वार्ड नंबर 28 के मध्य विद्यालय सरही मलिकाना बना उदाहरण सुपौल. शिक्षा के क्षेत्र में सरकारी विद्यालय अब किसी भी मायने में निजी स्कूलों से पीछे नहीं हैं. आधुनिक शिक्षा पद्धति और नवाचार के माध्यम से सरकारी स्कूलों की छवि में लगातार सुधार हो रहा है. जिले के विभिन्न प्राथमिक विद्यालयों में अब नन्हें बच्चों को ””जॉनी जॉनी यस पापा””, ””ए बी सी डी”” जैसे प्री-प्राइमरी पाठ्यक्रमों के जरिए खेल-खेल में शिक्षा दी जा रही है. इसका असर न सिर्फ बच्चों की पढ़ाई पर, बल्कि उपस्थिति पर भी साफ तौर पर दिख रहा है. पहले जहां अभिभावक सरकारी स्कूलों से दूरी बना रहे थे, वहीं अब वे अपने बच्चों को स्कूल भेजने के प्रति उत्साहित नजर आ रहे हैं. यही कारण है कि इन विद्यालयों में बच्चों की उपस्थिति में उल्लेखनीय बढ़ोतरी देखी जा रही है. शिक्षकों का कहना है कि यदि इसी तरह बच्चों को आकर्षक तरीके से पढ़ाया जाए, तो न केवल नामांकन दर में वृद्धि होगी बल्कि शैक्षणिक गुणवत्ता में भी सुधार आएगा. सरकारी स्कूलों की बदलती तस्वीर शिक्षकों द्वारा अपनाए गए सरल, रोचक और बालमैत्री तरीकों से बच्चों की रुचि पढ़ाई की ओर बढ़ी है. पहले जहां अभिभावक सरकारी स्कूलों को लेकर संकोच में रहते थे, वहीं अब वे स्वयं अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. नतीजन स्कूलों में उपस्थिति दर में लगातार बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है. सरही मलिकाना बना रोल मॉडल नगर परिषद क्षेत्र के वार्ड नंबर 28 स्थित मध्य विद्यालय सरही मलिकाना सरकारी स्कूलों की इस बदलती तस्वीर का जीवंत उदाहरण बनकर उभरा है. शुक्रवार को विद्यालय का निरीक्षण करने पहुंचे प्रतिनिधियों को यह देखकर खुशी हुई कि सभी बच्चे एकसमान ड्रेस में अनुशासन के साथ पढ़ाई कर रहे थे. विद्यालय के प्रधानाध्यापक जगदेव साह ने बताया कि जब उन्होंने यहां योगदान दिया था, तब स्कूल में मात्र 60-70 बच्चे ही नियमित रूप से आते थे. लेकिन आज की तारीख में यह संख्या बढ़कर करीब 350 हो चुकी है. यह सफलता केवल बेहतर पढ़ाई की ही नहीं, बल्कि सामुदायिक सहयोग और समर्पण की भी कहानी है. विद्यालय विकास में प्रधानाध्यापक की अहम भूमिका विद्यालय की जरूरतों को देखते हुए प्रधानाध्यापक जगदेव साह ने खुद पहल करते हुए स्थानीय लोगों से चंदा इकट्ठा कर 01 कट्ठा 08 धूर जमीन खरीदी, जिससे विद्यालय के विस्तार का रास्ता खुला. उनके प्रयासों ने न केवल स्कूल की संरचना को बेहतर बनाया, बल्कि समुदाय के बीच विद्यालय के प्रति विश्वास भी बढ़ाया. शिक्षकों का मानना है कि यदि बच्चों को इसी तरह रोचक और सृजनात्मक ढंग से पढ़ाया जाए, तो शैक्षणिक गुणवत्ता और नामांकन दर, दोनों में अप्रत्याशित सुधार संभव है.
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