रांची: बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद को चारा घोटाले के एक और मामले में रिमांड पर लिया गया है. अदालत ने यह कार्रवाई उनके द्वारा दिये गये आवेदन के आलोक में की.
सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश एके मिश्र ने आरसी 68ए/96 में अभियुक्त को रिमांड पर लेने की न्यायिक कार्यवाही इ-कोर्ट के माध्यम से पूरी की. लालू प्रसाद वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से कोर्ट में पेश हुए. न्यायाधीश ने उन्हें रिमांड में लेने से संबंधित आदेश पारित किया. चारा घोटाले का यह मामला चाईबासा कोषागार से 33.13 करोड़ रुपयेकी अवैध निकासी का है. चारा घोटाले के इस मामले में चल रही न्यायिक प्रक्रिया के दौरान सीबीआइ के गवाह जेपी वर्मा ने अपना बयान दर्ज कराया.
उन्होंने कहा कि वह इंडियन एयर लाइंस में ट्रैफिक सुपरिटेंडेंट के पद पर कार्यरत थे. पशुपालन विभाग के तत्कालीन क्षेत्रीय निदेशक श्याम बिहारी सिन्हा उनके माध्यम से राजनेताओं की हवाई यात्र के लिए टिकट बुक कराया करते थे. इसी दौरान पशुपालन अधिकारियों से उनका संपर्क बढ़ा. पशुपालन विभाग के अधिकारियों ने उनके बेटे को भी विभाग में सप्लाइ करने का सुझाव दिया. इसके बाद उनके पुत्र राजेश वर्मा ने सप्लाइ करने के लिए जेपी इंटर प्राइजेज और एसके इंटर प्राइजेज नामक दो प्रतिष्ठानों का निबंधन कराया और सप्लाइ करने लगा. सीबीआइ के इस गवाह से क्रास इक्जामिनेशन के लिए 25 नवंबर की तिथि तय की गयी है.
कहां जा रहा है ड्राइ फ्रूट्स!
रांची: बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा में बंद लालू प्रसाद यादव से मिलने वाले अपने प्रिय नेता के लिए रोज कुछ न कुछ लेकर पहुंच रहे हैं. कोई दही लाता है, तो कोई काजू, पिस्ता व बादाम. शायद ही कोई उनसे खाली हाथ मिलने आता है. इन लालू भक्तों का लाया सामान बिरले ही उन तक पहुंच पाता है. प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार लालू प्रसाद से मिलने वाले जितना सामान लाते हैं, उसे एक आदमी चाह कर भी नहीं खा सकता. इसका आनंद तो सुरक्षाकर्मी ही उठाते हैं.
सूत्रों के अनुसार लोगों का ड्राइफ्रूट्स लालू तक नहीं पहुंच पाता. उनके बजाय यह अन्य लोगों के पास चला जाता है. सुरक्षा कर्मी गेट पर ही इनकी वस्तुएं जमा करा लेते हैं. कहा जाता है कि जांच के बाद इसे नेताजी तक अंदर पहुंचा दिया जायेगा. लालू के अनुयायी प्रसन्न हो जाते है कि उनका समान प्रिय नेता तक पहुंच गया. पर हकीकत है कि लालू प्रसाद को जेल का ही खाना दिया जा रहा है. उन्हें एक रसोइया भी दिया गया है. बाहर के खाने पर प्रतिबंध है.
बिना जांच किये कुछ नहीं खाते लालू
जेल मैनुअल के अनुसार, लालू को दिया जानेवाला भोजन जेल चिकित्सकों की देखरेख में ही दिया जाता है. डॉक्टरों को यह जानकारी रखनी होती है कि वह क्या-क्या खा रहे हैं. लालू के स्वास्थ्य का ख्याल चिकित्सकों को रखना होता है. सूत्रों की मानें, तो लालू प्रसाद बाहर सेलाया गया खाद्य पदार्थ छूते तक नहीं है. उनके खास लोग जो लाते हैं, उसे ही खाते हैं. उसकी भी पहले जांच की जाती है.
