बोकारो, मातृभाषा में जो भाव है, वह अन्य किसी भी भाषा में नहीं. 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा तो मिल गया, लेकिन आज तक इससे आगे बढ़कर यह राष्ट्रभाषा नहीं बन सकी. हिंदी समृद्ध व सर्वमान्य भाषा है. हिंदी भाषा भारत की संस्कृति, परंपरा, पहचान व आत्मा है. राष्ट्र के सशक्तीकरण के लिए इसे सशक्त बनाना आवश्यक है. यह बातें दिल्ली पब्लिक स्कूल बोकारो के प्राचार्य डॉ एएस गंगवार ने कही. शनिवार को हिंदी दिवस के उपलक्ष्य पर स्कूल में कार्यक्रम आयोजित किया गया. हिंदी विभाग की ओर से तैयार वार्षिक साहित्यिक पत्रिका ‘स्वरा’ के नए अंक का विमोचन किया गया. स्वरा में विद्यार्थी व शिक्षकों की काव्य-कृतियों, कहानी व विचार को सचित्र संकलित किया गया है. इससे पहले विद्यार्थियों ने एक से बढ़कर एक साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत कर हिन्दी भाषा व विषय पर पकड़ का परिचय दिया. आव्या सिंह ने सुविचार व अभव्य सिंह ने समाचार प्रस्तुत किया. कुमुद भारती ने हिंदी कविता माथे का चंदन है हिंदी सुनायी. दिव्यदर्शिनी ने रश्मिरथी से कृष्ण की चेतावनी का पाठ किया. आयुष केसरी ने स्वरचित कविता रक्त नहीं, पानी है… का पाठ किया. मौके पर सभी शिक्षिका-शिक्षक व विद्यार्थी मौजूद थे.
बीपीएस : विद्यार्थियों ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों की दी प्रस्तुति
बोकारो पब्लिक स्कूल सेक्टर तीन सी में हिंदी दिवस मनाया गया. प्राचार्या डॉ सुधा शेखर ने हिंदी भाषा के गौरवशाली इतिहास व इसके महत्व के बारे में बताया. कहा कि हिंदी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि हमारी पहचान, संस्कृति और सभ्यता का अभिन्न अंग है. विद्यार्थियों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति दी. कक्षा तीन के समृद्धि, तस्कीन, अनिशा व नीति ने कविता पाठ किया. कक्षा तीन के छात्र समर, नुमान, माही व नवीन ने प्रेरक नारे लगाया. मौके पर उप प्राचार्य विश्वजीत पाल, प्राइमरी इंचार्ज अर्चना सिंह, कुमारी नूतन, मीनू कुमारी, अमरजीत कौर, रूपा दासगुप्ता व अन्य मौजूद थे.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

