बोकारो, सदर अस्पताल में मंगलवार को अस्थमा मरीजों की देखभाल पर जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया. उद्घाटन सदर अस्पताल उपाधीक्षक डॉ अरविंद कुमार, डॉ सफी नयाज व डॉ कामाख्या प्रसाद ने संयुक्त रूप से किया. डॉ अरविंद ने कहा कि बदलते समय में लोग आसानी से अस्थमा का शिकार बन रहे है. प्रदूषण सबसे बड़ा कारण है. अस्थमा के लिए उम्र सीमा भी जरूरी नहीं है. घर से निकलने से वापसी तक हर व्यक्ति प्रदूषण के प्रभाव में है. प्रदूषण के शिकार में आने वाला व्यक्ति अस्थमा से पीडित हो जाता है. आज चिकित्सक के पास ओपीडी में आनेवाले 10 मरीज में चार मरीज अस्थमा की प्रभाव में है.
युवा व बच्चे भी हो रहे ग्रसित
डॉ सफी ने कहा कि घर से निकलने से घर वापसी तक हर व्यक्ति धूल व धुंआ के प्रभाव में होता है. अस्थमा श्वांस नली के साथ फेफड़ों को खासा रूप से प्रभावित करता है. अस्थमा आजकल केवल बुर्जुगों व व्यस्कों में ही नहीं, बल्कि युवाओं व बच्चों में भी मिल रहा है. अस्थमा फेफड़ों की एक बीमारी है. इसके कारण सांस लेने में कठिनाई होती है. अस्थमा होने पर श्वास नलियों में सूजन आ जाती है. इससे श्वसन मार्ग सिकुड़ जाता है. डॉ कामाख्या ने कहा कि रोगी को सांस लेने में परेशानी, सांस लेते समय आवाज आना, सीने में जकड़न, खांसी आदि समस्याएं होने लगती हैं. लक्षणों के आधार अस्थमा मुख्यत: बाहरी व आंतरिक होते है. बाहरी अस्थमा बाहरी एलर्जी व आंतरिक अस्थमा कुछ रासायनिक तत्वों के कारण शुरू होता है. मौके पर चिकित्सक व स्वास्थ्यकर्मी मौजूद थे.
अस्थमा होने पर करें परहेज
अस्थमा होने की स्थिति में ठंडा पानी व ठंडे पेय पदार्थों का सेवन बिल्कुल नहीं करें. बच्चे दही व चावल का सेवन बिल्कुल नहीं करें. केला अस्थमा से पीड़ित बच्चों को नुकसान पहुंचा सकता हैं. अधिक खट्टे व मिर्च मसाले वाली चीजों का सेवन न करें. अरबी, कचालू, फूल गोभी इत्यादि का प्रयोग नहीं करें. उड़द की दाल या उड़द की बनी खाद्य पदार्थ का उपयोग नहीं करें.
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