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चमकी बुखार से निपटने के लिए विभाग अलर्ट, स्वास्थ्य कर्मियों को दिया गया प्रशिक्षण

जिले में पांच महीने में मिले दो मरीज

– जिले में पांच महीने में मिले दो मरीज सुपौल. स्वास्थ्य विभाग पटना के निर्देश पर बुधवार को जिला स्वास्थ्य समिति द्वारा सदर अस्पताल के कमरा नंबर 213 में सीएस डॉ ललन कुमार ठाकुर की अध्यक्षता में एइएस एवं जेइ से संबंधित एक दिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन किया गया. प्रशिक्षण में सभी प्रखंड चिकित्सा पदाधिकारी, बीएचएम एवं बीसीएम मौजूद थे. सभी उपस्थित डॉक्टर एवं स्वास्थ्य कर्मियों को जिला मलेरिया पदाधिकारी डॉ दीप नारायण राम एवं डॉ चंद्रभूषण मंडल ने एइएस एवं जेइ से संबंधित विषयों पर विस्तृत जानकारी दी. डॉ दीप नारायण राम ने कहा कि सितंबर 2024 तथा जनवरी 2025 में जिले में एइएस (चमकी बुखार) से संबंधित दो केस मिले है. दोनों ही केस त्रिवेणीगंज क्षेत्र का है. डॉ राम ने बताया कि यह एक वायरस है. जिससे बचाव को लेकर स्वास्थ्य विभाग के द्वारा एडवाइजरी जारी किया गया है. कहा कि गर्मी के मौसम में यह वायरस ज्यादा एक्टिव हो जाता है. जिससे बचने की जरूरत है. कहा कि बच्चों को तेज धूप से बचाएं. हो सके तो बच्चों को दिन में दो बार स्नान कराए. गर्मी के दिनों में बच्चों को ओआरएस अथवा नींबू पानी-चीनी का घोल पिलाए. रात में बच्चों को भरपेट खाना खिलाकर ही सुलाए. चमकी बुखार होने पर क्या करें तेज बुखार होने पर पूरे शरीर को ताजे पानी से पोछे एवं पंखा से हवा करें. ताकि बुखार 100 डिग्री से कम हो सके. पारासिटामोल की गोली/सीरप मरीज को चिकित्सीय सलाह पर दें. यदि बच्चा बेहोश नहीं है, तब साफ एवं पीने योग्य पानी में ओआरएस का घोल बनाकर पिलायें. बेहोशी/मिर्गी की अवस्था में बच्चे को छायादार एवं हवादार स्थान पर लिटाएं. चमकी आने पर मरीज को बाएं या दाएं करवट में लिटाकर ले जाएं. बच्चे के शरीर से कपड़े हटा लें एवं गर्दन सीधा रखें. अगर मुंह से लार या झाग निकल रहा हो तो साफ कपड़े से पोछे. जिससे कि सांस लेने में कोई दिक्कत नहीं हो. तेज रोशनी से बचाने के लिए मरीज की आंखों को पट्टी या कपड़े से ढंके. चमकी होने पर क्या नहीं करें बच्चे को कंबल या गर्म कपड़ों में नहीं लपेटें. बच्चे की नाक बंद नहीं करें. बेहोशी/मिर्गी की अवस्था में बच्चे के मुंह से कुछ भी न दें. बच्चे का गर्दन झुका हुआ नहीं रखें. चूंकि यह दैविक प्रकोप नहीं है, बल्कि अत्यधिक गर्मी एवं नमी के कारण होने वाली बीमारी है. अतः बच्चे के इलाज में ओझा-गुणी में समय नष्ट नहीं करें. मरीज के बिस्तर पर नहीं बैठे तथा मरीज को बिना वजह तंग नहीं करें. ध्यान रहे की मरीज के पास शोर नहीं हो और शांत वातावरण बनाये रखें. कहते है सीएस सिविल सर्जन डॉ ललन कुमार ठाकुर ने बताया कि एइएस एवं जेइ से संबंधित रोगों के बारे में जिले भर के स्वास्थ्य कर्मियों प्रशिक्षण दिया जा रहा है. कहा कि जिले भर के सभी स्वास्थ्य कर्मियों को एइएस एवं जेइ से संबंधित रोगों को लेकर अलर्ट मोड में रहने को कहा गया है.

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