लालू को जेल भेजवाने में कांग्रेस की भूमिका नहीं
रांची: चारा घोटाला मामले में होटवार जेल में बंद लालू प्रसाद से मिलने मंगलवार को मंत्री चंद्रशेखर उर्फ ददई दूबे, मंत्री राजेंद्र सिंह और सरफराज अहमद एक साथ 3.15 बजे पहुंचे. तीनों ने लालू प्रसाद से लगभग 30 मिनट बातचीत की. फिर पीछे के रास्ते से 3.45 बजे निकल गये. बाद में मंत्री राजेंद्र सिंह ने कहा कि लालू प्रसाद को जेल भेजवाने में कांग्रेस की कोई साजिश नहीं है. यह खबर सिर्फ मीडिया में आयी है. यह पूछे जाने पर कि कांग्रेस चुनाव के दौरान राजद से गंठबंधन करेगी, तो उन्होंने कहा : यह निर्णय लेने का अधिकार केंद्रीय नेतृत्व को है.
रोज पहुंचते हैं सुरेश पासवान
लालू प्रसाद से मिलने मंगलवार को मंत्री सुरेश पासवान भी पहुंचे. वह पूर्व मंत्री पूर्णमासी राम के साथ करीब तीन बजे पहुंचे. वहां विभिन्न राजनीतिक मुद्दों पर उनके बीच करीब एक घंटे बातचीत हुई. शाम लगभग चार बजे श्री पासवान बाहर निकले. जेल प्रशासन के अनुसार, मंत्री सुरेश पासवान रोज ही आते हैं. लालू प्रसाद भी सबसे अधिक समय उन्हें ही देते हैं.
लालू को फंसाने में कांग्रेस की भी भूमिका : अनावरुल हक
लालू प्रसाद से मुलाकात करने होटवार जेल 3. 30 बजे पहुंचे पूर्व सांसद (सीतामढ़ी शिवहर) अनावरुल हक ने कहा : कांग्रेस अपने आप को अल्पसंख्यकों का मसीहा कहती है, लेकिन लालू प्रसाद को फंसाने में कांग्रेस की भूमिका भी कम नहीं है.
खासकर राहुल गांधी की. भाजपा और जदयू ने भी लालू प्रसाद को फंसाने का काम किया है. इसका बदला समय आने पर लिया जायेगा. लालू जी का स्वास्थ्य बिल्कुल ठीक है. विरोधी समझ रहे हैं कि उनके जेल में रहने से बिहार में राजद की राजनीति पर असर पड़ेगा. जबकि ऐसा नहीं है. लालू और सशक्त होकर बाहर निकलेंगे.
लालू का ग्राफ बढ़ा है, चुनाव में दिखेगा
मिलने पहुंचे मनेर के विधायक भाई वीरेंद्र ने कहा
रांची. मनेर से राजद विधायक भाई वीरेंद्र ने मंगलवार को पार्टी सुप्रीमो लालू प्रसाद से जेल में मुलाकात की. पार्टी नेता के साथ वर्तमान राजनीतिक हालात और संगठन पर चर्चा हुई. श्री यादव ने विधायक से संगठन के कामकाज में तेजी लाने और चुनावी तैयारी में जुटने को कहा.
इधर, श्री वीरेंद्र ने कहा है कि बिहार में लालू प्रसाद का ग्राफ बढ़ा है. बिहार की जनता नीतीश और भाजपा से ठगा हुआ महसूस कर रही है. आनेवाले समय में राजनीति करवट लेगी. बिहार के गरीब-गुरबों के साथ नाइंसाफी हुई है. बिहार के गरीब और मेहनतकश आज लालू के पक्ष में गोलबंद है. आनेवाले लोकसभा चुनाव में राजद की ताकत दिखेगी. बिहार में लोग महसूस कर रहे हैं कि लालू प्रसाद को राजनीतिक साजिश के तहत फंसाया गया. नीतीश और भाजपा के लोगों के कुचक्र में लालू फंसे हैं. वह बेदाग होकर निकलेंगे.
राजद विधायक ने कहा कि लालू हमारे नेता हैं और कल भी रहेंगे. लालू प्रसाद के नेतृत्व में ही हम चुनाव लड़ेंगे. सामूहिक नेतृत्व में पार्टी चलेगी. राबड़ी देवी गांव-गांव का दौरा करेंगी. लालू प्रसाद के साथ जिस तरह की साजिश हुई है, उसे जनता तक पहुंचायेंगे. आनेवाले चुनाव में जदयू, भाजपा जैसी पार्टियों का सफाया होगा. अल्पसंख्यक भी समझ गये हैं कि उनके नेता को फंसाया गया है. आनेवाले दिनों में बिहार में सेक्यूलर जमात के हाथों में सत्ता होगी.
जेल रोजनामचा
चारा घोटाले में बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा, होटवार में सजा काट रहे लालू प्रसाद सुबह करीब 5.15 बजे सो कर उठे.
