बोकारो, बोकारो जिले में आस्था, सामाजिक समरसता, साधना व सूर्योपासना का महापर्व डाला छठ की तैयारी जोर-शोर से चल रही है. घाटों की सफाई, पूजा सामग्री की व्यवस्था व प्रसाद की तैयारी की जा रही है. श्रद्धालु भक्तिभाव में लीन होकर छठी मैया की पूजा की तैयारी कर रहे हैं, जिसमें विभिन्न स्थानों पर छठ घाटों को साफ-सुथरा किया जा रहा है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, छठी मैया सूर्य देव की बहन हैं और वे परिवार की सुख-समृद्धि और बच्चों की लंबी उम्र के लिए पूजी जाती हैं. छठ पवित्र व पारंपरिक त्योहार है, जो सूर्य देवता और छठी मैया को समर्पित है. इस समय घाटों पर गूंजते भजन, जल में चमकते दीपक और आस्था से भरे चेहरे एक अद्भुत दृश्य रचते हैं. चार दिनों तक चलने वाले इस अनुष्ठान का ना सिर्फ धार्मिक महत्व है, बल्कि भारतीय संस्कृति, आस्था और प्रकृति से गहरे जुड़ाव को भी दर्शाता हैं. इसका इतिहास कई पौराणिक कथाओं से जुड़ा है. इसका संबंध रामायण व महाभारत काल से है.
हर रीति-रिवाज का है अपना महत्व
छठ में हर रीति-रिवाज का अपना महत्व होता है. इसे अनुशासन, शुद्धता व आस्था के साथ किया जाता है. व्रत चार दिन तक चलता है. हर दिन की अलग परंपरा होती है. छठ में डूबते सूर्य व उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता हैं. इसलिए इसमें डूबते हुए सूर्य का समय और उगते हुए समय का काफी ध्यान रखा जाता हैं. नहाय खाय के दिन व्रती सुबह स्नान करके घर और रसोई को शुद्ध करती है. इस दिन सात्विक भोजन जैसे कद्दू-भात और चने की दाल खाया जाता है, जिससे चार दिवसीय छठ व्रत की शुरुआत होती है.पवित्रता व परंपरा भी
छठ में भोजन सिर्फ स्वाद के लिए नहीं, बल्कि पवित्रता और परंपरा के लिए भी खास होता है. इसे बिना प्याज-लहसुन, बिना मसाले व पूरी तरह सात्विक तरीके से बनाया जाता है. दूध, चावल और गुड़ से बनने वाले मीठे व्यंजन छठ का सबसे प्रिय प्रसाद है. यह खीर खरना वाले दिन छठी मैया को चढ़ाया जाता हैं. आटा, गुड़ और घी से बनने वाली मिठाई है ठेकुआ. यह ना सिर्फ प्रसाद है, बल्कि छठ की पहचान भी है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

