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Bokaro News : कसमार के मनोज कपरदार की पुस्तक राज्य के सातों विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में शामिल

Bokaro News : ‘झारखंड की आदिवासी कला परंपरा’ बनी विश्वविद्यालयों की पाठ्यपुस्तक, उच्च एवं तकनीकी शिक्षा विभाग, झारखंड की ओर से आधिकारिक पत्र जारी किया गया है.

दीपक सवाल, कसमार, झारखंड की कला-संस्कृति को राष्ट्रीय शैक्षणिक फलक पर एक नयी पहचान दिलाने वाले कसमार प्रखंड के बगदा निवासी साहित्यकार और कला समीक्षक मनोज कुमार कपरदार की झारखंड की आदिवासी कला पर केंद्रित चर्चित पुस्तक ‘झारखंड की आदिवासी कला परंपरा’ को राज्य के सभी सरकारी विश्वविद्यालयों ने अपने स्नातक पाठ्यक्रम में शामिल कर लिया है. इस संबंध में उच्च एवं तकनीकी शिक्षा विभाग, झारखंड द्वारा आधिकारिक पत्र जारी किया गया है. पिछले वर्ष श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची ने इसे पाठ्यक्रम में शामिल किया था और अब छह अन्य विश्वविद्यालयों (रांची विश्वविद्यालय रांची, विनोबा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग, कोल्हान विश्वविद्यालय चाईबासा, सिदो-कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय दुमका, नीलांबर-पीतांबर विश्वविद्यालय पलामू तथा बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय धनबाद) ने भी इसे भारतीय ज्ञान प्रणाली (आइकेएस) एवं सामाजिक जागरूकता मॉड्यूल के अंतर्गत पढ़ाये जाने की मंजूरी दे दी है. यह उपलब्धि झारखंड की कला-विरासत के लिए मील का पत्थर मानी जा रही है. संभवतः पहली बार किसी झारखंड के लेखक की पुस्तक राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में एक साथ शामिल की गयी है. श्री कपरदार की पुस्तक झारखंड की परंपरागत कलाओं सोहराय, जादोपटिया, पायतकर, कोहबर चित्रशैली, जनजातीय पुरावस्तु सौंदर्य, प्रतीकात्मकता और सामुदायिक सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों को अकादमिक दृष्टि से नए आयाम से प्रस्तुत करती है. युवा शोधार्थियों और विद्यार्थियों को आदिवासी शिल्प, रंग-संस्कृति, सांस्कृतिक संरचना और कलात्मक विकास यात्रा को समझने में यह पुस्तक अत्यंत महत्वपूर्ण मानी गयी है. पुस्तक को पाठ्यक्रम में शामिल करने का निर्णय नयी शिक्षा नीति-2020 के अनुरूप भारतीय ज्ञान परंपरा और स्थानीय कला-संस्कृति को उच्च शिक्षा से जोड़ने के तहत लिया गया है. उल्लेखनीय है कि श्री कपरदार की पुस्तक ‘झारखंड के भूले-बिसरे क्रांतिवीर‘ पुस्तक शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन नेशनल बुक ट्रस्ट ने प्रकाशित किया है और संपादक मंडल ने इस पुस्तक को नेहरू बाल पुस्तकालय सीरीज में शामिल किया है. ग्रामीण पृष्ठभूमि से निकलकर राष्ट्रीय अकादमिक जगत में अपनी जगह बनाने वाले मनोज कुमार कपरदार ने कहा कि यह मेरी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि झारखंड की मिट्टी, यहां की संस्कृति, यहां के कलाकारों और पीढ़ियों से चली आ रही दृश्य-संस्कृतियों का सम्मान है. जब विश्वविद्यालयों में बच्चे अपनी ही धरती की कला पढ़ेंगे, तब उसकी रक्षा और विकास स्वयं सुनिश्चित होगा. स्थानीय लोगों, साहित्यकारों, शिक्षाविदों, शोधार्थियों और कला प्रेमियों में खुशी जतायी है. कसमार क्षेत्र के लिए यह उपलब्धि गौरव का विषय है. क्योंकि झारखंडी कला पर लिखी गयी एक पुस्तक आज राज्य के हर विश्वविद्यालय में ज्ञान का स्रोत और पाठ्य सामग्री बनने जा रही है. यह कदम आने वाले समय में झारखंड की सांस्कृतिक पहचान को विश्व पटल पर और मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण साबित होगा.

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