सोनपुर. रविवार को सोनपुर मेले में लोगों की भीड़ अपने चरम पर रही. सप्ताह भर की भाग-दौड़ के बाद, रविवार का दिन हर किसी के लिए अवकाश और मनोरंजन का अवसर लेकर आता है. यही कारण है कि सोनपुर मेला मे यह दिन महाभीड़ का दिन बन गया. सुबह 10 बजते ही मेले की ओर जाने वाली हर सड़क पर चहल-पहल बढ़ गयी. बच्चों के खिलखिलाहट भरे चेहरों से लेकर, परिवार के साथ आए बुजुर्ग हर उम्र और वर्ग के लोग इस भीड़ का हिस्सा बने. मेला के मुख्य द्वार पर पहुंचते ही, यह भीड़ एक लहर की तरह अंदर प्रवेश करती है, मानो कोई विशाल नदी अपने मुहाने की ओर बढ़ रही हो. भीड़ का यह सैलाब, केवल लोगों का जमावड़ा नहीं, बल्कि यह अपने आप में एक जीवंत उत्सव था. चारों ओर तेज आवाज़ों, हंसी-मजाक, संगीत और लाउडस्पीकरों की घोषणाओं का एक अनूठा शोरगुल हर चेहरा उत्सुकता और आनंद से भरा, लोग एक-दूसरे से टकराते, फिर हंसकर आगे बढ़ जाते थे. मेले मे बच्चों की नजर खिलौनों की दुकानों पर टिकी, जबकि महिलाओं को मनमोहक चूड़ियां और सजावटी सामान की ओर. हर दुकान पर ग्राहकों की भीड़ मोल-भाव की आवाज और खरीदने-बेचने का शोर लगातार गूंज रहा था. इस भीड़ का सबसे बड़ा आकर्षण झूले,ब्रेक डांस, ट्वाय ट्रेन के पास तो तिल धरने की भी जगह नहीं. झूले पर चढ़ने के लिए लोगों की लंबी कतारें और झूले पर बैठे लोगों की डर और रोमांच से भरी चीखें हवा में गूंज रही थी.भीड़ के बीच से गुजरते हुए, लजीज पकवानों की मोहक सुगंध, गरमा गरम जलेबी, चटपटी चाट, और तरह-तरह के स्ट्रीट फूड के ठेलों पर लोगों का हुजूम लगा हुआ था. खाने-पीने की जगहों पर भीड़ इतनी ज्यादा थी कि कई बार लोगो को खड़े होकर खाना भी मुश्किल हो रहा था. यह भीड़ हमारे सामाजिक ताने-बाने को दर्शाती है. लोग अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और परिचितों से मिलते हैं, हाल-चाल पूछते हैं और एक-दूसरे के साथ कुछ पल खुशी से बिताते हैं. मेले की यह भीड़ सांस्कृतिक और सामाजिक मेल-मिलाप का एक बड़ा मंच माना गया है. यहां ग्रामीण और शहरी जीवन का संगम दिखायी देता है. रविवार को मेले की यह भीड़ एक यादगार अनुभव मेला आये लोगो के लिए होता है.
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