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नरेगा घोटाले का खुलासा: बना एक, निकाल लिया दो कुएं का पैसा

-ज्यां द्रेज और रीतिका खेड़ा- टीम ने पंचायत की फाइलों व इंटरनेट पर उपलब्ध नरेगा दस्तावेजों का भी विस्तृत विश्लेषण किया. भारतीय स्टेट बैंक (मनिका शाखा) से प्राप्त बैंक स्टेटमेंट को भी बारीकी से जांचा. इससे भी एक बड़े घोटाले के अनेक सबूत मिले, व कई घोटालेबाजों को चिह्न्ति करने में मदद मिली. चमराहाटांड़ जैसे […]

-ज्यां द्रेज और रीतिका खेड़ा-

टीम ने पंचायत की फाइलों व इंटरनेट पर उपलब्ध नरेगा दस्तावेजों का भी विस्तृत विश्लेषण किया. भारतीय स्टेट बैंक (मनिका शाखा) से प्राप्त बैंक स्टेटमेंट को भी बारीकी से जांचा. इससे भी एक बड़े घोटाले के अनेक सबूत मिले, व कई घोटालेबाजों को चिह्न्ति करने में मदद मिली. चमराहाटांड़ जैसे क्षेत्र में ‘एवज चेक’ यानी सरकारी दस्तावेज़ में किसी का नाम और वास्तव में किसी और के नाम से काटना – के कई और मामले सामने आये. आमतौर पर, दस्तावेजों में किसी सीधे-सादे दलित या आदिवासी का नाम अंकित है, लेकिन वास्तव में चेक बिशुनबांध के बिचौलियों के खाते में गया है. फेंकू शाह के कुएं की फाइल में उसे रुपये 58,560 का चेक (संख्या 887621) दिया गया. असलियत? बैंक में उस चेक को खोजा, तो पाया कि पंचायत सेवक ने उस चेक को ‘‘स्वयं’’ के नाम से जारी कर 12 मई 2012 को पैसा खुद निकाल लिया!

जांच दल ने कई ऐसे लोगों को चिह्न्ति किया जो किसी-न-किसी रूप में इस घोटाले में शामिल थे. कई दोषियों के नाम पहले से अनुमंडल पदाधिकारी की रिपोर्ट में आ चुके थे. लेकिन कुछ गुनहगारों पर पहले ध्यान नहीं गया, जैसे कि स्थानीय डाकपाल, जिसने तगडी कमिशन के बदले में नरेगा मज़दूरी गबन करने में सहायता की. वह डालटनगंज में रहता है और उसका डाकघर अधिकतर समय बंद रहता है. एक और खिलाड़ी है रासबिहारी यादव, रघुनंदन यादव के भाई – हैं बिशुनबांध के रेवतखुर्द गाँव में पारा-शिक्षक, रहते हैं रांची में. नरेगा के इंटरनेट रिकॉर्ड में इनके नाम से दो पूर्ण कुएं है, वास्तव में एक ही बना है. बिशुनबांध घोटाले में अन्य संदिग्ध स्थानीय बिचौलिये में से जगदीश यादव, महेश यादव, कृष्णा यादव, महेश साऊ और श्रवन साऊ के नाम सामने आये.

जांच के चलते घोटाले का एक और भयावह पहलू सामने आया. सीधे-सादे दलित व आदिवासियों का बेरहमी से शोषण. इनके नाम से पैसे निकाले गये, चाहे वह फर्जी काम हों या फर्जी मज़दूरी या फर्जी सामग्री भुगतान. दूसरी ओर, ज्यादातर आरोपी शक्तिशाली समुदाय से हैं.

तेवरही तथाकथित आदिम जनजाति परहैया समुदाय का गांव है, जहां उनके नाम पर बने कुओं, सड़कों और तालाबों से ठेकेदारों ने अपनी जेब तो भर ली, लेकिन परहैया लोगों को कोई फायदा नहीं पहुंचा. लगन परहैया ने अपने घर के पास दस फुट गहरा गड्ढा दिखाया. उसके नाम से बननेवाले कुएं पर उसकी पीठ पीछे दो लाख रु पये भी खर्च हो गये. जगदीश यादव इस फर्ज़ी काम के लिए 10 हज़ार रु पये (चेक संख्या 887621, तारीख मई 2012 ) आराम से डकार गये.

बिशुनबांध के आदिवासी मुखिया झमन सिंह भी इसी शोषण के शिकार हैं जो अनुमंडल पदाधिकारी की रिपोर्ट के बाद की गयी प्राथमिकी के बाद जेल भी जा चुके हैं. ग्राम पंचायत के खाते में सह-हस्ताक्षरकर्ता होने के नाते, उनसे ज़बरदस्ती चेक पर हस्ताक्षर कराये जाते थे, बिना समङो की क्या हो रहा है. जब उन्होंने मना करने की कोशिश की, तो उन्हें उस क्षेत्र के किसी माओवादी या तथाकथित माओवादी स्क्वाड ने पीट दिया.

संतोष राम खुद इन बिचौलियों का प्यादा बन गया. गरीब दलित परिवार के इस नौजवान ने जांच टीम के सामने आसानी से कबूल किया कि चमरहाटांड में कोई कुआं नहीं बना. पुराना ट्रेक्टर खरीदने पर वह ललचा गया. उसे ठेकेदारों ने समझाया कि जो व्यक्ति नरेगा कार्यस्थल पर सामग्री पहुंचाने का काम करता है, उसी के नाम से पूरा भुगतान होता है – सामग्री का और ट्रांसपोर्ट का भी – और फिर उसे सामग्री का भुगतान नकद करना होगा. इसी वजह से उसके खाते में तैंतीस लाख रु पये आये और गये. आज उसके खाते में सिर्फ 1371 रुपये हैं, बाकी सारा पैसा औरों को दे दिया गया. अब उसके खिलाफ चार्जशीट तैयार है और लातेहार जेल फिर से जाने के खयाल से वह खौफज़दा है. संतोष जैसे प्यादा शायद और भी हैं, जिन्हे असली घोटालेबाजों ने बहुत होशियारी से सरकारी कागज़ों में आगे रखा गया, ताकि कभी जांच हो, तो वह खुद न पकड़े जायें. लेकिन इस बार उनका परदाफाश हो गया है और जिला उपायुक्त मुकेश कुमार उनके खिलाफ सख्त कार्यवाही करने के लिए तैयार हैं.

जांच टीम ने बिशुनबांध पंचायत में नरेगा कामों का सकारात्मक रूप भी देखा. जहां कुएं बने हैं, वहां किसान सब्ज़ी और अन्य खेती कर रहे हैं. वैसे ही नरेगा द्वारा बनायीं गयी मिट्टी मोरम सड़कें अन्य पथरीली कमर तोड़ने वालीं सड़कों की तुलना में बहुत अच्छी पायीं गयीं. इस क्षेत्र में जल संधारण, समतलीकरण, वृक्षारोपण जैसे अन्य उपयोगी बहुत काम किये जा सकते हैं. यदि भ्रष्टाचार को रोका जा सकता है, तो नरेगा बिशुनबांध की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में नयी जान फूंकी जा सकती है. साथ ही यहां के गरीब परिवारों को राहत पंहुचायी जा सकती है. मणिका प्रखंड के अन्य हिस्सों में भ्रष्टाचार को रोकने में काफी कामियाबी प्राप्त हुई है, तो बिशुनबांध में भी यह अवश्य हो सकता है.

(लेखक रांची विश्वविद्यालय और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली से संबंध रखते हैं)

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