छह से सात बजे के बीच स्नान किया.
8.30 बजे मां दुर्गा की पूजा-अर्चना की.
पूजा के बाद उन्होंने फलाहार किया.
दिन के 2.30 बजे तक आराम किया.
दिन के तीन बजे लोगों से मिलने के लिए वार्ड के बाहर निकले. जेल के मुख्य गेट के पास बने कमरे में बिहार व झारखंड से आनेवाले समर्थकों व अन्य गणमान्य लोगों से मुलाकात की.
मुलाकाती
नाम पहुंचने का समय मुलाकात का समय
राजेंद्र सिंह (मंत्री) 3.15 30 मिनट
ददई दुबे (मंत्री) 3.15 30 मिनट
सरफराज अहमद 3.15 30 मिनट
आनंद मोहन (पूर्व मंत्री) 3.00 बजे 15 मिनट
सोम प्रकाश (पूर्व विधायक) 3.00 बजे 05 मिनट
रामचंद्र चंद्रवंशी (पूर्व विधायक) 3.30 बजे 30 मिनट
समता देवी (पूर्व विधायक ) 3.00 बजे 15 मिनट
राजदेव सिंह 3.00 बजे 30 मिनट
भाई वीरेंद्र 3.00 30 मिनट
अंबिक यादव (विधायक) 4.15 बजे
विजय कृष्ण (पूर्व मंत्री) 4. 00 बजे 05 मिनट
राजनीतिज्ञों को अनुशंसा पत्र लिखने का कानूनी अधिकार नहीं
रांची: चारा घोटाले में सजा पा चुके पूर्व मंत्रियों व राजनीतिज्ञों ने पशुपालन विभाग के अधिकारियों के पक्ष में अनुशंसा पत्र लिखे थे. किसी ने सेवा विस्तार के लिए अनुशंसा पत्र लिखा था. किसी ने जांच, तो किसी ने तबादला रोकने के लिए लिखा था. सीबीआइ ने इसे साजिश का हिस्सा माना है. पर, मंत्रियों व नेताओं की ओर से यह तर्क दिया गया कि राजनीतिक जीवन में हर नेता अनुशंसा पत्र लिखता है. इसमें उसकी मंशा गलत नहीं होती है, इसलिए यह कोई अपराध नहीं है. चारा घोटाले के कांड संख्या आरसी 20 ए/96 में राजनीतिज्ञों का भविष्य तय करने के लिए यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण कानूनी सवाल था कि उन्हें अनुशंसा पत्र लिखने का अधिकार है या नहीं? न्यायाधीश पीके सिंह ने कानून के हवाले से यह प्रमाणित किया कि अनुशंसा पत्र लिखने का अधिकार नहीं है.
न्यायाधीश ने चारा घोटाले में अपने फैसले में पूर्व मंत्रियों और राजनीतिज्ञों की भूमिका की चर्चा करते हुए लिखा है कि लोक लेखा समिति के तत्कालीन अध्यक्ष (जगदीश शर्मा व ध्रुव भगत), तत्कालीन पशुपालन मंत्री (भोला राम तूफानी, चंद्र देव प्रसाद वर्मा, विद्यासागर निषाद), तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष (जगन्नाथ मिश्र) और तत्कालीन विधायक (आरके राणा) तत्कालीन मुख्यमंत्री सह वित्त
मंत्री (लालू प्रसाद) के करीबी लेफ्टिनेंट थे.
अभियोजन (सीबीआइ) के साक्ष्यों से यह स्पष्ट है कि कोषागार के माध्यम से लोक धन (पब्लिक मनी) की निकासी के मामले में इन राजनीतिज्ञों का पशुपालन विभाग के घोटालेबाज अफसरों के साथ गहरे संबंध थे. पशुपालन विभाग के अफसरों को संरक्षण देकर इन राजनीतिज्ञों ने घोटाले को सामान्य रूप से जारी रखने में मदद की. संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए ली गयी शपथ को राजनीतिज्ञ भूल गये थे. चुनाव के माध्यम से जनता ने उनमें जो विश्वास व्यक्त किये थे, वे वह भी भूल गये थे. साक्ष्यों से यह स्पष्ट है कि पशुपालन अधिकारियों द्वारा कोषागार से लोक धन चूसने की जानकारी इन राजनीतिज्ञों को थी. इसके बावजूद किंग पिन ( श्याम बिहारी सिन्हा) को संरक्षण देकर घोटाले को जारी रखने में मदद की और बदले में खुद लाभान्वित हुए. इस तरह इन राजनीतिज्ञों ने जनता द्वारा चुनाव के माध्यम से उनमें व्यक्त किये गये विश्वास का उल्लंघन किया. अगर इस बात पर चर्चा की जाये कि उनके पद से कौन-कौन सी जिम्मेवारियां व शक्तियां जुड़ी थी और कैसे उसे ध्वस्त कर घोटाले को जारी रखने की अनुमति दी गयी, तो अभियोजन पक्ष द्वारा जुटाये गये साक्ष्यों को देखना बेहतर होगा.
