छपरा.
हर साल नगर निगम में बजट-बजट का चलता है खेल, अधिकारी और जनप्रतिनिधि हो जाते हैं पास जनता हो जाती है फेल यह हम नहीं नगर निगम क्षेत्र की आम जनता अपनी व्यथा व्यक्त कर रही है. लोगों का कहना है कि हर साल करोड़ रुपये का बजट तो पास होता है, लेकिन काम कुछ नहीं दिखता है. बजट को पास करने के लिए जनप्रतिनिधि आपस में ही हल्ला हंगामा करते हैं और फिर सेटिंग होते ही चुप्पी साथ लेते हैं, लेकिन नगर की जनता को कुछ भी मयस्सर नहीं होता. एक छोटा सा उदाहरण है नगर निगम क्षेत्र की स्ट्रीट लाइट व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गयी है. फिलहाल स्थिति यह है कि 50 फीसदी स्ट्रीट लाइट अपनी रोशनी देना भूल गयी हैं. आधे शहर में हाल ही में लगी तिरंगा लाइट भी बेकार साबित हो रही है. जबकि इसके मेंटेनेंस की अवधि पांच साल निर्धारित है. अधिकांश जगहों पर यह खराब हो चुकी है. शहर में एक भी चौक चौराहे पर हाइ मास्ट लाइट नहीं है. ऐसे में शहर वासियों की परेशानी बढ़ गयी है. शहर को चकाचक करने का दावा करने वाले महापौर और नगर आयुक्त की ओर सबकी निगाहें टिक गयी है. आखिर जब रुपये मिलते हैं तो खर्च क्यों नहीं किया जाता.कई बार हुई कार्रवाई, पर नहीं हुई सुनवाई
शहर में जिस कंपनी को स्ट्रीट लाइट लगाने की जिम्मेदारी दी गयी थी और उसको एक तय समय सीमा तक मेंटेनेंस करने का आदेश दिया गया था. उस कंपनी ने इस कार्य को गंभीरता से नहीं लिया. इसे लेकर कई बार कार्रवाई हुई. जुर्माना लगा. भुगतान रोका गया लेकिन असर कुछ भी नहीं हुआ. हालांकि पार्षदों का कहना है कि कार्रवाई केवल दिखावे के लिए हुई. अधिकारियों ने भुगतान तो कर ही दिया. निगम का लाखों रुपये की स्ट्रीट लाइट भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा दी गयी है.लगने के साथ ही खराब हो गयीं स्ट्रीट लाइटें
नगर निगम क्षेत्र में मुख्य सड़क सहित गली में स्ट्रीट लाइटें लगी थीं. जो की कुछ दिन तक अच्छे से काम कर रही थीं, लेकिन एक-एक कर लाइटें खराब हो गयीं. वर्तमान में शहर की मुख्य सड़कों की 50 प्रतिशत लाइटें खराब हैं, जिसके चलते शाम होते ही सड़कों पर अंधेरा छा जाता है. सबसे खराब स्थिति मुख्य सड़क की है. बरहमपुर चौक से लेकर दारोगा राय चौक तक स्ट्रीट लाइट और हाय मास्ट लाइट तक नहीं है.4675 लाइटें लगे थीं
नगर निगम क्षेत्र में 4675 लाइटें लगी थीं. इसको लेकर निगम ने कई बार कंपनी को पत्र लिखा. पत्र की अवधि खत्म होने के बाद कानूनी प्रक्रिया करते हुए जुर्माना लगाया गया. यह भी याद रहे की निगम ने 2022 में लापरवाही के चलते एएससेल कंपनी पर 34 लाख का जुर्माना लगाया था. इसके बाद दिखावे के लिए कुछ जगहों पर काम किया गया फिर स्थित जस की तस गयी.नवंबर,2024 में इन अधिकारियों ने स्ट्रीट लाइट का किया था निरीक्षण
बीते वर्ष नवंबर में नगर आयुक्त ने शहर में खराब स्ट्रीट लाइट और और जरूरत के लिए आठ टीमें गठित कर सभी 45 वार्ड की जांच करायी थी. इनमें वार्ड सं0 01 से 05 तक राजश्री, सहायक अभियंता, नगर विकास प्रमण्डल, स्थानीय वार्ड आयुक्त को , वार्ड संख्या 06-10 के लिए मेधा, सहायक अभियंता, नगर विकास प्रमण्डल-01, छपरा को, वार्ड संख्या 11-15 के लिए अरविंद कुमार, नगर प्रबंधक छपरा नगर निगम को, वार्ड संख्या 16-21 के लिए वेद प्रकाश वर्णवाल, नगर प्रबंधक, छपरा नगर निगम को, वार्ड संख्या 22-27 के लिए सुमित कुमार, सहायक लोक स्वच्छता एवं अवशिष्ट प्रबंधन पदाधिकारी, छपरा नगर निगम को , वार्ड संख्या 28-33 के लिए संजीव कुमार मिश्रा, सहायक लोक स्वच्छता एवं अवशिष्ट प्रबंधन पदाधिकारी को , वार्ड संख्या 34-39 के लिए नवीन कुमार, कनीय अभियंता, नगर विकास प्रमण्डल-01 को वार्ड संख्या 40-45 के लिए अभय कुमार, कनीय अभियंता को जिम्मेदारी दी गयी थी.क्यों उपेक्षित है पश्चिमी छपरा शहर
पूर्वी छपरा शहर पर अधिकारियों का अधिक ध्यान रहता है. नगर निगम का भी अधिक ध्यान रहता है, लेकिन पश्चिमी छपरा शहर पर ना तो नगर निगम का ध्यान रहता है और ना ही जिले के बड़े अधिकारियों का. इसका सबसे बड़ा कारण है पूर्वी छपरा शहर के कई इलाकों में जिले के बड़े अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों का आवास और कार्यालय है इसलिए इन क्षेत्रों में नगर निगम और सरकार के विकास योजनाएं क्रियान्वित हो जाती हैं, लेकिन पश्चिमी छपरा शहर में ना तो अधिकारियों का आवास और ना ही कार्यालय, इक्का दुका जनप्रतिनिधि है जो आवाज ही नहीं उठा पाते. इन्हीं कारणों से यह इलाका पिछड़ा है. अधिकारियों की मॉनिटरिंग भी इस इलाके में नहीं होती है.क्या कहते हैं महापौर
केवल बजट पास हो जाने दीजिए इसके बाद नगर निगम क्षेत्र में सारी योजनाएं सामने दिखेंगे. सड़क, स्ट्रीट लाइट, नवचयनित योजना सब कुछ दुरुस्त हो जायेगा.लक्ष्मी नारायण गुप्ता, महापौर, नगर निगम
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