राधेश्याम सिंह, तलगड़िया, चास प्रखंड की मधुनिया पंचायत के बांधडीह गांव में 305 वर्षों से मां काली की पूजा हो रही है. गांव में स्थित काली मंदिर आस्था व विश्वास का केंद्र है. 1720 में स्व कन्हाई पैतंडी ने मां काली की प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना शुरू की थी.
जानकारों का कहना है कि कन्हाई पैतंडी का पुत्र मधु पैतंडी गंभीर बीमारी से मरणासन्न अवस्था में था. अचानक मधु पैतंडी मां काली, मां काली की आवाज देने लगा. आवाज सुन पूरा परिवार जुट गया. मधु को स्वस्थ देकर सभी अचंभित रह गये. उसी समय कन्हाई पैतंडी ने बांस का खूंटा, बिचाली, त्रिपाल की झोपड़ी बनाकर मां काली की पूजा-अर्चना शुरू कर दी. कुछ दिनों के बाद मिट्टी की दीवार व तिरपाल ढक कर पूजा-अर्चना की जाने लगी. इसके बाद 1969 मंदिर का भवन बनाया गया. लोगों का कहना है कि मां काली भक्तों की मनोकामना पूरी करती हैं. उस समय से आज तक कन्हाई पैतंडी के वंशज पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं. प्रत्येक अमावस्या, मंगलवार व शनिवार को यहां विशेष पूजा होती है. ऐसे तो मंदिर में सालोभर पूजा होती है. तीन दिवसीय पूजा 19 अक्तूबर से विधिवत शुरू होगी, जो 21अक्तूबर को विसर्जन के साथ संपन्न होगी.परंपरा के तहत आज भी चास के कुर्रा गांव के स्व राजू मालाकार के वंशज मां काली का सरसज्जा डाकमुकुट मंदिर में देते हैं. चंदनकियारी नावाडीह गांव के मूर्तिकार शिवम मुखर्जी प्रतिमा को अंतिम रूप देने में जुटे हैं. मंदिर को भव्य एवं आकर्षक सजाया रहा है. पूजा में बांधडीह के आसपास वृंदावनपुर, सालगाटांड़, भागा बांध, चिटाईटांड़, उसरडीह तिवारीटोला, गिधटांड़, मांझीटोला, तेतु लियागोडा, बनिया टोला, दास टोला, कारीटांड़ सहित दर्जनों गांव के हजारों लोग शामिल होते हैं.
पूजा को लेकर कन्हाई पैतंडी के वंशज अभय पैतंडी, पंचानन पैतंडी, गोउर पैतंडी, महादेव पैतंडी, पंकज पैतंडी, कालीदास पैतंडी, श्याम पैतंडी, गौतम, नित्यानंद, भोलानाथ राय, शुभंकर पैतंडी, अर्जुन पैतंडी, जटाधारी राय, मनभूल, तारक राय, बासुदेव, मनोज पैतंडी, पुजारी श्याम पैतंडी, मानिक चंद राय, संटू राय, नीतीश राय, दिलीप राय, राहुल राय, माधव राय, तारा पद, सिष्टिधर प्रामाणिक सहित अन्य ग्रामीण जुटे हुए हैं.परिवार की सातवीं पीढ़ी कर रही हैं पूजा : अभय पैतंडी
1969 ई में अभय पैतंडी के नेतृत्व में ग्रामीणों के सहयोग से मंदिर का भव्य व आकर्षक रूप दिया गया. पूजा की व्यवस्था को बरकरार रखने के लिए सभी वर्गों की भूमिका भी तय की गयी ताकि सार्वजनिक सहभागिता बनु रहे. यह सातवीं पीढ़ी चल रही है. धनबाद- बोकारो व पश्चिम बंगाल के भी लोग पहुंच कर पूजा-अर्चना करते हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

