प्रतिनिधि,महाराजगंज. प्रखंड का बंगरा ऐसा गांव है, जहां 27 स्वतंत्रता सेनानियों ने देश को आजाद कराने के लिए अंग्रेजों से लोहा लिया था.स्वतंत्रता सेनानियों ने देश की आजादी के लिए अपनी जान गंवा दी. फिरंगियों के दांत खट्टे करने वाले देवशरण सिंह अंग्रेजी हुकूमत की गोली से शहीद हो गये थे. महाराजगंज अनुमंडल के बंगरा गांव जैसा देश में शायद ही कोई ऐसा गांव होगा, जहां 27 स्वतंत्रता सेनानियों पैदा हुए हों. इनमें देवशरण सिंह के अलावा रामलखन सिंह, टुकड़ सिंह, गजाधर सिंह, रामधन राम, रामपृत सिंह, सुंदर सिंह, राम परीक्षण सिंह, शालीग्राम सिंह, गोरख सिंह, फेंकू सिंह, जुठुन सिंह, काली सिंह, सूर्यदेव सिंह, बम बहादुर सिंह, राज नारायण उपाध्याय, राम एकबाल सिंह, तिलेश्वर सिंह, देव पूजन सिंह, रघुवीर सिंह, नागेश्वर सिंह, शिव कुमार सिंह, झूलन सिंह, राजाराम सिंह, सीता राम सिंह, मुंशी सिंह व सुरेंद्र प्रसाद सिंह शामिल हैं. भारत छोड़ो स्वतंत्रता आंदोलन के नायक रहे उमाशंकर प्रसाद- देश जब अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नेतृत्व में अंग्रेजों भारत छोड़ों का नारा लगा रहा था, उस समय महाराजगंज में एक युवा मात्र 28 वर्ष की उम्र में अपनी निजी भूमि में निजी कोष से उमाशंकर प्रसाद हाइ स्कूल की स्थापना कर युवाओं को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत का पाठ पढ़ा रहा था. वह शख्स था उमाशंकर प्रसाद, जिसने अपनी बहादुरी और हिम्मत से अंग्रेजों के नाको चने चबा दिये. 1928 में महात्मा गांधी के महाराजगंज आगमन पर आर्थिक अभाव में स्वतंत्रता आंदोलन कमजोर न पड़ जाये, इसलिए उस समय अपने पास से 1001 रुपये की थैली भेंट की. अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध उमाशंकर प्रसाद की बगावत और सेनानियों को आर्थिक मदद देने के कारण अंग्रेजी सरकार ने 1942 में इन्हें देखते ही गोली मार देने का आदेश दिया. लेकिन उमाशंकर कहा रुकने वाले थे, ये भूमिगत होकर आंदोलन को तेज गति देने लगे. इसके कारण अंग्रेजी सैनिकों ने उमाशंकर प्रसाद हाइ स्कूल में आग लगा दी और उनकी दुकान को लूट लिया. नमक बनाओ आंदोलन में देशरत्न राजेंद्र प्रसाद के साथ मिलकर बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया. संपन्न घराने के होने के कारण उमाशंकर प्रसाद ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने वालों को आर्थिक भी मदद दिया करते थे, जिससे आंदोलन की गति कमजोर न हो जाये. देश आजाद होने के बाद भी करते रहे समाज सेवा : उमाशंकर प्रसाद ने अपनी आंखों से देश को आजाद होते देखा. आजादी के बाद भी वे देश सेवा करते रहे. महाराजगंज की जनता ने उन्हें दो बार अपना प्रतिनिधि बनाकर बिहार विधानसभा में चुनकर भेजा. शिक्षा के क्षेत्र में भी उनका अहम योगदान रहा. बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें ताम्रपत्र दिया था. इस महान स्वतंत्रता सेनानी 15 अगस्त 1985 को इस दुनिया को अलविदा कर दिया.
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