सुपौल. मिथिला की समृद्ध लोक संस्कृति से जुड़ा विशेष पर्व कोजागरा छह अक्टूबर को मनाया जाएगा. खासकर नवविवाहित दूल्हों के घर इस पर्व को लेकर उत्सवी माहौल देखने को मिल रहा है. ससुराल से दूल्हों के लिए विशेष सामान आने का सिलसिला शुरू हो चुका है और रिश्तेदार के आगमन से रौनक बढ़ गयी है. कोजागरा पर्व को लेकर सुपौल समेत मिथिला के बाजारों में जबरदस्त चहल-पहल है. जगह-जगह मखाना की दुकानें सज चुकी हैं. लोग बांस के डाले, वस्त्र और मिठाई की खरीदारी में व्यस्त हैं. इस बार मखाने की कीमतों में जबरदस्त उछाल देखने को मिला है. पिछले साल जहां मखाना 600 से 800 रुपये प्रति किलो बिक रहा था, वहीं इस साल इसकी कीमत 1200 से 1800 रुपये तक पहुंच गयी है. सामान्य क्वालिटी का मखाना भी 950 से 1800 रुपये तक बिक रहा है. कोजागरा पर्व मुख्य रूप से ब्राह्मण और कर्ण कायस्थ समाज द्वारा मनाया जाता है.
समाज में मखाना-बताशा और पान बांटने की भी खास परंपरा
अश्विन मास की पूर्णिमा यानी शरद पूर्णिमा की रात्रि में माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस रात चंद्रमा सबसे अधिक प्रकाशमान और शीतल होता है तथा धरती पर अमृत वर्षा होती है. इस अवसर पर नवविवाहित दूल्हों के घर विशेष आयोजन होते हैं. ससुराल से पान, मखाना, नारियल, केला, वस्त्र और अन्य सामग्री आती है. घर की महिलाएं आंगन में अष्टदल कमल का अरिपन बनाकर दूल्हे का चुमावन करती हैं. बुजुर्ग दूर्वाक्षत देकर आशीर्वाद देते हैं. समाज में मखाना-बताशा और पान बांटने की भी खास परंपरा है. जानकारों की मानें, तो द्वापर में भगवान श्री कृष्ण ने शरद पूर्णिमा यानी कोजागरा के दिन ही महारास लीला करके समस्त भक्तों को आध्यात्मिक संदेश दिया था. वह दिवस आश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा थी. जिसको शरद पूर्णिमा कहते हैं. तभी से वह महोत्सव के रूप में मनाए जाने लगा. पंडित आचार्य धर्मेंद्र नाथ मिश्र ने बताया कि इस दिन घर आंगन को पवित्रता से साफ-सफाई करके पूजन करना चाहिए. सायंकाल में घर के द्वार के ऊपर दीवार समीप, पूर्णेन्दु, स्वस्तिक सौभाग्य, रुद्र, स्कंद, नंदीश्वर, मुनि, श्री, लक्ष्मी, इंद्र, कुबेर का पूजन करें. पूजन सामग्री में गंगाजल, कुश, रक्तचंदन, श्रीखंड चंदन, सिंदूर, रोली, मोली, बिल्व पत्र, खीर, मधुर मिष्ठान, पान सुपारी, नेवैद्य आदि के द्वारा विशेष पूजन करने से लक्ष्मी जी की असीम अनुकंपा प्राप्त होती है.
विशिष्ट होता है कोजागरा का डाला
इस पर्व पर तैयार होने वाला बड़ा डाला विशेष आकर्षण का केंद्र होता है. पांच से छह फुट व्यास के बांस के बने डाले को धान, मखाना, नारियल, केला, छाछ, पान की ढोली, मिठाइयां, चांदी की कौड़ी, वस्त्र, जनेऊ, सुपारी और कलात्मक सजावट से भरा जाता है. इसे कई महिलाएं मिलकर उठाती हैं और वर का चुमावन करती हैं.कौड़ी खेलने और गीत-संगीत का आयोजन
कोजागरा की रात को जागरण का विशेष महत्व है. इस दौरान जीजा, साला, देवर और भाभी के बीच कौड़ी खेलने की परंपरा है. महिलाएं हास-परिहास करती हैं और दूल्हे के सिर पर छाता ताना जाता है. पांच ब्राह्मण मिलकर दूर्वाक्षत देकर आशीर्वाद देते हैं. कई जगहों पर मैथिली गीत-संगीत की महफिलें भी सजती हैं, जिससे पूरे समाज में हर्षोल्लास का वातावरण बन जाता है. मान्यता है कि कोजागरा की रात चंद्रमा से अमृत की वर्षा होती है और उसकी रोशनी से धरती आलोकित हो उठती है. कहा जाता है कि इसी रात माता लक्ष्मी धरती पर अवतरित होकर देखती हैं कि कौन उनके स्वागत में जागरण कर रहा है. इसी कारण इसे ‘को-जागरा’ यानी कौन जाग रहा है कहा जाता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

