्फ आश्वासन मिलता है.राम टुडू : हमलोगों को रोज भूख व प्यास मिटाने की चिंता रहती है. पेट भरने के लिए मजदूरी करते हैं. प्यास बुझाने के लिए पानी की व्यवस्था करते हैं. शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधा तो दूर की बात है.
किशन टुडू : जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों को समस्याएं बताते-बताते थक गये हैं. कोई सुनता ही नहीं. गांव में मूलभूत सुविधाएं होती तो जीवन कुछ ठीक से चलता. जितेंद्र टुडू :गांव की मुख्य सड़क जर्जर है. आवागमन में बहुत परेशानी होती है. फुसरो शहरी जलापूर्ति योजना का पाइप लाइन तक गांव तक नहीं पहुंची है. अन्य मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिली हैं. बढन मांझी : गांव में सुविधा नाम की कोई चीज नहीं है. सड़कें पैदल चलने लायक नहीं हैं. पानी के लिए तो रोज परेशान होना पड़ता है. गांव के विकास की चिंता किसी को भी नहीं है. लोग सिर्फ आश्वासन देकर चले जाते हैं. बसंती देवी : गांव की समस्याएं दूर नहीं की जा रही है. पेयजल के लिए तो रोज परेशानी का सामना करना पड़ता है. हमलोगों पर किसी का भी ध्यान नहीं है. गांव में एक तालाब भी नहीं है.किशन टुडू : नेता हमलोगों को वोट बैंक के रूप में उपयोग करते हैं. आवागमन तक की सुविधा नहीं मिली है. प्राथमिक उपचार की भी व्यवस्था नहीं है.
पिंटू टुडू : गांव में रास्ता ठीक नहीं होने के कारण मेहमान भी आना नहीं चाहते हैं. मजदूरी नहीं मिलने पर घर में ही बैठ कर रहना पड़ता है. जनप्रतिनिधि व अधिकारी गांव पर ध्यान दें.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है