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Bokaro News : कसमार के खैराचातर में 115 साल से होता आ रहा है छठ महापर्व

Bokaro News : मंगला देवी ने की थी शुरुआत, आज भी बरकरार है वही श्रद्धा व सामूहिकता.

दीपक सवाल, कसमार, कसमार प्रखंड में लोक आस्था का महापर्व छठ केवल पूजा नहीं, बल्कि आस्था, परंपरा और सामूहिकता का अद्भुत संगम है. खैराचातर गांव में इस पर्व की शुरुआत लगभग 115 वर्ष पहले हुई थी. स्वर्गीय बनवारी प्रसाद जायसवाल की पत्नी मंगला देवी ने वर्ष 1911 में इस गांव में पहली बार छठ व्रत रखी थं. उनका मायका रामगढ़ जिले के चितरपुर में था, जहां छठ पूजा पहले से प्रचलित थी. अपने जीवन के अंतिम समय तक यानी लगभग 1981-82 तक यह व्रत करती रहीं. बाद में उनकी पुत्रवधू पूर्णिमा देवी ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया. मंगला देवी के पौत्र सुकुमार जायसवाल बताते हैं कि शुरुआती दिनों में यह पर्व गांव के लिए एकदम नया था. लोगों को इसकी विधियों की पूरी जानकारी नहीं थी, परंतु मंगला देवी की निष्ठा और आस्था ने सभी को प्रेरित किया. धीरे-धीरे पूरा गांव इस पर्व से जुड़ गया और आज लगभग एक दर्जन परिवार हर वर्ष छठ करते हैं.

सामुदायिक भागीदारी का है विशेष महत्व

शहरों से अलग, खैराचातर और आसपास के गांवों में छठ पर्व में सामुदायिक भागीदारी का विशेष महत्व है. लगभग ढाई से तीन हजार आबादी वाले इस गांव में भले ही कुछ परिवार ही व्रत रखते हों, लेकिन इसमें पूरा गांव शामिल होता है. महिलाएं, युवतियां और पुरुष उपवास रखकर सामूहिक रूप से इन्हें लेकर छठ घाट तक जाते हैं.

बाबू बांध बना आस्था का केंद्र

खैराचातर और आसपास के गांवों का मुख्य छठ घाट उदयमारा स्थित बाबू बांध में है. हर वर्ष यहां ग्रामीणों की टोली और समाजसेवी छठ घाट की सफाई, सजावट और दीप सज्जा का कार्य करते हैं. गांव के युवक सामूहिक श्रमदान कर रास्ते, घाट और मुहल्लों की सफाई करते हैं. वरिष्ठ नागरिक उमाचरण प्रसाद भगत बताते हैं कि पिछले नौ दशकों में इस गांव में छठ पर्व की लोकआस्था कई गुना बढ़ी है. पहले यह पूजा कुछ घरों तक सीमित थी, आज पूरा गांव इससे जुड़ गया है. खैराचातर की तरह बगदा, सिंहपुर, खुदीबेड़ा, हिसीम, मंजूरा, दांतू समेत कसमार प्रखंड के अन्य गांवों में भी छठ पर्व मनाया जाता है. यह वही आस्था है, जिसकी नींव मंगला देवी ने एक सदी पहले रखी थी और अब यह केवल एक व्रत नहीं, बल्कि पूरे कसमार की सांस्कृतिक पहचान बन चुका है.

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