मांझी. जब मनुष्य के जन्म-जन्मान्तर का पुण्य उदय होता है, तभी उसे इस भागवतशास्त्र की प्राप्ति होती है. श्रीमद भागवतमहापुराण के प्रति आकर्षण मन में हुआ तो यह मानना चाहिए कि यह पूर्व जन्मों के संचित पुण्यों का प्रभाव है. उक्त बातें प्रखंड के खानपुर में चल रहे नौ दिवसीय शतचंडी महायज्ञ में जबलपुर से पधारी प्रवचनकर्ता सोनम मिश्रा ने कही. उन्होंने कहा कि एक जन्मों के पुण्यों के बल पर श्रीमद भागवत जी प्राप्त नहीं कर सकते. इससे यह पता चलता है कि यह कितना विलक्षण, कितना दुर्लभ, भगवत सिद्धान्तों का अंतिम निष्कर्ष, प्रभु की प्रसन्नता का प्रधान कारण, भक्ति के प्रवाह को बढ़ाने वाला यह श्रीग्रंथ है. कलियुग में अधिकतर भक्ति स्वार्थ सिद्धि हेतु होती है, इसलिए वह सात्त्विक भक्ति नहीं है. उन्होंने कहा कि सत्य, त्रेता और द्वापर – इन तीनों युगों में ज्ञान और वैराग्य मुक्ति के साधन थे. किन्तु कलियुग में केवल भक्ति ही से ही मोक्ष की प्राप्त किया जा सकता है. कलिकाल में केवल भक्ति ही मोक्ष का सबसे सुलभ एंव एकमात्र साधन है. प्रभु ने मुक्ति को भक्ति की दासी बनाया है. भक्ति से ही कलिकाल में मुक्ति मिलेगी, यह प्रभु द्वारा बनाया नियम है. देवी भक्ति को प्रभु ने पुत्र रूप में ज्ञान और वैराग्य दिये. यानी सतयुग, त्रेतायुग और द्वापरयुग में जिन ज्ञान और वैराग्य को पाने के लिए इतना श्रम करना होता था, वह कलिकाल में भक्ति मार्ग में चलने पर स्वतः ही मिल जाते हैं. क्योंकि देवी भक्ति जीवन में जब आती हैं तो उनके दोनों पुत्र ज्ञान और वैराग्य भी साथ आते हैं और दासी रूप में मुक्ति भी साथ आती है. कथा सुनने के लिए आसपास के गांवों से हजारों महिला व पुरुष श्रद्धालु मौजूद रहे.
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