कसमार, कसमार प्रखंड के बगदा गांव में बुधवार को सोहराय पर्व के तीसरे दिन बरद खूंटा पूरे उत्साह और पारंपरिक उल्लास के साथ मनाया गया. घर-घर में पशुधन को स्नान कराकर, तेल, हल्दी और सिंदूर से सजाया गया. इसके बाद ढोल और मांदर की थाप पर बैल और काड़ा को खूंटे से बांधकर नचाया गया, मानो पूरा गांव अपने जीवनदायिनी पशुधन के प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर रहा हो. सबसे पहले लोग नाया नारायण मरांडी के घर पहुंचे. उन्हें सम्मानित करने के बाद बरद खूंटा शुरू हुआ. इस दौरान गड़ाइत समेत कुछ अन्य ग्रामीणों को भी सम्मानित किया गया. बरद खूंटा देखने के लिए आसपास के गांवों से भी लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी. खेतिहर परिवारों के पुरुषों और महिलाओं ने दिनभर उपवास रखकर पूजा की परंपराएं निभायी. महिलाओं ने नये सूप में धान, अरवा चावल, दूब घास और धूप-धुना सजाया, जबकि पुरुष सदस्यों ने खेत से नया धान सिंस लाकर मवेशियों के लिए मड़अइर गांथा. इसके बाद भूत पीढ़ा में विधिपूर्वक पूजा कर मड़अइर बैलों और काड़ों को पहनाया गया. शाम होते-होते ढोल-मांदर की थाप और सोहराय गीतों से पूरा वातावरण गूंज उठा. बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक नाच-गान में झूम उठे. यह दृश्य केवल उत्सव नहीं, बल्कि मनुष्य और पशु के बीच प्रेम, श्रम और कृतज्ञता के गहरे संबंध का प्रतीक बन गया. गांव के सुकदेव जालबनुआर, चांदमुख महतो, अशोक महतो आदि ने बताया कि खेती-किसानी के कार्य पूर्ण होने के बाद यह पर्व पशु धन (बैलों और काड़ों) के सम्मान में मनाया जाता है. उन्हें नचाने की परंपरा के पीछे यह विश्वास है कि इससे उनके शरीर में रक्त संचार बढ़ता है और वे स्वस्थ रहते हैं. मौके पर तुलसी महतो, केशव महतो, रामदयाल महतो, खेदन घांसी, कुयुला घांसी, गांधी घांसी, संतोष घांसी, कपिलेश महतो, भूषण महतो, महानंद महतो, रामधन महतो, श्रृष्टिधर महतो, दिनेश महतो समेत सैकड़ों लोग मौजूद थे.
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