सुपौल. सदर प्रखंड के चकडुमरिया स्थित आंगनबाड़ी केंद्र के प्रांगण में रविवार को नालसा के निर्देशानुसार पीसी पीएनडीटी एक्ट 1994 (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम के संबंध में जागरूकता शिविर का आयोजन किया गया. शिविर में पैनल अधिवक्ता विमलेश कुमार ने विस्तार से बताया कि यह अधिनियम 20 सितंबर 1994 से लागू है, जिसका मुख्य उद्देश्य प्रसव पूर्व निदान तकनीकों का दुरुपयोग रोकना है, जो लिंग चयन और कन्या भ्रूण हत्या का कारण बनते हैं. उन्होंने बताया कि अधिनियम के तहत, प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण के लिए विज्ञापन करना या जांच करना दंडनीय अपराध है, जिसमें पहली बार दोषी पाए जाने पर 03 साल तक की कैद और 10 हजार से 50 हजार तक का जुर्माना हो सकता है. दूसरी बार दोषी पाए जाने पर 05 साल की कैद और 01 लाख तक का जुर्माना हो सकता है. इसके अलावा, लिंग जांच करने वाले क्लीनिकों का पंजीकरण रद्द करने का भी प्रावधान है. भारतीय दंड संहिता की धारा 313 के तहत, महिला की सहमति के बिना गर्भपात कराने पर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है. शिविर में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 (पीसी एक्ट) पर भी जानकारी दी गई, जिसका उद्देश्य सरकारी तंत्र और सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार को रोकना है. इसी तरह दहेज निषेध अधिनियम 1961 के बारे में बताया गया कि दहेज लेने या देने पर 05 साल तक की कैद और 15 हजार अथवा उपहार की कीमत (जो भी अधिक हो) का जुर्माना हो सकता है. दहेज से जुड़े उत्पीड़न, आत्महत्या के लिए प्रेरणा और मृत्यु के मामलों में भी कठोर दंड का प्रावधान है. कार्यक्रम में ग्रामवासी एवं पीएलबी सदस्य मो निजाम और मो मोअज्जम सहित कई लोग उपस्थित रहे.
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