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सात साल में भी नहीं पहुंचे भगवान बुद्ध के अस्थि अवशेष

वैशाली : आज से लगभग सात साल पहले वर्ष 2010 में पटना हाइकोर्ट ने बिहार सरकार को आदेश दिया था कि वह ‘विदिन ए इयर’ वैशाली में एक संग्रहालय बनवा कर वहां बुद्ध की उन अस्थि अवशेषों को वापस वैशाली में रखे, जहां से उसे सुरक्षा के कारणों से पटना संग्रहालय में रखा गया है. […]

वैशाली : आज से लगभग सात साल पहले वर्ष 2010 में पटना हाइकोर्ट ने बिहार सरकार को आदेश दिया था कि वह ‘विदिन ए इयर’ वैशाली में एक संग्रहालय बनवा कर वहां बुद्ध की उन अस्थि अवशेषों को वापस वैशाली में रखे, जहां से उसे सुरक्षा के कारणों से पटना संग्रहालय में रखा गया है. मगर अब तक वैशाली में संग्रहालय और बुद्धिस्ट सेंटर के लिए जमीन ही अर्जित की जा सकी है. अब वैशाली के बुद्धिजीवी और वहां की जनता पूछ रही है कि क्या विदिन ए इयर का मतलब यही होता है?

जो सरकार पटना में बुद्ध स्मृति पार्क सिर्फ चार साल में तैयार करवा सकती है, उसे हाइकोर्ट के निर्देश के बाद भी वैशाली में संग्रहालय और बुद्धिस्ट सेंटर बनवाने में इतना वक्त क्यों लग रहा है. इसको लेकर पटना हाइकोर्ट में इसी वर्ष मार्च में एक अवमानना का मुकदमा भी दायर किया गया है. वैशालीगढ़ स्थित रेलिका स्तूप साइट पर आज भी वह जगह खाली नजर आती है, जहां से 1958 में खुदाई के दौरान अति दुर्लभ बुद्ध के अस्थि अवशेष मिले थे. ये वो अस्थि अवशेष हैं,

जिन्हें बुद्ध के अंतिम संस्कार के बाद आठ जनपदों के बीच बांटा गया था. इनमें से कुछ ही जगहों पर ये अस्थि अवशेष मिले हैं. ऐसे में इन अवशेषों का महत्व बढ़ जाता है. जानकार बताते हैं कि ये अवशेष 1972 तक वैशाली में ही थे, मगर बाद में सुरक्षा कारणों से इसे पटना संग्रहालय में ले जाकर रखा गया. इस बीच कई दफा ये खबरें पुष्ट और अपुष्ट स्रोतों से सामने आयीं कि इन्हें या तो नालंदा या पटना में बनने वाले बुद्ध स्मृति पार्क में रखा जायेगा.

इससे वैशाली की जनता में आक्रोश का भाव था.
मुआवजा राशि पर आपत्ति
हाइकोर्ट में याचिका करने वाले डॉ रामनरेश राय कहते हैं, अब राज्य में महागठबंधन की सरकार है, फिर भी काम में अपेक्षित गति नहीं नजर आ रही है. 2006 से वैशाली वासी सिर्फ नेताओं के वादे सुन रहे हैं. इस परियोजना में जमीन देने वाले किसानों में भी आक्रोश है. वे भू-अर्जन पदाधिकारी पर अनियमितता का आरोप लगाते हुए आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं. किसान मजदूर संघर्ष मोरचा के प्रदेश उपाध्यक्ष हरेंद्र राय कहते हैं कि एक ही तरह की जमीन के अलग-अलग मुआवजे तय किये गये हैं. नब्बे फीसदी किसानों ने मुआवजे को लेकर आपत्ति दर्ज करायी है.
ऐसे में इन आपत्तियों का समाधान किये बगैर अगर काम शुरू हुआ तो किसान आंदोलन के लिए मजबूर होंगे.
सात साल में केवल जमीन का हुआ अधिग्रहण
इन्हीं मसलों को लेकर एक स्थानीय व्याख्याता डॉ रामनरेश राय की अगुआई में कुछ प्रबुद्ध लोगों ने 2008 में पटना हाइकोर्ट में जनहित याचिका दायर की. इस पर फैसला सुनाते हुए सात दिसंबर 2010 को हाइकोर्ट ने कहा कि सरकार विदाउट एनी डिले, प्रिफरेबली विदिन ए इयर वहां संग्रहालय और बुद्धिस्ट सेंटर की स्थापना करे. मगर अब तक वहां इस काम के लिए सिर्फ 76 एकड़ जमीन का अधिग्रहण हो सका है. अभी इसके सीमांकन और चहारदीवारी का काम शुरू होना है.
इस अभियान से शुरुआत से जुड़े पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह कहते हैं, क्या कहा जाये, सरकार की ढिलाई है. ऐसे ही काम हो रहा है. फिलहाल 432 करोड़ की राशि चुका कर भूमि अर्जन का काम हाल ही में संपन्न हुआ है. अब 154 करोड़ की लागत से यहां आइआइटी की निगरानी में बुद्धिस्ट सेंटर बनेगा. गौरतलब है कि यहां बौद्ध सम्यक दर्शन संग्रहालय, मेडिटेशन सेंटर, अस्थि कलश भवन आदि का निर्माण होना है. रघुवंश प्रसाद सिंह काफी वर्षों से वैशाली को बुद्धिस्ट सेंटर के रूप में विकसित करने के अभियान से जुड़े हैं. 2007 में इस मसले को लेकर उनके और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के अगुवाई में केसरिया से पटना तक पदयात्रा निकाली गयी थी, जिसमें खास तौर पर अस्थि अवशेषों को वैशाली लाने की मांग रखी गयी थी.

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