अभियोजन पक्ष ने सभी राजनीतिज्ञों के मामले में ऐसी घटनाएं और ऐसे साक्ष्य जुटाये हैं, जो एक-दूसरे से इस तरह जुड़े हैं कि उन्हें अलग- अलग रखना संभव नहीं है. इनमें से सिर्फ एक ही घटना की चर्चा काफी होगी, जिससे यह पता चलता है कि कैसे ढाल बन कर घोटलेबाजों की मदद की गयी. अभियुक्तों के विद्वान अधिवक्ताओं ने लंबी बहस के दौरान यह दलील दी कि राजनीतिज्ञ और जनप्रतिनिधि होने की वजह से उनके मुवक्किलों के पास तबादला रोकने, सेवा विस्तार का लाभ देने जैसे कार्यो के लिए अनुशंसा पत्र लिखने का वैधानिक और विशेषाधिकार है. मैं(न्यायाधीश) मानता हूं कि जब भी नियम/कानून का उल्लंघन होता है, तो पहले गैर कानूनी काम को जन्म देता है और बाद में वह भ्रष्टाचार बन जाता है.
राजनीतिज्ञों को अनुशंसा पत्र लिखने का वैधानिक या विशेषाधिकार है या नहीं, इस पर विचार करने के लिए बिहार प्रीवेंशन ऑफ स्पेसिफाइड करप्ट प्रैक्टिसेज एक्ट 1983 पर नजर डालना जरूरी है. इस अधिनियम को लागू करने के लिए 18 दिसंबर 1983 को अधिसूचना जारी की गयी थी. अधिनियम की धारा 32 में सरकारी कर्मचारियों को अपनी प्रोन्नति, तबादला रोकने, पदस्थापित करने जैसे कार्यो के लिए सामान्य सरकारी प्रक्रिया के अलावा किसी दूसरे तरीके को अपनाना दंडनीय अपराध करार दिया गया है. बिहार गवर्नमेंट सर्विस कंडक्ट रूल 1976 की धारा 22 के तहत भी किसी सरकारी कर्मचारी द्वारा अपने पक्ष में राजनीतिज्ञों से पैरवी पत्र लिखवाने पर पाबंदी लगायी गयी है. ऐसी परिस्थिति में कोई जनप्रतिनिधि किसी सरकारी कर्मचारी को प्रोन्नत करने, तबादला करने या रोकने जैसे अन्य कार्यो के लिए अनुशंसा पत्र कैसे लिख सकता है ?
छुट्टियों में भी कोर्ट आते थे न्यायाधीश
सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश पीके सिंह अपना फैसला लिखने के लिए छुट्टियों में भी कोर्ट आते थे. उन्होंने इसका उल्लेख अपने फैसले के एक हिस्से में ही किया है. उन्होंने लिखा है कि इस कांड की जांच के दौरान साक्ष्य जुटाने के लिए दृष्टि , धैर्य और हिम्मत की जरूरत थी. मामले में साक्ष्य व दस्तावेज इतने ज्यादा थे कि उसे सलीके और सिलसिलेवार ढंग से सजाने के लिए रविवार के अलावा अन्य छुट्टियों में भी कोर्ट आना पड़ता था. हमारे कोर्ट के कर्मचारियों ने इस काम में दिन-रात मेरी मदद की. उनकी मदद के बिना करीब 568 पृष्ठों का फैसला लिखना संभव नहीं था. इसलिए इनकी प्रशंसा किये बिना नहीं रह सकता. सीबीआइ अधिकारी एके झा (जांच अधिकारी), सीबीआइ के विशेष लोक अभियोजक बीएमपी सिंह, अपने स्टेनो नीरज कुमार, बेंच क्लर्क उत्तम आचार्या और कार्यालय के कर्मचारी अनिल उरांव अपने-अपने कार्यो और मदद के लिए विशेष प्रशंसा के हकदार हैं.