सुपौल. मध्य विद्यालय बसबिट्टी के प्रांगण में शनिवार को नालसा (राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण) के निर्देशानुसार दत्तक ग्रहण से संबंधित एक जागरूकता शिविर का आयोजन किया गया. शिविर में पैनल अधिवक्ता विमलेश कुमार ने हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 के प्रावधानों पर विस्तृत जानकारी दी. उन्होंने बताया कि इस अधिनियम के तहत दत्तक ग्रहण वह प्रक्रिया है जिसमें एक बच्चा दत्तक माता-पिता की कानूनी संतान बन जाता है और उसे प्राकृतिक संतान के समान अधिकार एवं जिम्मेदारियां प्राप्त होती हैं. उन्होंने स्पष्ट किया कि वैध दत्तक ग्रहण के लिए कुछ शर्तें होती हैं जैसे दत्तक माता-पिता और बच्चे की क्षमता, आयु, वैवाहिक स्थिति, मानसिक स्वास्थ्य और देखभाल की योग्यता. भारत में दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया सीएआरए (केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण) से मान्यता प्राप्त एजेंसियों के माध्यम से पूरी की जाती है, जिसमें पंजीकरण, होम स्टडी रिपोर्ट, बच्चे का चयन और अंततः अदालत की मंजूरी शामिल है. अधिवक्ता कुमार ने कहा कि दत्तक ग्रहण न केवल बच्चे को सुरक्षित और स्थिर परिवार देता है, बल्कि माता-पिता बनने का सुखद अनुभव भी प्रदान करता है. इस अवसर पर पीएलवी मो निजाम, मो अज्जम सहित कई लोग उपस्थित थे.
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