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विष्णुपद मंदिर मामले में फैसला धार्मिक न्यास बोर्ड के पक्ष में, उच्च न्यायालय में अपील दायर करेगी मंदिर प्रबंधकारिणी समिति

फैसले में विष्णुपद मंदिर काे धार्मिक न्यास बाेर्ड काे साैंपने की बात कही गयी है. यह मामला विगत 43 वर्षों से चला आ रहा है. पटना हाइकोर्ट के आदेश के अनुसार इस अपील में प्रतिदिन सुनवाई की जा रही थी.

गया. विष्णुपद मंदिर मामले में सोमवार को गया व्यवहार न्यायालय के अतिरिक्त जिला व सत्र न्यायाधीश प्रथम के न्यायालय में फैसला सुनाया गया. फैसले में विष्णुपद मंदिर काे धार्मिक न्यास बाेर्ड काे साैंपने की बात कही गयी है.

यह मामला विगत 43 वर्षों से चला आ रहा है. पटना हाइकोर्ट के आदेश के अनुसार इस अपील में प्रतिदिन सुनवाई की जा रही थी. विष्णुपद मंदिर प्रबंधकारिणी समिति की ओर से वरीय अधिवक्ता सीता पति चखैयार, विपिन कुमार सिन्हा व राकेश कुमार वर्मा थे.

उन्होंने अपनी बहस के दौरान न्यायालय को बताया कि यह भगवान ब्रह्मा द्वारा गयापाल पंडे को दिया गया है, जिसका उल्लेख विभिन्न पुराणों में है. पंडा समाज के द्वारा ही विष्णुपद मंदिर की देखरेख, रखरखाव की व्यवस्था की जाती रही है.

यह उन लोगों का निजी है. दूसरी ओर बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड के वरीय अधिवक्ता राजन प्रसाद ने कहा कि मंदिर के रखरखाव व देखरेख के संबंध में सार्वजनिक शिकायत मिलने पर बिहार राज धार्मिक न्यास पर्षद ने सर्वप्रथम 1968 में न्यास कमेटी का गठन करने के लिए गयापाल पंडा को नोटिस दिया.

उसके बाद 1977 में पुनः अधिसूचना जारी कर न्यास का गठन किया. इसके बाद गयापाल पंडा ने एक विविध वाद संख्या 28/1977 जिला व सत्र न्यायाधीश के न्यायालय में लाया, जहां से विष्णुपद मंदिर को सार्वजनिक घोषित किया गया. इस निर्णय के विरुद्ध गयापाल पंडा ने उच्च न्यायालय में विविध अपील संख्या 261/19 78 दाखिल किया.

उसके लंबित रहने के बाद गयापाल पंडा ने एक प्रतिनिधि हकीयत मुकदमा 38/ 1977 गया व्यवहार न्यायालय में लाया, जिसमें तत्कालीन सब जज ने 1982 में हकीयत 38 / 1977 को मेंटेनेबल नहीं मानते हुए खारिज कर दिया. इसके विरुद्ध गयापाल पंडा 11/ 1982 लाया, जिसे अतिरिक्त जिला व सत्र न्यायाधीश ने सुनवाई के लिए कुछ विशिष्ट दिशा-निर्देश देकर निम्न न्यायालय में वापस भेज दिया.

इसके अनुसार पुनः सब जज गया के न्यायालय में हकीयत वाद 38/ 1977 की सुनवाई प्रारंभ हुई, जिसमें गया पाल पंडा वादी गण की ओर से 19 गवाह प्रस्तुत किये गये. तत्पश्चात एकतरफा आदेश 1992 में पारित किया गया.

इसके विरुद्ध धार्मिक न्यास परिषद ने हकीयत अपील जिला व सत्र न्यायाधीश गया के न्यायालय में लाया, जिसका हकीयत अपील संख्या 45/ 1993 पड़ा . यह अपील 2006 में अदम्य पैरवी में खारिज हो गया. इसके संबंध में विविध वाद संख्या 01/2007 पुनर्जीवित करने के लिए धार्मिक न्यास बोर्ड ने लाया.

इसमें 25 सितंबर 2020 को सुनवाई के लिए पुनर्जीवित किया गया. इसके बाद हकीयत अपील 45/1993 की सुनवाई अतिरिक्त जिला व सत्र न्यायाधीश प्रथम वीरेंद्र कुमार मिश्रा के न्यायालय में प्रारंभ हुई और उभय पक्षों को गहराई से सभी बिंदुओं पर सुनने के बाद इस मामले में निर्णय धार्मिक न्यास बोर्ड के पक्ष में पारित किया गया.

इस मामले में धार्मिक न्यास बोर्ड की ओर से राजन प्रसाद व संजय सिंह आजाद ने बहस की. इधर, इस फैसले के बाद श्रीविष्णुपद मंदिर प्रबंधकारिणी समिति तिर्थवृत्ति सुधारणी सभा की संयुक्त बैठक आयोजित की गयी महासभा के मंत्री मणिलाल बारिक ने बताया कि इस फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील दायर करेंगे.

Posted by Ashish Jha

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