शिवहर : बाढ़ राहत को लेकर प्रशासनिक संजिदगी भले ही बरकरार हो. किंतु बाढ़ के कारण फसल नुकसान से आहत बटाईदार की पीड़ा सुनने को कोई तैयार नहीं दिख रहा है. बटाई पर खेती करने वाले लोग दोहरी मार झेलने को विवश हैं. कारण कि जिले में वैसे किसान भी है, जो बटाई खेत लेकर धान, मक्का या सब्जी की खेती करके जीवकोर्पाजन करते हैं. कुछ लोग जमीन मालिक से प्रति एकड़ एक मुश्त अनाज देने का ठेका लेते रहे हैं. ऐसे में फसल अधिक या कम होने पर भी निर्धारित मात्रा में अनाज जमीन मालिक को मुहैया कराते रहे हैं. किंतु इस बार बाढ़ से उनकी सारी फसल मारी गयी. अब सवाल है कि खेतों में फसल बटाईदार ने लगाया.
खेती में लगने वाले सारे खर्च को बटाईदार व हुंडेदार ने सहन किया. फसल क्षति के बावजूद जमीन मालिक को एक निश्चित अनाज उसे देनी पड़ेगी. जबकि फसल क्षति अनुदान उसे मिलेगा, जो जमीन का लगान देता है. ऐसे में खेती करने के बावजूद बटाईदार या हुंडेदार अनुदान से वंचित हो रहे हैं. समाहरणालय में सुगिया कटसरी की रंजू देवी अपनी पीड़ा सीओ युगेश दास को बताते हुए कहती हैं कि जमीन मालिक से जो रकम तय कर उसने खेती की थी. उतना अनाज उसे देना होगा.
फसल लगाने पर उसने खर्च किया. किंतु फसल क्षति का मुआवजा जमीन मालिक को मिलेगा. ऐसे में बटाई पर खेती करने वाले किसान दोहरी मार झेल रहे हैं. फसल क्षति का नुकसान उन्हें झेलना पड़ रहा है. जो रकम तय कर जमीन बटाई या हुंडा पर लिया था. उतना रकम उसे जमीन मालिक को हर हाल में भुगतान करना पड़ेगा. ऐसे में बटाईदार या हुंडेदार के लिए कोई व्यवस्था की जानी चाहिए. किंतु सीओ ने दोनों हाथ खड़े कर दिये. कहा सरकारी निर्देश के अनुसार जो जमीन का लगान देता है. उसे ही फसल क्षति की राशि दी जायेगी. मालूम हो कि फसल क्षति अनुदान के आवेदन के लिए जमीन का रसीद की छाया प्रति देना अनिवार्य बताया जा रहा है. इधर बाढ़ राहत की सूची को लेकर मुखिया के कार्यशैली पर सवाल उठ रहा है. ऐसे में प्रशासन की जिम्मेवारी बढ़ गयी है. ग्रामीणों की माने तो मुखिया समर्थक राहत से वंचित नहीं हो रहे हैं. किंतु जो मुखिया समर्थक नहीं रहे हैं उनका नाम सूची से गायब बताया जा रहा है. इस तरह की आवाज कमरौली सुगिया कटसरी आदि पंचायतों में उठने लगी है. हालांकि बाढ़ राहत के सर्वे का कार्य सरकारी कर्मी के जिम्मे हैं. बावजूद इसके वार्ड सदस्य व ग्रामीण संबंधित पंचायत के मुखिया पर सवाल खड़ा कर रहे हो.