Bihar News: तालाब-झीलों में उगने वाली, बेकार मानी जाने वाली जलकुंभी अब काम की चीज बन गई है. इस नयी पहल से प्लास्टिक का इस्तेमाल घटेगा और बिहार को राष्ट्रीय व विश्व स्तर पर नई पहचान मिलेगी. केंद्रीय वस्त्र मंत्रालय की पहल पर विकास आयुक्त (हस्तशिल्प) कार्यालय, पटना ने वैशाली जिले के भगवानपुर प्रखंड के सतपुरा गांव में 50 से ज्यादा महिलाओं को इसकी ट्रेनिंग दी है. महिलाओं में इसे लेकर खासा उत्साह है.
जलकुम्भी से तैयार हुई ये चीजें
जलकुंभी से पर्स, बैग, कुशन कवर, गमले रखने के प्लांटर, टोकरी, दरी, चटाई, डाइनिंग मैट और लौंड्री बास्केट जैसे कई सामान बनाए जा रहे है.
प्लास्टिक का उपयोग होगा कम
अब तक इन कामों में प्लास्टिक और दूसरी चीजों का इस्तेमाल ज्यादा होता था, लेकिन जलकुंभी से बने सामानों का उपयोग पर्यावरण बचाने की दिशा में बड़ा कदम साबित होगा. केंद्रीय वस्त्र मंत्रालय के अनुसार यह प्रशिक्षण हस्तशिल्प सेवा केंद्र के जरिए सफलतापूर्वक कराया गया है.
जलकुंभी से रोजगार की राह
वस्त्र मंत्रालय के मुताबिक गुवाहाटी में जलकुंभी से सामान बनाने का काम होता है. बिहार में खासकर उत्तर बिहार में बाढ़ के कारण बड़ी मात्रा में जलकुंभी पाई जाती है, जिससे खेत और तालाब भर जाते हैं. अब इसका सही इस्तेमाल स्थानीय लोगों के लिए रोजगार का नया साधन बनेगा.
100 रु किलो बिकती है जलकुंभी
जलकुंभी को सुखाकर सही तरीके से रखने पर यह 100 रुपये प्रति किलो तक बिकती है. इससे स्थानीय लोगों को रोजगार का मौका मिलेगा और महिलाएं आसानी से इससे सामान बनाकर स्वरोजगार कर सकेंगी.
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जलीय जीवों को जलकुंभी की परेशानी से मिलेगी मुक्ति
इससे मछली पालन और जलीय जीवों को जलकुंभी की परेशानी से छुटकारा मिलेगा. ये उत्पाद घर और दफ्तर में आसानी से इस्तेमाल किए जा सकते हैं. बता दें की अच्छा काम करने पर कलाकारों को राज्य और देश स्तर पर इनाम भी मिल सकता है.
(जयश्री आनंद की रिपोर्ट)
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