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sasaram News : इमरजेंसी के 50 साल : इमरजेंसी में जेल जाने पर रोने से मां की चली गयी थी आंख की रोशनी

इमरजेंसी के दौरान सही यातना को याद कर सिहर उठते हैं डेहरी के जेपी सेनानी राम बदन बाबू

डेहरी. 25 जून 1975 को देश में तत्कालीन इंदिरा सरकार ने इमरजेंसी लगा दी थी. अगस्त 1975 में जेपी सेनानी रामबदन सिंह गिरफ्तार हो गये. वह आठ माह बक्सर और 10 माह हजारीबाग जेल में रहे. मेरे जेल जाने से उनकी मां मंगरी देवी का रो-रोकर बुरा हाल था. रोने से उसकी आंखों की रोशनी चली गयी थी. जेपी सेनानी रामबदन सिंह बताते है कि मां की हालत ने मुझे सबसे अधिक पीड़ा दिया था. खैर, खुशी तब हुई, जब हमारा संघर्ष और साथियों का बलिदान सफल हुआ. निरंकुश केंद्र सरकार अपदस्थ हुई. आज से 75 वर्ष पूर्व देश में आपातकाल के दौरान सरकार की निरंकुशता को याद करते हुए डेहरी के वार्ड नंबर एक के प्रयाग बिगहा मुहल्ला निवासी जेपी सेनानी रामबदन सिंह ने कहा कि बड़ा अजीब दौर था. मैं वर्ष 1973 में एसपी जैन कॉलेज सासाराम से मैं बीए पास किया था. हमारी उम्र करीब 22 वर्ष की थी. तभी 18 मार्च 1974 को पटना में छात्रों पर सरकार ने गोली चलवायी. इसके विरोध में पूरे बिहार में छात्र आंदोलन छिड़ गया. मेरे नेतृत्व में 19 मार्च 1974 को डेहरी आइटीआइ के कैंपस में घटना के विरोध में एक सभा की गयी. सभा के बाद मेरे नेतृत्व में निकाला जुलूस ने डेहरी थाना चौक के समीप कचौड़ी गली में खादी भंडार और इसके बाद जीटी रोड पर स्थित सरकारी बस स्टैंड में तोड़फोड़ की गयी. इसमें हमारे 11 साथी पकड़े गये. मैं कुछ साथियों के साथ वहां से न्यू एरिया स्थित एप्लॉयमेंट एक्सचेंज पहुंचा और वहां काम को बंद कराया. हम रेलवे स्टेशन जाना चाहते थे, लेकिन पुलिस ने शहर को घेर लिया था. हम शहर छोड़कर भाग गये.

पुलिस ने मेरी गिरफ्तारी को प्रतिष्ठा बना लिया था. गिरफ्तारी से बचने के लिए मैं तत्कालीन तिलौथू स्टेट के बिपिन बिहारी सिन्हा से मिला. उस समय सरकार ने अखबार और रेडियो पर सेंसरशिप लगा दिया था. उसी समय लोकनायक जयप्रकाश नारायण लोकवाणी क्रांति अखबार निकालना शुरू किया था. जिले में वितरण की जिम्मेवारी मुझे सौंपी गयी. पटना से अखबार की एक कॉपी आती थी, जिसका 8-10 दिनों में दो-तीन सौ साइक्लोस्टाइल कॉपी निकलवा कर मैं गांव-गांव में जाकर लोगों तक पहुंचाता था. उस समय एक मिनी प्रेस चलाने की जिम्मेदारी भी मैं निभाता था. मेरी गिरफ्तारी के लिए तत्कालीन एसपी नारायण मिश्रा ने गुप्तचर लगा रखा था. तत्कालीन इंस्पेक्टर अरुण जेटली लगातार मेरे घर प्रयाग बिगहा में आधी-आधी रात को छापेमारी करता था. पुलिस ने घर में रखे अनाज तक को बर्बाद कर दिया था.

एक बजे दिन में मां तारा चंडी मंदिर के समीप से हुई थी गिरफ्तारी:

अगस्त 1975 (तारीख भूल रहा हूं) को एक बजे दिन में मुझे मां तारा चंडी मंदिर के समीप से गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस मुझे डेहरी थाना लायी. डेहरी तत्कालीन थाना प्रभारी विश्वनाथ लाल ने मेरी गिरफ्तारी की सूचना एसपी को दिया. एसपी ने मुझसे पूछताछ की. बहुत धमकाया. मैं नहीं टूटा, तो मुझे तत्कालीन डीएम माधव बाबू के पास सासाराम लाया गया. जहां से मुझ पर मिशा एक्ट लगाकर बक्सर केंद्रीय जेल भेज दिया गया. मुझे वहां करीब आठ माह रखा गया. इसके बाद हजारीबाग जेल भेजा गया. वहां मुझे करीब 10 माह रखा गया. हजारीबाग जेल में मुझसे मिलने मेरी मां आयी थी. जिसकी रोने से आंखों की रोशनी कम हो गयी थी और मेरे जेल से छूटने पर उसकी आंखें देखने में अक्षम हो गयी थी. मेरे पिताजी मनराज सिंह डालमियानगर कागज फैक्ट्री में काम करते थे. आंदोलन से पहले मेरी शादी हो चुकी थी. उस समय मेरा बड़ा बेटा नंद यादव जिसे मैं क्रांति पुत्र कह का पुकारता हूं, करीब तीन-चार माह का था. मेरा छोटा भाई राजेंद्र यादव खेती का काम देखता था. इमरजेंसी का दौर समाप्त हुआ और मैं जेल से बाहर आया. मुझे और तीन पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. रामबदन बाबू ने बताया कि इमरजेंसी का विरोध करने पर जेल जाने वालों में अखलाक अहमद, नौशाद जी, सूर्यदेव सिंह, धनगाइ के नरेंद्र जी, राजेंद्र तिवारी आदि थे. हाल के वर्षों में सरकार ने मुझ जेपी सेनानी सम्मान योजना के तहत पहचान पत्र दिया है.

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