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सरकारी भजनियां बने हैं सरकारी स्कूल के बच्चे

फोटो-3केप्सन- रैली में शामिल बच्चे (फाइल फोटो) प्रतिनिधि, सुपौल जिले के सरकारी विद्यालयों में शिक्षा की स्थिति बदहाल है, लेकिन सरकारी कार्यक्रमों में सरकारी स्कूल के बच्चों को ‘भजनियां’ बना कर पेश करने की परंपरा तेजी से विकसित हो रही है. हैरानी तब होती है जब चिलचिलाती धूप, झमाझम बारिश और कड़ाके की ठंड में […]

फोटो-3केप्सन- रैली में शामिल बच्चे (फाइल फोटो) प्रतिनिधि, सुपौल जिले के सरकारी विद्यालयों में शिक्षा की स्थिति बदहाल है, लेकिन सरकारी कार्यक्रमों में सरकारी स्कूल के बच्चों को ‘भजनियां’ बना कर पेश करने की परंपरा तेजी से विकसित हो रही है. हैरानी तब होती है जब चिलचिलाती धूप, झमाझम बारिश और कड़ाके की ठंड में भी मासूम बच्चों को विभिन्न कार्यक्रम और रैलियों में शामिल कराया जाता है, जिसकी विषय वस्तु से बच्चों को कोई लेना-देना नहीं होता है. एक दिसंबर को विश्व एड्स दिवस मनाया गया. इस अवसर पर स्वास्थ्य विभाग की ओर से जो रैली निकाली गयी, उसमें वैसे अबोध बच्चे एड्स जागरूकता का नारा लगा रहे थे, जिन्हें एड्स शब्द का मतलब भी पता नहीं है. कुछ हीं दिन पहले उत्पाद विभाग ने मद्यपान निषेध दिवस मनाया गया. इसमें भी जो रैली निकली, उसमें छोटे-छोटे बच्चे ही नशाखोरी के खिलाफ नारे लगा रहे थे. मौका जब भी भीड़ जुटाने का होता है, सरकारी स्कूल के बच्चों को इस्तेमाल किया जाता है. वहीं प्राइवेट स्कूल के बच्चों को इस कवायद से दूर रखा जाता है. आरटीइ के तहत वर्ष में कम से कम 235 दिन पढ़ाई होनी चाहिए, लेकिन विभिन्न दिवस एवं कार्यक्रमों के कारण यह अधिकार हाशिये पर है. रैली में बच्चों के शामिल होने की परंपरा रही है. इस वजह से पढ़ाई जरूर बाधित होती है. इस पर विचार करने की जरूरत है. जाहिद हुसैन , डीइओ ,सुपौल

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