शिवहर : जिले में आज होने वाले ईद-उल-जुहा यानी बकरीद के पर्व को लेकर मुसलिम समुदाय के लोगों में काफी उत्साह देखा जा रहा है. शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में मुसलमान भाई अपने जरुरतों के सामान की खरीदारी में जुटे हैं. वहीं नमाज अदा करने के लिए मसजिदों की साफ सफाई की तैयारी पूरी कर ली गयी है. हालांकि मुसलिम समुदाय के लोग ईद पर्व के लगभग ढ़ाई महीने के बाद बकरीद पर्व होता है. यह बलिदान का त्योहार ईद-उल-जुहा काफी उत्साहपूर्वक मनाते है.
इस दिन मुसलिम समुदाय के लोग नमाज अदा करने के साथ बकरे की कुर्बानी देते हैं. जिसको लेकर शहर से गांव तक के बाजारों में बकरे की खरीदारी में जुटे हैं. साथ ही माना जाता है कि मुसलिम धर्म में इस्लाम के पांच फर्ज होते हैं. जिसमें हज को आखिरी फर्ज माना गया है. इसलिए मुसलमान भाइयों के जिंदगी में एक बार हज करना बहुत ही जरूरी है. हज होने की खुशी में ईद-उल-जुहा यानी बकरीद का पर्व बलिदान के त्योहार के रूप में मनाया जाता है.
शहर के नाजीमे आला मदरसा शमसुल उलुम (जामे मसजिद) के ईमाम मौलाना मो ईस्माइल कादरी ने कहा कि अपनी सबसे प्यारी चीज रब की राह में खर्च करने का अर्थ नेकी आैर भलाई के मार्ग में खर्च करना है. जिसको लेकर हजरत इब्राहिम (अलैहिस सलाम) का इम्तहान लेने के लिए उन्हें यह आदेश दिया. अल्लाह तभी राजी होगा. तब हजरत इब्राहिम ने कुछ देर सोच कर निर्णय लिया आैर अपने अजीज बेटे हजरते ईस्माइल (अलैहिस सलाम) को कुर्बानी देने का इरादा बनाया. उन्होंने कुर्बानी देने के लिए अपने बेटे हजरत इस्माइल को चुना आैर उसे अल्लाह के लिए कुर्बानी करने की तैयारी की. जब कुर्बानी का समय आया तो हजरत इब्राहिम ने अपनी अांखों पर पट्टी बांधकर बेटे की कुर्बानी दी. उसके बाद जब उन्होंने ने अपनी आंखों से पट्टी हटायी तब अपने बेटे को सुरक्षित देखा.अल्लाह ने इजरत इब्राहिम के कुर्बानी से खुश होकर उसके बच्चे की जान बख्स दी आैर बेटे की जगह बकरे की कुर्बानी कबूल किया.
मौलाना ने यह भी बताया कि कुर्बानी का अर्थ है कि रक्षा करने के लिए सदा तत्पर रहना. हजरत इब्राहिम की सुन्नत है कि कोई भी व्यक्ति जिस भी परिवार, समाज, शहर या मुल्क में रहने वाला है. उस व्यक्ति का फर्ज है कि देश, समाज व परिवार के हिफाजत के लिए हर कुर्बानी देने को तैयार रहे. ईद-उल-फितर की तरह ईद-उल-जुहा में भी गरीब आैर मजलुमो को खास ख्याल रखा जाता है.
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